060: Vinod Kumar Pandey interview
Cinematographer: Sunil Kumar
Duration: 00:28:20; Aspect Ratio: 1.778:1; Hue: 207.836; Saturation: 0.253; Lightness: 0.309; Volume: 0.157; Cuts per Minute: 0.318; Words per Minute: 148.136
Summary: विनोद कुमार पाण्डेय ग्राम छूरी के निवासी हैं। यह पारंपरिक आयुर्वैदिक चिकित्सक होने के साथ-साथ खेती और समाज कार्य भी करते हैं। इस इलाके में पहले से ही एन.टी.पी.सी. व एच.टी.पी.पी. के पॉवर प्लांट मौजूद हैं, वह इसी के नजदीक ही तीन और प्लांट वन्दना एनर्जी, वन्दना विद्युत, धीरू पॉवर आ चुके हैं। इन प्लांटों ने कई गांव की सैकडों एकड़ खेती वाली जमीन का अधिग्रहण किया है और अभी चल भी रहा है। जबकि यह इलाका आदिवासी बहुल होने के कारण वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आता है। लेकिन कम्पनियों के दलाल और डी.एम., एस.डी.एम. जैसे सरकारी अधिकारी मिलकर के आदिवासी किसानों की जमीन लूट रहे हैं। आदिवासियों की जमीन को चालाकी से कम्पनियां एक आदिवासी के नाम खरीद कर पुनः उस एक आदिवासी से जमीन कम्पनी अपने नाम पर खरीद लेती है ताकि देखने में यह लगे कि कम्पनी के द्वारा सिर्फ एक आदिवासी की जमीन ली गई। इस तरह के कई धोखे इस इलाके में आदिवासियों के साथ हो रहे हैं। सिंचाई के तालाब को उद्योगों के इस्तेमाल के लिए दिया जा रहा है। पेशा एक्ट आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए लाया गया था लेकिन सरकारी अधिकारी ही इसका उल्लंघन कर रहे हैं। कम्पनियों और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई हुई है। राखड़ का प्रभाव फसलों से लेकर वनोपज तक पर पड़ ही रह है। विनोद जी के अनुसार वर्तमान सरकार भष्ट हो चुकी है और अत्याचारियों का साथ दे रही है।
Chhuri
मेरा नाम विनोद कुमार पांडेय है, मैं ग्राम- छूरी, तहसील– कटघोरा, जिला– कोरबा, छत्तीसगढ़ का रहने वाला हूँ, और मेरा व्यवसाय कृषि है और साथ में सामाजिक कार्य भी करता हूँ।
आपके यहाँ कौन सा पॉवर प्लांट आ रहा है?
यहाँ पर वंदना विद्धुत, वंदना एनर्जी और धीरु पॉवर भी धनरास में आने वाला था, लेकिन अभी केस लग जाने के कारण रुका हुआ है, लेकिन ये तीन बिलकुल नजदीक में समझिए।
पहले से ही यहां पर NTPC, HTPP स्थापित हैं और पश्चिम के ओर कटघोड़ा के नजदीक छूरी बन्दना पॉवर से थोड़ा आगे गोदावरी का भी अर्जन चल ही रहा है। इतने सारे पॉवर प्लांट यहाँ पर आ रहे है।
वंदना विद्युत और वंदना एनर्जी दोनों मिलकर कितने मेंगावाट के हैं?
एनर्जी 60-65 मेगावाट और वंदना विद्युत शुरू में 540 मेगावाट का था, अब बढ़ा कर 1100 मेगावाट या 1150 का किया हुआ है।
यहाँ वंदना कितनी जमीन अधिग्रहण कर रहा है?
पहले इसको जरूरत 540 एकड़ की थी लेकिन समय-समय इसे बढ़ाया गया और 1100 एकड जमीन ले लिया गया। जबकि इसका काम शुरू में 500 एकड ही लेने वाला था, लेकिन यहाँ ढीला-ढाला रवैया देखा तो अचानक बढ़ा दिया गया।
तो 1000 एकड जमीन कब्जा हो गया है?
हाँ... बाउंड्री वाल खीच लिया है। बाकी तो आप देख ही रहे है.........
कौन-कौन सी पंचायत और किस-किस गांव की ज़मीनें गई है?
इसमें चार पंचायत के और पाँच गाँव। जिसमें चार पंचायत में पहली पंचायत छुरी खुर्द है, जिसमें दो गांव है, झोरा और छुरी खुर्द। खुद गांग पुर गाँव हैं। सलोरा ग्राम पंचायत से जमीन जा रही है, और पोढ़ी ब्लाक बांझीमन पंचायत के दर्राभाठा गाँव की जमीन भी जा रही है।
जमीन अधिग्रहण की क्या प्रक्रिया रही है, विस्तार से बताएं?
जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया धारा 4 के प्रकाशन के बाद से चालू हो जाती है। उसके पहले जनसुनवाई, जनसभा..
धारा 4 का प्रकाशन क्या होता है?
सरकार की ओर से एक घोषणा है कि इस काम के लिए इस जमीन को लिया जा रही है। उसके बाद जितनी जमीन का उनके द्वारा सीमांकन किए रहते हैं उसमें कितने किसानों की जमीन जा रही है उसकी सूची बनाई जाती है कि किसकी कितनी जमीन जा रही है। इसका एक ब्यौरा तैयार करते है तो धारा 4 का ही नाम देते है।
फिर उसके बाद ...
उसके बाद जो भू अर्जन का नियम है। यहां हम लोग भूमि अधिग्रहण को ही फ़र्जी मान रहे हैं। इसलिए, क्योंकि यहां पर पेशा एक्ट लागू है। पेशा एक्ट में ग्राम सभा की मंजूरी बहुत जरूरी है। लेकिन ग्रामसभा द्वारा अनुमति न दिए जाने की बावजूद भी भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही यह लोग करते ही गए। हमारे शिकायत पर भी कहीं पर कार्यवाई नहीं रोकी। हमारी बात को नहीं सुना गया।
ग्रामसभा के दौरान आप थे?
हाँ। मैं ग्राम सभा के जन सुनवाई में था।
क्या हुआ था उस दिन?
जन सुनवाई में कलेक्टर होता है, मैं वंदना एनर्जी वाले सुनवाई में शामिल नहीं था लेकिन धीरु पावर वाले में था।
थोड़ा धीरु वाले जन सुनवाई को ही विस्तारपूर्वक बताइये।
जन सुनवाई में वहां पर दिन एस.डी.एम. और एक पर्यावरण अधिकारी मौजूद रहकर आपत्ति लेते हैं। इस जन सुनवाई में घोर विरोध हुआ था। जब इन्होंने नहीं माना तो मामला ट्रिब्यूनल कोर्ट में गया और अंततः धीरु पावर पर रोक लगी। जो हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। यह लोग पर्यावरण के मानदंडों का पालन नहीं कर रहे है। जिस अधिकारी को यह जानकारियाँ भेजनी चाहिए उसको झूठा बयान करके भेज रहा है। इसके बावजूद इसको अनुमति मिल रही है। पर्यावरण मंत्रालय में भी हम लोगों ने शिकायत किया कि यह रिपोर्टिंग गलत भेजी जा रही है। इनको अनुमति न दिया जाय लेकिन अनुमति तो यह ले चुके थे।
तो एक तरीके से कहें कि मीटिंग फ़ेल होने बावजूद जबरदस्ती कब्जा कहेंगे आप?
हाँ ...........क्योंकि सरकार को कानून बनाने का, संशोधन करने का और पालन कराने का अधिकार है, कहीं पर तोड़ने का अधिकार नहीं है लेकिन और यहाँ पर सरकार खुद कानून तोड़ रही है। पेशा एक्ट बनाया गया। पेशा एक्ट से बडा यह मुख्यमंत्री के एम.ओ.यू. को मान रहे हैं। क्या एम.ओ.यू. कोई कानून है? कि उस नीति का पालन करने के लिए आप कानून को तोड़ दे। यहां यही सब यहाँ हो रहा है।
झोरा गाँव का क्या मामला है?
झोरा गांव का भी वही मामला है कि वहां के जितने भी आदिवासी और किसान, जो पहले ही तीन बार विस्थापित हुए है, उनकी जमीन ली गई। सिंचाई के समय में जब बांध बना, उस समय जो उनकी जमीन ली गई।
कौन सा बांध?
बांगों बांध। बांगों बांध के उस क्षेत्र में वह लोग आते हैं बैराज दर्री में जब बना तो डुबान क्षेत्र में वह आता था तो वह जमीन उनकी ले ली गई न। एक बार तो यह था। और दूसरी बार NTPC के अर्जन के समय उनकी जमीन ली गई। दो बार उनकी जमीन ली गई। धनरास में जो डैम बना उसमें भी उनकी जमीन गई। उसके बाद अभी तीसरी चरण में जो अर्जित की जा रही है राखड बांध, उसमें भी उनकी जमीन गई है। और अब यह वंदना पावर के लिए जमीन उनकी जमीन ली जा रही है तो वे दुखी होंगे ही होंगे न, कि बार-बार उनके साथ वही हो रहा है। अब एक तरफ तो सरकार कहती है कि आदिवासियों का विकास कर रही है उनके लिए सरकार कार्य कर रही है। यहां पर कहां हुआ?
