056: Chhuri interview with farmer
Cinematographer: Sunil Kumar
Duration: 00:10:18; Aspect Ratio: 1.778:1; Hue: 55.341; Saturation: 0.084; Lightness: 0.397; Volume: 0.226; Cuts per Minute: 3.299; Words per Minute: 83.747
Summary: ग्राम छूरीखुर्द के मनहरन मिंजवार राखड़ के प्रभाव के बारे में बताते हैं। उनक कहना है कि राखड़ उड़कर पेड़ों, सब्जियों के पौधों, धान की फसलों पर चिपक जाती है जिससे उनकी पैदावार कम हो जाती है। धान जो पहले एक एकड़ में 25 बोरा से ऊपर होता था अब सरकारी खाद डालने पर भी 18-20 बोरा से ज्यादा नहीं होता है। इस बार प्रति एकड़ 5 बोरा धान कम पैदा हुआ है। सब्जियों के साथ भी यही स्थिति है। आम के पेड़ में पहले हर साल फल लगते थे अब एक-एक,दो-दो साल का गैप होता है। फूल लगते हैं लेकिन फल नहीं लग पाते उसके पहले ही राखड़ से फूल मुरझा जाते हैं। मनहरन बताते हैं कि पहले यहां बहुत सारे पेड़ थे लेकिन एन.टी.पी.सी. ने सब कटवा दिए, वह भी बिना पेड़ मालिकों से पूछे हुए। गर्मीं हो या बरसात राखड हर समय उड़ती रहती है।
Chhuri
आपका परिचय?
मनहरन मिंजवार.
आपका गाँव कौन सा है?
छूरी-खुर्द. यही मेरा घर है.
आपके बगल में एन.टी.पी.सी. के पॉवर प्लांट का राखड़ डैम है, तो यह बताएं कि आपकी फसल पर इस राख का किस तरह से प्रभाव पड़ रहा है?
जितने भी प्रकार के पौधे हैं, सेम, आलू, गोभी इन सभी में किसी भी प्रकार का फल नहीं लगता है. कहने का मतलब कि, राखड़ डैम से राखड़ उड़ करके पौधों पर चिपक जाता है. आप ही देखो न. सीता फल, मुनगा, सेमीनार इसमें किसी भी तरह के फल नहीं हैं. पहले तो बिना पानी डाले उसमें पूरा फल लगता था, हम पूरा नहीं खा पाते थे, दूसरों को भी देते थे. अभी यह 10 साल के अन्दर की बात है, बहुत पुरानी बात नहीं है.
10 साल पहले क्या स्थिति थी?
बहुत ज्यादा फसल थी. छूरी-खुर्द में बरसात के समय में एक फसल होती थी बाकी कोई फसल नहीं होती थी. इन पेड़ों के साथ क्या है कि कुवां या अन्य से सिंचाई कर हम लोग काफी फल ले लेते थे. आज रखा-रखाव कर-कर के थक जाते हैं लेकिन कोई फसल नहीं लगता है.
राखड़ डैम के आने के पहले एक एकड़ में कितना धान होता था?
25 बोरा से ऊपर और यह भी बिना सरकारी खाद के. और आज सरकारी खाद भी डालो तब पर भी फसल नहीं होती. इस बार फसल में बाल आने के बाद कीड़ा लग गया. हर किसी के घर में पुआल का ढेर है पर फसल नहीं है.
एक एकड़ पर कम से कम 5 बोरा धान निकला है. पहले हम लोग एक फसल में जीते खाते थे. अभी क्या है सिर्फ आधा फसल होता है. समय-समय पर यूरिया, खाद कुछ भी डालो लेकिन कुछ नहीं.
अभी एक एकड़ के पीछे कितना धान मिलता होगा?
वही 20-18 बोरा.
और यह आम पहले हर साल लगते थे?
हाँ.
और इस बार?
इस बार एक दम कम है इस बार एक पेड़ में फूल निकला है बाकी किसी पेड़ में नहीं है.
यह कलमी आम है इस में भी फूल नहीं निकला, ख़त्म है
इस सामने वाले पेड़ का क्या नाम है?
मुनगा का पेड़ है. पांच साल से कोई फल नहीं निकला है.
राखड़ से .......
