058: Josy interview
Cinematographer: Sunil Kumar
Duration: 00:26:59; Aspect Ratio: 1.778:1; Hue: 27.231; Saturation: 0.141; Lightness: 0.391; Volume: 0.166; Cuts per Minute: 0.148; Words per Minute: 110.056
Summary: ए.पी. जोसी पिछले 17 साल से जांजगीर चाम्पा में समाज कार्य कर रहे हैं। चम्पा के डभरा ब्लॉक में वह 6-7 सालों से काम कर रहे हैं। उनके अनुसार सरकार पूरी तरह से उद्योगपरतियों के पक्ष में है। चम्पा की 70-80 प्रतिशत सिंचित खेती योग्य दो फसली किसानों की जमीन को विकास के नाम पर उद्योगपतियों को सौंपा जा रहा है। और यह काम सरकार खुद कर रही है। पहले निजी कम्पनियां खुद प्राईवेट जमीन की खरीदी करती थीं। अब सरकार ही किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर निजी कम्पनियों को दे रही है। छत्तीसगढ़ सरकार ने जांजगीर चम्पा में लगभग 100 एम.ओ.यू. साइन किए हैं जिसमें 30 के आस-पास कोयले से चलने वाले 1300, 1400 मेगावॉट के थर्मल पॉवर प्लांट हैं। जिसमें अभी तक 10-15 कम्पनियों के लिए जमीन अधिग्रहण का काम हो चुका है। विधान सभा चुनाव नजदीक होने के कारण बाकी अधिग्रहण पर रोक लगा दी गई है। महानदी को भी इन्हीं कम्पनियों के हवाले किया जा रहा है। जांजगीर चम्पा से रायगढ़ तक इन्हीं कम्पनियों द्वारा महानदी पर 7 बड़े बैराज बनाए जा रहे हैं। जिसमें 5 तो चम्पा में ही हैं। और इन बैराज से सिंचाई के लिए एक बूंद भी पानी का इस्तेमाल नहीं किया सकेगा। इतना ही नहीं छोटे-छोटे सिंचाई के तालाबों तक को इन उद्योगों के हवाले किया जा रहा है। और इन सबके खिलाफ होने वाले आन्दोलन को बेरहमी से दबाया जा रहा है। आन्दोलनकारियों पर हत्या का प्रयास, गुंडागर्दी, डकैती, बलवा जैसे झूठे केस लगाए जा रहे हैं। पर्यावरण कानून हो या पेशा एक्ट के तहत दिए गए आदिवासियों के अधिकार, सिंचाई के पानी को उद्योगों को देने का मामला हो या राखड़ को डम्प करने का मामला, जमीन अधिग्रहण का मामला हो या आरक्षित वनों की कटाई का मामला सभी में किसी कानून का पालन नहीं हो रहा है।
Raipur
जांजगीर जिला करीब-करीब छत्तीसगढ़ के उत्तर में स्थित है जो कि पूरा समतल एरिया है।
और यह धान का कटोरा का प्रमुख अंग है।
छत्तीसगढ़ भारत का धान का कटोरा है।
छत्तीसगढ़ के उत्तर और दक्षिण में माइंस, जंगल, झाड़ी और पहाड़ी वाला एरिया है और दोनों जगहों पर माइंस और आदिवासी हैं। बीच का भाग समतल है। यहां ज्यादा ढलान नहीं है, बहुत कम ढलान है इसलिए यहां धान होता है, विशेषकर जांजगीर जिला में तो वन ऑफ द बेस्ट पैडी क्रॉप होता है क्योंकि लगभग 70 से 80 प्रतिशत भूभाग कृषि योग्य सिंचित जमीन है।
तो यह सभी एरिया विशेषकर जांजगीर में 70 प्रतिशत भूमि सिंचित है और धान के उत्पादन के लिहाज से छत्तीसगढ़ के बेहतर क्षेत्रों में से एक है।