पेशा एक्ट आदिवासियों के लिए बनाया गया, यह बताइये की यहाँ इसका पालन होता है या उलंघन?
उल्लंघन हुआ है, ग्राम सभा के समय गांव वाले बोले कि हम जमीने नहीं देंगे, तो बात यही पूरी हो गई। पेशा एक्ट वही हुआ कि जब विरोध किए तो उसका पालन होना चाहिए था। और अब दूसरे हथकंडे अपनाएं जा रहे है, हमने सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में हमने साफ़ कहा है कि ’ग्रामसभा की ओर से कोई अनुमति नहीं दी गई’ तो किसकी अनुमति से आप जमीन अर्जित कर रहे हैं?
पेशा एक्ट का पालन करते तो ग्राम सभा ने तो कह दिया कि हम जमीन नहीं देंगे तो आपको उसको मान लेना चाहिए था। अब उसके बावजूद भी उस जमीन को आर्जित करके अवार्ड जारी करते हैं, तो किस कानून और नियम के तहत आपने किया? और रहा सवाल अनिवार्य अर्जन का, तो आप निजी पावर प्लांट के लिए लागू करेंगे? जिसका फ़ायदा एक ही व्यक्ति को जा रहा है और अनिवार्य अर्जन में कहते हैं।
और उसमें उन्होंने साफ लिखा है कि यह अर्जन हम रोजगार देने के लिए हम कर रहे हैं, इसमें कितने लोगों को रोजगार मिला है? जितने लोगों की जमीन गई है?
यहां तो न राज्य शासन के हिसाब से पगार मिल रहा है न किसी प्रकार का उनका पी.एफ़. कट रहा है। कुछ भी तो नही हो रहा है, न फैक्ट्री एक्ट लागू है। शासन एक तरह से गुंडागीरी को संरक्षण प्रदान कर रही है। आज का कलेक्टर कहता है कि पहले का जो अवार्ड जारी किया, कैसे किया है, क्या किया, उसमें क्या दिक्कत है, या न्यायिक प्रक्रिया में लटका हुआ है तो उसका रिज़ल्ट वो जाने, उसका निराकरन वो करेगा।
उसके बाद वही जबर्दस्ती और भ्रष्टाचार चल रहा है तो उसको हम लोग क्या कहेंगे?
उसके बाद कलेक्टर कहता है कि वह अवार्ड जारी कर दिया है इसलिए जो जो आदेश मिलता जाएगा चाहे वह शासन की जमीन हो या निजी हो उसमें में काम कराता रहूंगा।
झोरा वाली समस्या है कि स्टे लगने के बावजूद भी बुधवार सिंह की जमीन को पाट के और आगे बढ़ के हम शासन की जमीन में काम करेंगे, यह लोग अड़े हुए हैं। यह हमारा कहना है कि स्टे लगने के बाद भी आप ने उस जमीन को पाटा कैसे? पहले उसका निराकरण करिए। उसके बाद शासन के जमीन पर आप काम करिए। लेकिन यहाँ पर फुल दादागीरी है। हमारे हाथ में शक्ति है और शासन है हम चाहे उल्टा करें या सीधा करें। कहाँ हैं यहाँ लोकतंत्र?
इसलिए मैं कहता हूं हैं कि लोकतंत्र हाइजैक हो गया है, क्योंकि यह सब आल इंडिया बेस पर दिख रहा है। अभी दिल्ली में ही जो दामिनी वाला कांड हुआ, इसके पहले राम देव बाबा के आन्दोलन पर जिसमें प्रकार से उसका दमन किया गया, और सरकार लोकपाल को लाने के लिए जिस प्रकार से टेढ़ी-मेढ़ी चाल चल रही है, यह सब स्पष्ट कर रहा है कि लोकतंत्र का, मतलब इन लोगों ने लोकतंत्र का उठाईगीरी कर लिया है।
1100 एकड़ जमीन वंदना पावर प्लांट में गई है, इसमें कितने किसान काबिज थे?
वंदना विद्युत में 300 किसान प्रभावित हुए।
तो क्या उनको वहाँ रोजगार मिल रहा है?