राखड़ से यह प्रदूषित हो गया है.
लोगों के स्वास्थ पर क्या प्रभाव पड़ता होगा?
स्वास्थ के बारे में तो हम नहीं बता सकते लेकिन फसल का भारी नुक्सान हो रहा है. सरकार देखने के लिए आदमी भेजेगी तो वह कहेगा कुछ खराब नहीं है. जबकि अलग-अलग मौसम में आना चाहिए अब जैसे आप आये हैं तो मुनगा के फसल के समय आये हैं तभी न जानने को मिलेगा. ये मुनगा का पेड़ है दो तीन फल लगे हैं जबकि बारहों महीना पैदा होने वाला फल है और अस्सी रुपये किलो बिकता है.
सामने यह किस चीज का फल है ?
यह सेमी है.
ये भी वैसे ही है.
हाँ वैसे ही, बेचारा लगाने वाला आज तक नहीं खाया है. जबकि आषाढ़ कई फसल तो पहले भी नहीं होती थीं. आज की बात नहीं है.
क्या जंगल पर कोई फर्क पड़ा है?
जंगल तो एन.टी.पी.सी. ने पूरा कटवा दिया है.
कैसे?
अब मुझे तो नहीं मालूम है. मैंने छः पेड़ महुए के पेड़ रखे थे. वन विभाग ने उसे कटवा दिया और पेड़ मालिक से बिना पूछे कम से कम एक हजार पेड़ कटवा दिया है. हम लोग रायपुर मंत्रालय जाने की सोच रहे थे लेकिन हमारे पास जाने के साधन नहीं है.
अभी 32 रुपया किलो महुआ बिक रहा है, वह हमारी आय का एक साधन था लेकिन एन.टी.पी.सी. ने कटवा दिया और कटघोरा के वन विभाग ने उसे काटा था.
क्या इसके द्वारा अभी और भी जमीन ली जाने वाली है?
अभी और भी जमीन ली जाने वाली है?
जमीन तीन प्रकार की होती है, किसान की, राजस्व की और काला जंगल. हल्का फुल्का राजस्व की जमीन है और बाकी किसान की जमीन है. अभी जो जमीन ली जा रही है उसमें तीनों विभाग की जमीन फंस रही है. काला जंगल और राजस्व का जंगल और किसान का जंगल.
यह काला जंगल क्या होता है?
काला जंगल यानी वन विभाग, राजस्व यानी तहसीलदार के अधिकार का जंगल और किसान की जमीन. यह दोनों को पहली ही खरीद लिया है. बाद में किसान को लालच देकर फंसाएंगे.
गर्मीं में क्या हाल होता होगा?
गर्मी में तो पहली भी हमारे यहाँ पानी नहीं था ऊपर से अब पेड़-पौधा नहीं है तो धूप तो बहुत ही होगी.
गर्मी में राखड़ का क्या हाल होता होगा?
राखड़ तो गर्मी में ही नहीं, बरसात में भी उतना ही उड़ता रहता है.
रख-रखाव के नाम पर कुछ व्यस्वस्था तो है लेकिन वह अपर्याप्त है. इतनी सारी राख को तिरपाल से कैसे ढांका जा सकता है? थोड़ी-बहुत सिंचाई करते हैं लेकिन उससे कुछ नहीं होगा. यह एन.टी.पी.सी. का नियम ठीक है यह जो रखरखाव वाले लोग है वो गलत हैं.
अभी हमारे बगल में राखड़ डैम है. अभी हमारे बगल में राखड़ डैम है और अभी सामने भी आ रहा है. यहाँ से राखड़ उड़ कर सीधा कलेक्टर ऑफिस जाती है. लेकिन अधिकारी को भी पता नहीं है कि कहाँ से धूल आ रही है. जबकि सभी जानते हैं. ऐसी बात नहीं है कि नहीं जानते हैं. लेकिन कोई नहीं बोलता है.
पैसे के भण्डार में अपनी थैली भरते हैं. एक दिन कोरबा में रहना है तो कल दंतेवाड़ा जाना है, अधिकारी ऐसा सोचते हैं. सही बात है कि जिन्दगी भर तो यहाँ रहना नहीं है तो कितनी भी राखड़ खा लो.
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