सिंचित जमीन होने के कारण यहां दोहरी फ़सल होती है। एक फ़सल तो निश्चित है। उसके असफ़ल होने की संभावना बेहद कम है। जैसे हमारे डभरा ब्लॉक व उसके आस-पास के ब्लॉक शक्ति, मालखरोदा और जाजीपुर आदि में फ़सल कभी फ़ेल नहीं होती है क्योंकि माड़ नदी का नहर, माड़ परियोजना का नहर यह सभी पास में है।
लेकिन अब यहां पर हमारी सरकार द्वारा बहुत सारा उद्योग शुरू किया जा रहा है और विशेषकर पॉवर प्लांट्स का तो बौछार-सा आ गया है। मैं जिस ब्लॉक में रहता हूं, उसमें करीब सात किलोमीटर के दायरे में 8 पॉवर प्लांट आ रहे हैं। आप जानते ही हैं कि कोरबा दुनिया के अत्यधिक प्रदूषणतम शहरों में से एक है।
यहां अभी तो शुरु नहीं हुआ है लेकिन उसी तर्ज पर यहां भी शुरू हो रहा है। हमारे डभरा ब्लॉक में दो-तीन पॉवर प्लांट का काम शुरू हो गया, बाकी पांच बचा हुआ है। मालखरोदा ब्लॉक, जो कि डभरा ब्लॉक से सटा हुआ है, वहां 8 पॉवर प्लांट लगने वाले हैं।
जांजगीर जिला में करीब 30 पॉवर प्लांट है। वह कोई छोटा-मोटा पॉवर प्लांट्स नहीं हैं बल्कि सब मेगा और अल्ट्रा मेगा पॉवर प्लांट हैं। 6 हजार, 10 हजार करोड़ रुपए या उससे भी ऊपर तक निवेश किया जा रहा है। और यह करीब 1000, 300, 400 मेगावॉट के प्लांट्स हैं।
यह तो जांजगीर जिला का मामला है। शुरू में करीब 2006-07 में कम्पनियां जमीन खरीद लेती थी। इसके बाद हो यह रहा है कि सरकार खुद निजी कम्पनियों को जमीन अधिग्रहण करके दे रही है। सरकारी प्लांट्स जैसे एन.टी.पी.सी., छत्तीसगढ़ इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के लिए यह अधिग्रहण समझ में आता है, कि सरकार इसमें किसानों की जमीन लेकर जनता के हित में सरकारी प्लांट चला रही है।
लेकिन अभी जो पिछले पांच साल से चल रहा है, सरकार निजी भूमि का अधिग्रहण करके निजी कम्पनियों को दे रही है। अभी-अभी दो-ढाई महीने पहले हाईकोर्ट की एक सिंगल बेंच ने ऑर्डर किया। जिसमें चार कम्पनियों के अधिग्रहण को रद्द कर दिया गया। अभी उस पर अपील हुआ है। मैं अभी बीस-पच्चीस दिन के लिए एक कार्यक्रम में चला गया था तो इसके बारे में नई जानकारी नहीं है।
इस अधिग्रहण को रद्द करने के पीछे हाईकोर्ट का मुख्य आधार यह था कि 'शासन द्वारा जनहित कहकर खेती वाली जमीन निजी कम्पनियों को देना उचित नहीं है'। इसमें और क्या तर्क हैं वह ऑर्डर मैं पढ़ कर नहीं देखा हूं, मैनें सिर्फ पेपर देखा था।
अनाजों के दामों की बढ़ोत्तरी के रूप में इसका प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। सरकार कहती है कि मंहगाई कम हो गई हैं लेकिन खाद्यान्नों के दाम में कोई कमी नहीं आई है। पेट्रोल की कीमत 95 पैसा या 1 रूपया कम हो जाता है लेकिन खाद्यान्नों की कीमत तो बढ़ती ही जा रही है।
अगर सरकार का यही रवैया रहा कि वह लोगों की खेती वाली का जमीन जबरदस्ती अधिग्रहण करती रही ...