हाँ...... कुछ लोग जा तो जरूर रहे हैं। 40 -50 परिवार के एक-एक सदस्य, और कुछ ऐसे लोग भी जा रहे हैं जिनकी ज़मीनें नहीं गयी है, लेकिन यह भ्रम फैलाया जाता है कि सारे लोग जा रहे हैं, जबकि ऐसी बात नहीं है। उअर उनका पेमेंट भी उसी ढंग से है, बारह घंटे उनसे काम कराया जा रहा है, और यदि पेमेंट देखेंगे तो किसी को तीन हजार, तो किसी को चार हजार इस प्रकार से तो वेतन मिल रहा है। वही जे.सी.बी. चलाने वाला दूसरी कम्पनी में पहले 15,000 या 40,000 पेमेंट पाता था, यहां पर वही तकनीकी काम ठेकेदार के अंडर में रहकर काम करे तो 6,000 या 7,000 रुपया मिल रहा है।
उसी तकनीकी काम को जो एच.सी.सी.एल. में कर रहा है वह लाखों रुपया पा रहा है और उसी तकनीकी काम को यहाँ पर कुछ भी नहीं मिलता।
आमतौर पर कोई फ़ैक्ट्री आती है तो यह कहती है कि गाँव में तमाम तरह की सुविधाएं देगी तो इस तरह की सुविधाओं के बारे में आप कुछ बतायेंगे?
जैसे वहां पर अपनी मां गंगा के नाम से हास्पिटल खोला हुआ है, वहाँ केवल जिसका मकान लिया हुआ है उसका केवल किराए का भुगतान करता है। वहां कौन स्टाफ़ है, किस समय हास्पिटल खुलता है, क्या होता है, जाकर देख लीजिए आप। यह इसकी सुविधा है।
इसके पहले वाली जो टैंकर का पानी, जिसमें छूरी नगर पंचायत लिखा हुआ है, उसमें अपना बैनर डालकर यह लोग फोटो खींचकर भेज रहे हैं, कि हम लोग जन कल्याण कर रहे हैं।
खाली टंकी, पानी तो था ही नहीं, ऐसे ही ड्रम को निकालकर, खाली बाल्टी रखकर, कुछ लोगों को लालच देकर, मिठाई खिलाकर फ़ोटो खिचवा रहे हैं, गर्मी के समय। जनकल्ल्याण में हम इस प्रकार सहयोग कर रहे हैं।
यह गिनाते हैं कि सलोरा में हमने लाईट लगाया है, फलाना किया है या वहां पर यह कर रहे हैं, ऐसा कुछ नहीं है।
बल्कि सड़क को बर्बाद कर दिए। एक तरफ जो सलोरा में प्रधानमंत्री योजना वाली जो सडक है, उसमें प्रतिबंध लगाने के लिए नगर पंचायत अध्यक्ष गोविंद सिंह राजपूत कि उसमें भारी वाहन मत जायं, बोर्ड लगाया हुआ था, तो यह जो इनके अपने दलाल गुर्गे हैं, जिनका उपयोग करके सलोरा वाली जमीन अर्जित किया है, उन्हीं को खडे करके हटवाने के लिए प्रेशर बनाए, कि हमारी बडी गाडी गांव तक नहीं पहुंच पाएगी।
उस सडक पर चैन वाले बुलडोजर चल रहे हैं, सरकार या प्रशासन के लोग उस पर क्या कार्यवाई किए? केवल जो आंदोलनरत जो लोग थे, हम जैसे लोगों पर केवल फ़र्जी एट्रोसिटी एक्ट लगा करके 80, 84 लोगों के उपर में, और आंदोलन को दबाने के लिए जेल भेजे बस। तो ये अपराधी का साथ दे रहे है और निरअपराधी पर और उसी प्रकार की मानसिकता वाले समाज में अपराधी हैं उनको गवाह बना करके, उनके मार्फ़त से रिपोर्ट करवाके, उसमें यह लोग सहयोग कर हैं।
और अगर हम अपनी गाय गुम हो जाने की एफ़.आई.आर, जो कि पांच बार ऐसा हो गया, हम थाने में जाएगें तो उसका एफ़.आई.आर नहीं होता है।
क्योंकि उनको चोरी के सामान का आंकडा देना पडता है, वह मिलेगा यह कोई जरूरी नहीं, क्योंकि यह लोग काम ही इस तरह का कर रहे हैं। पुलिस वाले गइया-बछरू खोजने जाएंगे?