पता नहीं आप जानते हैं कि नहीं, यह जो जमीन अधिग्रहण का एक्ट है, वह अंग्रेजों द्वारा बनाया गया पुराने जमाने का ऐक्ट है।
जो भारतीयों की जमीन को अधिग्रहीत करके ब्रिटिश शासन लेना चाहती थी इसीलिए बनाया गया था। उसी का बनाया हुआ कानून भारतीय सरकार उपयोग कर रही है। उस समय तो ब्रिटिश शासन अपनी सरकार के लिए इसका उपयोग करती थी लेकिन अभी तो निजी कम्पनियों को देने के लिए कर रही है। और इसको जनता के हित में कैसे बनाया गया? कहते हैं कि पहले 2009-14 में औद्योगिक नीति बना दिया गया, उसके पहले 2004-09 पंचवर्षीय नीति।
तो जनता को यही बताया जाता है कि हमारे देश में पॉवर और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है इसलिए पॉवर, स्टील और आयरन चाहिए। अब इसके निवेश के लिए हमारे पास पैसा नहीं है तो इसके लिए जो भी निजी कम्पनियां आएंगी हम उसकी मदद करेंगे, यह जनता का हित हो गया, जनता के लिए हमको बिजली चाहिए। तो इस प्रकार उसे जनता का हित बना दिया गया। अब कोई भी बनाए, क्योंकि सरकार के पास उसको बनाने के लिए पैसा नहीं है।
अभी तक जांजगीर में कितने एम.ओ.यू. साइन हुए है?
सभी को लेकर जाजंगीर में लगभग 100 के ऊपर है। जिसमें अकेले 30-35 तो पॉवर प्लांट पर ही साईन हुए हैं।
कितने पॉवर प्लांट के लिए जमीन अधिग्रहण का काम शुरु हो गया है?
जमीन अधिग्रहण का काम मोटे तौर पर 10-15 का हो चुका है, बाकी अभी बचा है, क्योंकि हाईकोर्ट का आदेश है, इसलिए अभी जमीन अधिग्रण पर रोक लग गया है। इसके अलावा अगले साल चुनाव आने वाला है। कम्पनी वालों ने अभी हाईकोर्ट में अपील किया होगा, वह तो मेरे ख्याल से निरस्त हो जाएगा। फ़िर सुप्रीमकोर्ट जाने की हिम्मत होगी, तो बनेगा, नहीं तो वैसे ही रह जाएगा।
तो अभी अगले साल चुनाव होने के कारण सभी जगह जमीन अधिग्रहण करीब-करीब बंद है। विशेषकर हाईकोर्ट के आर्डर के बाद तो बिल्कुल बंद है।
यह 30 एम.ओ.यू. के हिसाब से पूरे जांजगीर जिले में इनको कितने एकड़ जमीन चाहिए होगी?
सरकार का आंकडा मेरे पास है। सरकार ही लगभग 15,000 एकड़ जमीन अधिग्रहण करके दे रही है। इसके साथ ही सरकारी जमीन भी दे रही है, जिसमें चारागाह, टायलेट आदि के लिए होते थे और गांव के लोग इसका उपयोग करते थे। बहुत सारे गांव के चारगाह तो खत्म हो गए। सरकार एक तरफ़ कहती है कि कृषि को बढावा देंगे और वहीं दूसरी तरफ़ मवेशी को चरने तक की जमीन नहीं छोड रही है। आज भी छोटे-छोटे किसान तो ट्रैक्टर का प्रयोग नहीं करते हैं।
इसमें जो 15 हजार एकड़ जमीन है, क्या सभी खेती वाली जमीन है?
हां, खेती वाली ही जमीन है। प्राईवेट जमीन तो खेती वाली ही जमीन है। उसमें कुछ थोड़ी उंची-नीची जमीन होगी। नीची वाली जमीन में धान होता है और ऊपर वाली जमीन में दाल होता है। दाल तो ऊंची जमीन में होता है जिसको भर्री, टिकरा बोलते हैं। हमारे डभरा ब्लॉक में बहरा खेत जा रहे हैं, जो दो फ़सली होती है।
सिंघीतराई का भी जा रहा है। सिंघीतराई में मेरा एक वकील दोस्त है, उसने अपनी जमीन बचाने की बहुत कोशिश की। लेकिन हाईकोर्ट में निरस्त हो गया, फिर सुप्रीमकोर्ट गया, वहां भी निरस्त हो गया। पता नहीं चार कम्पनियों ने क्या किया कि सब खारिज हो गया। इसको खारिज करने का आधार क्या है, इसका अध्ययन करना पडेगा। किसी को ऑर्डर निकालने के लिए कहा है।
इसको लेकर स्थानीय लोग क्या कर रहे हैं?
स्थानीय लोगों में मायूसी है। क्या करेंगे.......?
सरकार उद्योगपतियों के पक्ष में है, पक्की बात है। कोई भी विरोध करेगा तो उसके ऊपर तुरंत कार्यवाई करके जेल भेज देंगे। उन पर 307, 304 गुंडगर्दी और डकैती की धारा लगा दी जाती है। बहुत अधिक होने से स्पेशल सेक्योरिटी ऐक्ट लगा दिया जाता है। अभी तो उतना नहीं हुआ है लेकिन बाकी धाराओं को लगाया जा रहा है। मतलब बिना जमानत वाली धाराओं को लगाया जा रहा है जिसमें कि जमानत नहीं मिलती है।
यह लोग ऐसा करते हैं कि यदि पचास लोग हैं तो दो सौ लोगों पर केस बनाएंगे बाकी अज्ञात दिखाएंगे। अब जो भी आंदोलनकारियों की मदद के लिए आएगा, उन सबका नाम पुलिस उस अज्ञात में चढ़ा देती है। सब डर जाते हैं। तीन महीने के अंदर कोर्ट में रिपोर्ट पेश करना होता है यानी 90 दिन। अब तीन महीने में जो भी हल्ला किया तो उसका नाम दर्ज कर अन्दर कर देते हैं।
तो लोग इस कानूनी कार्यवाही से डर जाते हैं। एक बार में गोली मार कर उड़ा दो, तो मर गया, मामला खतम हो गया। लेकिन यह तो जिन्दा-जिन्दा मारते रहते हैं, मरने भी नहीं देते हैं। साधारण लोगों के लिए कोर्ट-कचहरी का मामला बड़ा लफ़ड़ा वाला होता है। अब हम जैसे लोग तो हमेशा कोर्ट में ही रहते हैं, वैसे भी जाना है ऐसे भी जाना है।
बहुत सारे लोगों ने कोशिश की, लेकिन सबकी टंगड़ी तोड दिया। फिर लालच और भय इन दो चीजों का उपयोग करते हैं। दलालों के जरिए कम्पनी लोगों को तोड़ने के लिए लालच देती है कि तुमको ये मिलेगा वो मिलेगा।
अच्छा इतने सारे प्लांट आने वाले हैं इनको पानी और कोयला कहां से मिलेगा?
महानदी का पानी है। उसके लिए महानदी में पांच बैराज बन रहे हैं। हमारी महानदी में, सूर्यनारायण से लेकर बरगढ़ से आगे रायगढ़ से पार, सात बैराज बन रहे हैं। शिवरीनारायण, बसंतपुर, साराडीह, मिरौनी और कल्मा यह पांच बैराज तो हमारे एरिया में ही बन रहे हैं। दो बैराज तो लगभग पन्द्रह किलोमीटर की दूरी पर हैं। बीच में पांच-पांच किलोमीटर के फ़ासले पर छोटे-छोटे एनीकट बनाए जा रहे हैं जिससे पानी ओवर फ़्लो होता है।
बैराज में गेट रहेगा, गेट से पानी जाएगा। सरकार यह कहती है कि रोजगार देंगे, यह देंगे, वह देंगे। मेरा यह कहना है कि यदि इतना पानी किसानों को दे दिया जाय तो पूरे जांजगीर में दोहरी फ़सल होगी। तो इससे बड़ा रोजगार का और साधन क्या हो सकता है....? कृषि क्षेत्र तो रोजगार का बहुत बड़ा श्रोत है। कृषि क्षेत्र अकेले ही सबसे अधिक रोजगार का अवसर प्रदान करता है।