तो ये लोग गाय की चोरी का रिपोर्ट नहीं करते। जबकि जसपुर बाजर में, इस इलाके के 150 किलोमीटर से जानवर की चोरी करके और वहां पर ले जाकर बेच रहे हैं। पूरा वो जा रहा है जिसको हेट कहते हैं, समूह, गाय-भैंस का समूह। उसमें 5-10 जानवर खरीद कर रखेगे और रास्ते में जो उडेल्ला जानवर मिल रहा है उसको सम्मिलित करके ले जाकर वहां बेच दिए हैं।
ढिढोलभाटा के जानवर को जब इस प्रकार से खेद कर ले गए थे, जो जसपुर में मिला था, इस पर कार्यवाई के लिए भी आया था, यह जो संसदीय सचिव भैया लाल जो वहां वाले हैं, इनकी जानकारी में भी है। कुछ दिन के लिए बाजार भी बंद किया गया था। तो यह सब चल रहा है, इसमें प्रशासन के लोग सहयोग करते हैं। यानी एक प्रकार से माने व्यापार बना लिए हैं, जितने भी अपराधीकृत्य हैं उनका इन लोगों को एक हिसाब से रायल्टी मिलना चाहिए, उनका हिस्सा मिलना चाहिए। फ़िर उसके बाद फिर वह अपराध नहीं है वह एक नंबर का धंधा है। इस प्रकार से यह लोग कर रहे हैं।
किसानों के खेत गए, और एक दूसरा सवाल है कि पानी। वंदना विद्युत किस तरह से और किसका पानी इस्तेमाल कर रहा है?
पहले ये नियम बना हुआ था कि इस प्रकार के उद्योग को जो बांध बने हुए हैं, उसके नीचे की धारा से इनको पानी दिया जाए। उसी कार्यक्रम में वंदना विद्युत को भी, यह जो दर्री बैराज जो बना हुआ है, उसके नीचे 10 किमी पर सर्वमंगला नाम की एक जगह है, वहाँ से इसको पाइप लाइन के द्वारा पानी लेने की अनुमति दी गयी थी। जिसमें उसकी लागत ज्यादा आ रही थी। चूंकी सरकार इसके लिए उदार है इसलिए इसका पैसा बचाने के लिए अप स्ट्रीम से पानी दे दिया।
और वही पाइप लाइन झोरा गाँव वालों की तरफ से जा रही है। जिसमें बहुत सारी निजी जमीन जा रही है, उनके जंगल, चरागाह, शासकीय जमीन, घास जमीन ... इस तरह की जमीन सब जा रही है। यह सब पाइप लाइन के विस्तार के लिए है। इसी का वह लोग विरोध कर रहे हैं। एक तरफ़ आप आदिवासियों के हित में कुछ कर ही नहीं रहे हो, मना करने के बावजूद शासन की जमीन पर हम काम करेंगे, करके जबरदस्ती कर रहे हो। अभी भी अडे हुए हैं वे लोग।
जब आप जबरदस्ती कर भी रहे हो तो किस प्रकार जबरदस्ती करते हैं उसको देखो। अब उनके पास तो कोई बंदूक है नहीं, कि बराबर नक्सलियों की तरह लडाई लडेंगे। वह केवल सह रहे हैं, और देख रहे हैं।
तो वहां झोरा वाली जमीन में पेशा एक्ट का उल्लंघन हुआ है, आदिवासियों की जमीन नहीं ली सकती, ऐसा कोई कानून नहीं बना है, उसका उल्लंघन हो रहा है। और बाकी जो नक्शा-खसरा की हेरा-फ़ेरी आम बात है। अभी भी उसको तरीके से नापा जाय तो मुझे ऐसा लगता है कि 100-150 एकड जमीन ज्यादा कब्जा करके बैठा है। लेकिन अंदर में कितनी जमीन है उसको कौन नापेगा-तौलेगा।
जो प्रशासन उसका सहयोग कर रही है वह तो उसके विरूद्ध जायेगी नहीं। क्योंकि उनके मार्फ़त से, जिसको घूस कहते हैं, वह रकम इनको पैकेज के रूप में मिलता है। उसके बाद पब्लिक की चाहे इसी की तैसी हो। अब इसमें आदिवासी नेता को भी कहेंगे, चाहे राष्ट्रीय स्तर का हो या स्थानीय स्तर का। यह लोग क्या कर रहे हैं? कांग्रेस की ओर से आदिवासी नेता बोध राम कंवर विधान क्षेत्र के, ननकी राम कंवर भाजपा की ओर से, और गृहमंत्री भी हैं। जब उनके पास जब हम लोग इस मुद्दे को लेकर गए थे, तो उन्होंने कहा था कि चक्काजाम नहीं करना, बाकी जैसा आंदोलन आप लोग कर रहे हो करो, मेरी ओर से सहयोग है।
और आखिरी में वही ननकी राम कंवर जब हम लोगों ले ऊपर फ़र्जी जब धारा लगी, तो उसी के कारण तो हम लोग अंदर जेल में थे न। एक तरफ़ ननकी राम कह रहा है कि किसी भी निरअपराधी के उपर कोई केस नहीं होगा और अपराधी बख्शे नहीं जाएंगे। तो यहां पर अपराधियों को बख्शा जा रहा है और निरअपराधियों को अंदर किया जा रहा है। उपर में जा करके दोनों ही पैसे में अपनी ईमानदारी बेच रहे हैं, चाहे भाजपा हो या कांग्रेस।
पर्यावरण से एन.ओ.सी. जय राम नरेश ने दिया और एम.ओ.यू. रमनसिंह ने किया। तो दोनों एक ही खेल है, पूंजीपतियों को सहयोग करना। सहयोग करने पर पूंजीपतियों से इनको पूंजी भी मिलता है, जो मिल रहा है।
प्रदूषण के मामले मे कोरबा अभी देश में शायद पांचवे नंबर पर है और प्रदेश में शायद पहले नंबर पर। आप के बगल में दो पावर प्लांट खुल रहे हैं जबकि आप के गाँव के बगल में ही कई राखड़ बांध हैं, तो इसके बारे ...... ?