कृषि से ज्यादा रोजगार उद्योग तो दे नहीं सकता, उद्योग में तो छ: हजार करोड का प्लांट बनेगा फ़िर उसमें मात्र पांच या छ: सौ लोगों को स्थाई नौकरी मिलेगी बाकी सब ठेका मजदूरी या संविदा नियुक्ति पर काम करेंगे। जबकि उसी एरिया में अगर पानी दे दिया जाय तो लोग पलायन नहीं करेंगे। पलायन करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। दो फ़सल उगाकर लोग आराम से अपनी जगह पर काम करेंगे। जिस हिसाब से खाद्यान्न की कीमत बढ़ रही है, उस हिसाब से किसानों का पैसा भी बढ़ जाएगा।
कभी-कभी लगता है कि क्या मालूम पॉवर प्लांट आएगा कि नहीं आएगा। पॉवर प्लांट के नाम से कोयला ब्लॉक आबंटित हो जाएगा। वैसे भी कोयला की रायल्टी कुछ 127-130 रुपया प्रति टन है, लागत वगैरह मिलाकर 500 रूपया आता है। उसको आप बाहर ब्लैक में बेचेंगे तो 3,000 रूपया मिलेगा। तो इसके नाम से कोयला आवंटन कर कोयला बेचने लग जाओ, कौन जंगल में जाकर देखता है कि किसका कोयला खदान... कहां जा रहा है....।
कोयला बेचते जाओ, यहां मत बनाओ। 15 साल के लिए कुछ पैसा सरकार से लोन ले करके पॉवर प्लांट बना लो। 5 साल पहले से ही कोयला निकालने लग जाओ, 15-20 साल के लिए यह चलाओ बाकी कोयला बेचते रहो। यह सब प्लांट चायनीज मॉडल वाला बन रहा है। 15-20 साल तक इनकी उम्र होगी। उसकी चिमनी तो भड़ाक से गिरती है। अभी कुछ समय पहले ही बाल्को की चिमनी गिरी है, कितने लोग मर गए। सब फ़टाफ़ट वाली चीज है।
छत्तीसगढ़ में इतने सारे पॉवर प्लांट आ रहे हैं विशेषकर जांजगीर में इकट्ठा 30 एम.ओ.यू. पर साइन हुए हैं, आखिर इसका क्या कारण है?
देखिए इसमें बहुत सारे कारण हैं। कभी-कभी लगता है कि लूट करने, जमीन हड़पने, कोयला आवंटन करने का मौका है। आने वाले कुछ सालों में अभी पानी के लिए मारा-मारी होने वाला है तो पानी पर कब्जा कर लो, जमीन पर कब्जा कर लो, कोयला आबंटन करके कोयला बेचकर पैसा कमाओ, यह सब है। दूसरा मैं देखता हूं, जांजगीर जिले में यह सब क्यों हो रहा है? क्योंकि जांजगीर जिला शांत एरिया है।
यहां पर जमीन हडप सकते हैं, यहां माओवादी लोग नहीं हैं, पटेला में तो माओवादी भरे हुए हैं, यह सब कारण हो सकते हैं। जांजगीर जिला में बहुत शांतिप्रिय लोग हैं। उनके पास बहुत है, सह लेंगे। मरते-मरते जिएगें और जीते-जीते मरेंगे। लेकिन कुछ करेंगे नहीं।
यहां कौन-कौन सी जातियां .....?
यहां बहुत सी मिश्रित जातियां है। जांजगीर जिला में इसलिए एकता की कमी भी है क्योंकि हर गांव में हर प्रकार की जातियां मिलेगीं। एक होमोजिनियस कम्युनिटी नहीं है। आदिवासी एरिया में होमोजिनियटी रहता है। वहां का सरदार या मुखिया कुछ बोल दिया तो सभी हां बोल दिए, लोग लड़ने के लिए मैदान में उतर जाएंगे। यहां वैसे नहीं है। यहां हर प्रकार की जातियां है जैसे अनुसू्चित जाति, ओबीसी। ओबीसी में पटेल, साहू, तेली, बडेत तरह-तरह की जातियां है। और ऐसा ही अनुसूचित जातियों में भी है जैसे सार्थी, हसिया, सत्रहवीं, गारा आदि।
कुल जनसंख्या का कितने प्रतिशत आदिवासी होंगे?