यह क्रिटिकल पाल्युटेड एरिया में आता है। दूरी नापने का पाल्युशन बोर्ड का एक कार्यालय है। उसको उन लोगों ने माना है। यह दूरी 15 किमी होनी चाहिए। यहां से एन.टी.पी.सी. 15 किमी पर है। इसके अन्दर में एन.टी.पी.सी. का ऐश डैक है वो पता ही है आपको, और HTPP का, HTPP का ही एक और राखड़ बांध डिंडोलभाटा में बन रहा है, अब यह वंदना का बनेगा। एन.टी.पी.सी. के दो राखड़ बांध है। इस प्रकार यहां पर 5-6 राखड़ बांध हैं।
उसका प्रभाव तो पड़ेगा ही पड़ेगा। एक ही धनरास बांध के बारे में सुने होंगे, घमोटा में जिस समय यह फूटा था, जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई थी, उसके पहले से ही यह लोग नदी में राख़ गिरा रहे थे। दर्री बैराज आज पटा हुआ है। जांच कर के देख लीजिए आप, नीचे राख जमा हुआ है, कहाँ से आई है? बैराज के ऊपर था या बांगों बांध के दूसरी तरफ तो कोई पावर प्लांट नहीं है, फिर वह राख़ आएगी कहाँ से? सब NTPC का है।
इसका लोगों के स्वस्थ्य पर, वनोपज पर, फसलों पर क्या प्रभाव पर रहा है?
सब पर रहा है। यहाँ सांस के रोगी, पेट के रोगी ज्यादा मिलेंगे। इसमें मरकरी और लेड (शीशा) जैसे पदार्थ हैं लेकिन इसे यह लोग ओपन नहीं करते हैं, कि इसमें यह यह है। प्राइवेट लैब वाले चेक करते हैं तो जानकारी मिलती है कि इसमें रेडियो एक्टिव पदार्थ हैं। जिसका प्रभाव है।
क्या यहाँ फसल की उपज में कमी आई है?
खेत में जब राख़ सीधा पाइप फट कर जाएगा तो उसका प्रभाव तो पड़ना ही पड़ना है। एन.टी.पी.सी. राखड़ बांध के नीचे की जितनी भी जमीन है, एक तो दलदली हो गई है और राखयुक्त हो गई है। उसमें से एक प्रकार की रासायनिक गंध आती है। आप ज्यादा देर तक वहाँ खड़े नहीं रह पाएंगे। उस दुर्गन्ध से थोड़ी देर में आपको वहां से हटने का मन करेगा।
धान के पत्ते बड़े बड़े हो जाते है और बदरा जैसे हो जाता है। उसमें फसल होती ही नहीं। जोतने के समय आप जोत नहीं सकते, ट्रैक्टर ही पूरा डूब जाता है, भैस से जुताई के समय उनका पूरा पेट जमीन से छू जाता है और वे चल ही नहीं पाते, तो आप जोतेंगे क्या? यह स्थिति वहाँ पर हो जाती है। कुमार बंद वालों की जमीन तो खराब हो ही गई थी, देखे ही होंगे आप उनकी दुर्दशा।
हसदेव नदी के किनारे जंगल का पूरा एक बेल्ट ही है तो जंगल पर इसका किस तरह का असर पड़ेगा?
राख़ उड़ के उसके पत्तों पर जमी रहती हैं, और उसके बाद में यह उसकी नमी को भी सोखता है, अब इसके बारे में एक कृषि वैज्ञानिक ही ढंग से बता पाएगा। लेकिन पत्तियां उसकी मुडी-मुडी रहती है उसमें वो ताजगी नहीं रह पाती हैं।
वनोपज पर इसका कोई प्रभाव पडा है?
लकड़िया काफी कटी हैं। पहले इसमें आवलें के भी बहुत पेड़ थे, चार के भी जंगल थे, बैतूल के बाद में यहाँ चार (पेड़) दिल्ली के मार्केट में दूसरे नम्बर का माना जाता था। लेकिन अब आप जाएंगे तो आपको चार का पेड़ ही नजर नहीं आएगा। बहुत कम हो गए हैं, बहुत दूर-दराज में पेड़ हैं, नहीं तो आप नदी के उस जाते, कोड़ियाघाट के पास से ही चार मिलना शुरू हो जाता। अब यह सब नहीं है।
लकड़ी की अंधाधुंध कटाई भी हुई है, सड़क बनने के बाद में लोग-बाग या आदिवसियों को चलने-फिरने की सहूलियत तो हुई है। लेकिन कटघोड़ा और कोरबा में बैठे हुए राईस मिल वाले और लकड़ी के माफियाओं ने रात के समय लकड़ी काटने का काम किया, इससे जंगल काफी कट गया है। इसका प्रभाव इस रूप में पड़ा है, राख का जो पडा हओ सो पड़ा है।
छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के कई होर्डिंग्स आप देखे होंगे, जिसमें वे कहते हैं की विकास के रास्ते पर बहुत तेज इस राज्य को लेकर जा रहे है, आप इस विकास को कैसे देखते हैं?
हमको भी विकास चाहिए, हमको भ्रष्टाचार मुक्त विकास चाहिए और उनको भ्रष्टाचार युक्त विकास चाहिए। भ्रष्टाचार युक्त होगा, तब उनका प्रतिशत बनेगा। आज यह बात हर कोई जान रहा है, चाहे इस बात को कोई सिद्ध कर पाए या न कर पाए और हम लोग इसको सिद्ध भी कर रहे हैं तो हमको इस पर निर्णय या परिणाम देने वाला कौन है, बताइये? कहीं से तो परिणाम नहीं मिल रहा है बल्कि उनको बचाया जा रहा है।
तो यह रमन सिंह का विकास भ्रष्टाचार के लिए विकास है, पूँजीपतियों के लिए विकास हैं। आम आदमी तो और नीचे जा रहा है, उसकी दुर्दशा और बदतर होती जा रही है। राहत उन्हीं लोगों को है जिनका BPL में नाम हैं। उसमें भी ईमानदारी नहीं है कि सभी वाकई में गरीबी रेखा के मापदंड के अंदर हों, ऐसे ही व्यक्ति हो उसमें ऐसा नही है, उसमें जो प्रभावशाली लोग हैं, जो पूंजीपति भी है, जिसके नाम से जमीन है, वो भी बी.पी.एल में आ गए हैं, और उसका लाभ उठा रहे हैं। तो ऐसे में आप कैसे कहेंगे की रमन सिंह गरीबों के लिए, पिछड़ों वर्गों के लिए, या आदिवासियों के लिए काम कर रहे हैं?
यह शब्द अपने आपको बचाने के लिए या बातों को घूमा-फिरा कर, अपनी सही बात दिखाने के और बचने के लिए बना हुआ हैं कि हम विकास कर रहे हैं। क्या कहेंगे वो? और करेंगे भी क्या, क्या चीज करने के लिए मुख्यमंत्री बने हैं वह, विकास तो उनको करना ही पडेगा। कोई भी मुख्यमंत्री करता ही है। लेकिन वास्तव में उस विकास का लाभ मिल किसको रहा है? इसको भी तो देखना पडेगा। जब आप एक पूंजीपति को पॉवर प्लांट का मालिक बनाते हैं, तो उसका जो मुनाफ़ा बनेगा, तो उस ज्यादा मुनाफे को तो वही खाएगा न, जो पावर प्लांट का मालिक है।
आप आदिवासी का विकास करने की बात कर रहे हैं तो इस प्रकार के पावर प्लांट को किसी आदिवासियों को क्यों नहीं बना कर देते हैं, आप किसी हरिजन के समिति को क्यों नहीं देते हैं, तो आपके दोंनो उदेश्यों की पूर्ति होगी। बिजली भी आपको प्राप्त होगा और आपके पावर प्लांट का मालिक एक वर्ग को आपने बनाया, जिसका विकास करना चाहते हैं, यह भी पूरा होगा। लेकिन इनको तो वैसे करना नहीं है, लाई-लप्पा देना है, आंकडों के जरिए सिर्फ बताना है कि हमने ऐसा किया, वैसा किया, फ़लाना किया। लेकिन होना कुछ नहीं है। वह लोग ज्यों के त्यों हैं।
वंदना में एक मिंज नाम के आदिवासी हैं, जरा उस केस के बारे में बताएँगे?