मेरे ख्याल से जांजगीर में कम है। लगभग बीस प्रतिशत।
बाकी ओबीसी?
हां, अधिकाशत: ओबीसी हैं। सामान्य वर्ग में कर्मचारी वगैरह ज्यादा होंगे और कहीं कुछ बाभन भी होंगे, लेकिन यह बहुत कम हैं, सम्भवतः 2,3,5 प्रतिशत। बाकी सब ओबीसी हैं। अनुसूचित जाति में, यहां सतनामी समाज बहुत बडा है। सतनामी समाज के लोग जांजगीर जिला में 25 से 30 प्रतिशत के करीब हो सकते हैं। मेरे ख्याल से एम.ओ.यू के पीछे रिश्वतखोरी भी चलता होगा। बिना रिश्वतखोरी के एम.ओ.यू पर साइन होगा क्या? इलेक्शन के लिए फ़ंड मिल जाता है।
जांजगीर में कोयला खदान कहां मिलेगा?
जांजगीर में कोयला नहीं है। देखिए जांजगीर की खासियत यह है कि इसके चारो तरफ़ पानी है। और इस जिले के चारों तरफ के जिले रायगढ़, सरगुजा, कोरबा में कोयला खदानें है। जिनमें भरपूर कोयला है। कोयला, पानी, जमीन और सीधे-सादे लोग, मतलब कि यह बिल्कुल हिंसक किस्म के नहीं हैं। कभी लडाई किए नही हैं। लड-झगड कर जिए नहीं हैं। जैसे हमारा आपका गैंगस्टर बेल्ट यू.पी और बिहार है। वहां पर लोग जमीन के एक टुकड़े के लिए लड मरेंगे। लाठी चलाने का एक कल्चर बन गया है।
जमीन बचाओ। वहां एक कहावत है कि 'जोरू और जमीन जोर का, नही तो किसी और का'। वहां सभी लोग लडने के लिए तैयार रहते हैं। यहां वैसे नहीं है। अभी कुछ बाहरी तत्व घुस आए हैं तो इससे एक हिंसक महौल बन रहा है।
बाहरी तत्व यानी?
बाहर से ट्रक वाले आ रहे हैं, मजदूर आ रहे हैं, कम्पनियां तो अपने लोगों को इंगेज करती हैं। थोड़ा सा गुंडगर्दी वाले लोग भी आ जाते हैं, उससे यहां के लोग दब जाते है और थोडा-बहुत उनसे सीखते भी हैं। नहीं तो पहले ऐसा बिल्कुल नही था। उसको बिल्डप होने में समय लगेगा। वहां तो आप छू लो किसी को, तो लडाई शुरू हो जाती है। यहां वैसे नहीं है, एक बार छू लेगा तो कोई बात नहीं, दो बार मार भी दोगे तो भी कोई बात नहीं, सर पर चढ़ जाओगे तो थोड़ा हिलता है कि हां कुछ करना चाहिए। शांतिप्रिय एरिया है।
हमारा जांजगीर जिला कृषि प्रधान जगह है, और वह (कम्पनियां) इस शांतिप्रिय महौल का लाभ उठा रही हैं। यहां पर बरसात का पानी है, कोई हिमालय का तो पानी नहीं है। उस पर बांध बना कर उसका इस्तेमाल करेंगे। पानी सस्ता, जमीन सस्ती, जनता बेचारी, कोयला पास में है। पावर प्लांट नही भी बनायेंगे तो कोयला आवंटन करेंगे। अभी कोयला घोटाला का मामला आया है तो उस पर थोड़ा पाबंदी लगी है, नहीं तो खुली छूट है न, कई साल से छूट था।
आपको क्या लगता है कि यह जो विकास का माडल है, वह कितना जनता के हित में है और कितना नहीं?