विंसेंट मिंज, वंदना पावर प्लांट का, जिस समय अर्जन की कार्यवाई चल रही थी, सेक्योरिटी ऑफिसर है। उसके पहले वह आदिवासी है। यहां आदिवासियों के जमीन को एक व्यक्ति के नाम पर करने के लिए उसका उपयोग किया गया। उसके द्वारा खरीदी गई आदिवासियों की जमीन......
ऐसा क्यों किया गया?
इसलिए किया गया कि इसमें आदिवासियों की संख्या ज्यादा दिखती है। मान लिया यहाँ पर 40 आदिवासी हैं तो 40 आदिवासियों की जमीन का आंकडा अचानक दिखता कि वंदना वाला इतने सारे आदिवासियों की जमीन अर्जित कर रहा है। अब जब उतने आदिवासियों की जमीन को एक आदिवासी के नाम पर खरीद लिया तो वहाँ पर उसकी संख्या एक दिखेगी न, इसीलिए इसने ऐसा किया। 52-55 लाख रूपए की जमीन उसके द्वारा खरीदी गई है जबकि वह बेनामी संपत्ति कहलाती है।
कायदे से कोई शिकायत करेगा, शिकायत पर यह लोग (शासन में बैठे हुए) कार्यवाही नहीं कर रहे हैं तो संज्ञान लेकर वह लोग कार्यवाही कैसे करेंगे? जबकि संज्ञान के तहत यह कार्यवाही होनी चाहिए। कि इतना रकम यह आदमी कहाँ से प्राप्त किया। इस पर सरकार जांच नहीं कर रही है। यही इन लोंगों की उदारवादी नीति है।
तो फिर जमीन लेने के बाद मिंज के पास आई उसके बाद?
उसके बाद फिर वंदना के पास वह जमीन है। अब किस तरह से उसको, मतलब जमीन को इसमें मिलाया है, उसको शेयर दिया है, या उसके बाद उससे खरीदा है, यह दांव-पेंच हम लोग नहीं जान रहे हैं, क्योंकि प्रशासन के लोग आज हमको सहयोग नहीं करते। जनसूचना के अधिकार के तहत हम लोग जो जानकारी मांगते हैं, उसमें जानकारी ही नहीं देते हैं, घुमा-फ़िरा देते हैं।
यह किस पंचायत की जमीन थी जो मिंज ने ली है?
यह ग्राम पंचायत छुरी की जमीन थी। और मजे की बात मैं बता रहा हूं, कि वंदना एनर्जी की जमीन जो ली गई है, वहां का जो सरपंच है, वह बनावटी आदिवासी है, भोरिया और भारिया। यह लोग भोरिया जाति के लोग हैं। यह लोग अपने आपको आदिवासी बनाने के लिए भारिया बनाते हैं और यह बात जब उठी थी किसी समय पहले, जो जितने भी भारिया लोग थे, जो सर्विस में थे, उनको सरकार ने सरकारी सेवा से अलग भी कर दिया था, निलंबित है वह लोग। और यहीं पर वह व्यक्ति जो है उसको सरपंच का प्रमाण-पत्र प्रशासन में बैठा व्यक्ति तहसीलदार देता है, और उसके बाद वह सरपंच बनता है, और वही व्यक्तिगत रूप से यह होशियारी कर रहा है।
तो यह तिकडम यहां पर चल रहा है, कि जमीन अर्जित करने के लिए गैर आदिवासी व्यक्ति को आदिवासी बना दिए, अब किसको इतनी फ़ुर्सत है कि एक-एक मुद्दे को लेकर शिकायत करने जाय, कोर्ट में जाय। इन सबका निराकरण करने के लिए शासन के पास तो ऐसी कोई योजना नहीं है....
कौन से गांव का सरपंच है?
छूरी खुर्द।
नाम क्या है?
उसका नाम लखन लाल भारिया लिखता है जबकि भोरिया है। वहीं बात यहां पर है। कोरबा जिले के कई पंचायत हैं, जहां पर गैर आदिवासी लोग, आदिवासी सरपंच बनकर बैठे हैं। उसमें एक छूरी भी है।
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