मुझे तो जनता के हित में नही लगता है। मेरे अनुसार विकास तभी माना जाएगा, जब गरीब आदमी बिना किसी पर निर्भर हुए अपना जीविकोपार्जन कर सके। व्यक्ति के पास जीने-खाने की व्यवस्था उसके पास होनी चाहिए। उसको निकाल देगें और विकास कहेंगे? उसको आपने नौकर बना लिया। नौकर को कहिए नौकरी छोडो, वह तो भूखा मरेगा। जो आदमी आधा या एक एकड में छ: महीने के लिए अपने पास धान रखता था और निश्चिंत रहता था कि छ: महीने का धान उसके पास है। उसको उतना गारंटी थी।
उस गारंटी को हटा दिया गया। रोज काम करिए और रोज पैसा मिलेगा। ऐसा करके महल खडा कर दोगे, हजारों महल खड़ा कर दोगे और यह लोग ऐसे ही पड़े रहेंगे तो उसको हम विकास तो नहीं कह सकते हैं। विकास हम तब कहते है जब गरीब से गरीब आदमी, महात्मा गान्धी ने यही कहा है, जीविकोपार्जन का अवसर अपने पास संरक्षित रखे। अवसर होगा तो विकास करेंगे। जब अवसर ही नही दोगे तो वह क्या करेगा?
किसी और के सहारे जिएगा। हर समय डर बना रहेगा, नौकरी बचाने के लिए जो वह बोलेगा उसे वही करना पडेगा, नहीं तो वह मर जाएगा। जिसको बोलोगे वोट दो तो उसी को वोट देन पडेगा। तो पूरी तरह से उसको बंधक बना लिए हो। हफ़्ते भर जीने खाने के लिए थोडा-थोडा टपकाते रहते हैं। उसका पूरा जमीन ले लिए। एक आदमी जो आत्मनिर्भर था, उसको निर्भरता की ओर ले गए।
अभी तो रिटेल या एफ़.डी.आई. यही करेगा। छोटे-छोटे दुकान, ठेला यह सब बन्द हो जाएगा। रेलवे स्टेशन पर पहले दुनिया भर की चीज थी लेकिन फ़ूड प्लाजा आ गया तो सब बंद हो गया। पहले घर-घर में देसी दारू की दुकान चलती थी, महुआ दारू। अब जैसे ही ठेका वाला पहुंचता है सब बंद हो जाता है। सिर्फ उसी का चलेगा और किसी का नहीं चलेगा। क्योंकि वो सरकार को राजस्व देता है। मैं यह नही कह रहा हूं कि सब जगह दारू की दुकान खोलो। लेकिन एक व्यवस्था थी जिसमें सब लोग आत्मनिर्भर थे। उसको तोड करके, उसे निर्भर बना दोगे तो वह विकास नही है।
विकास का मतलब हर व्यक्ति को आत्मनिर्भर होना चाहिए। अपनी जीविकोपार्जन अपने हाथ में होना चाहिए, अपने कंट्रोल में होना चाहिए। तब उसको विकास मानेंगे। नहीं तो ताजमहल बना दिया, बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स बना दी, और कहा कि विकास हो गया है। गांव का जो झोपडी-वोपड़ी था, अब उसका विकास हो गया। वह बेचारे झोपडी वाले कहां गए, कोई नहीं पूछता है।
वे सब पोटली बांधकर दूसरी जगह झुग्गी-झोपडी में या रेलवे स्टेशन में घूम रहे हैं। और फ़िर इसके बाद सौन्दर्यीकरण चलेगा। झुग्गी-झोपडी हटाओ, सौन्दर्यीकरण बनाओ।
वो बस्तर को आदिवासियों को हमारी भाजपा सरकार रोड के किनारे जमीन देंगे और बोले कि रोड के किनारे आकर जिओ, आदिवासी लोग रोड साइड में जिएंगे तो क्या बिजनेस करेंगे? मारवाडी लोग रोड साइड में बिजनेस करने के लिए जगह खोजते हैं, तो वह सोचते हैं कि आदिवासियों को रोड साइड में ला देंगे तो उनका विकास हो जाएगा। भई कहां का..... .....कहां की यह ये सोच है............।
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