063: Korba RTI activist and sand contractor
Cinematographer: Sunil Kumar
Duration: 00:07:53; Aspect Ratio: 1.778:1; Hue: 108.969; Saturation: 0.023; Lightness: 0.420; Volume: 0.252; Cuts per Minute: 1.774; Words per Minute: 138.256
Summary: मनीष राठौर हसदेव नदी से बालू निकालने का काम करते हैं और साथ ही आर.टी.आई. ऐक्टिविस्ट हैं। हसदेव नदी राखड़ से पटी हुई है जिसमें मुख्यतः एन.टी.पी.सी. (नेशनल थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन) और सी.एस.ई.बी. (छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल) के प्लांटों से राखड आती है। प्रतिदिन करीब 10,000 टन राखड़ नदी में छोड़ते हैं। इससे राख बालू में मिल जाती है और साफ बालू मिलने में काफी परेशानी होती है। नदी में सीधे रेत मिलना मुश्किल होता है। पहले काफी गहराई तक खोद कर राखड़ को निकालना पड़ता है फिर रेत मिलती है। इससे लागत भी बढ़ जाती है। इसी नदी का पानी पूरा कोरबा शहर इस्तेमाल करता है। शहर में कई नाले हैं जिनमें राख छोड़ी जाती है जैसे अहिरन नदी, ढेंगुर नाला और भी कई हैं। यह सब हसदेव में जाकर मिल जाती है। इससे हसदेव नदी के प्रदूषण का अन्दाजा लगाया जा सकता है। जबकि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इन कम्पनियों का एग्रीमेंट होता है कि वह पानी को साफ करके ही नदी में प्रवाहित करेंगे लेकिन ऐसा कहीं नहीं होता है। फिलहाल महानदी की मुख्य सहायक हसदेव नदी नाले में तब्दील हो चुकी है।
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Korba
यह गंदा पानी मुख्य नदी में जाकर मिलता है और पूरे नदी के पानी को गंदा कर देता है। यह नदी का पूरा इलाका है और जब बाढ आता है तब यहां तक आ जाता है।
यह अंदाजन कितनी चौडी होगी?
लगभग चार या पांच सौ मीटर चौडी होगी।
अभी हम कम चौडी जगह पर खडे हैं। नदी की चौड़ाई जहां ज्यादा वह दूर है। वहां वह फ़ैल गई है।
आप यहां बालू की खुदाई कब से कर रहे है?
पिछले चार साल से। हमें समस्या समय यह होती है कि नदी से सीधे रेत नहीं मिलती है। हर साल बारिश के बाद एक लेयर जम जाती है। फिर बारिश होती है उसके बाद एक नया बालू का लेयर आ जाता है फ़िर अगले साल राखड आता है और फ़िर अगले साल बालू आ जाता है यानी कई लेयर में राखड़ बालू, राखड़ बालू मिल जाता है। तो हमें बहुत मेहनत करके पहले कचडा हटाना पड्ता है फ़िर उसमें से बालू निकलता है।
जैसे कि वह देखिए, जो तंबू के पास पडा हुआ है न, वह ऐश (राख) है। वह गीला है इसलिए ऐसा दिख रहा है। उसको पहले हमने हटाया। उसके बाद पीछे हमने रेत निकाल कर रखा है। यह देखिए, यह जो पूरा का पूरा हिस्सा है, मिट्टी का जो टीला है पूरा कचडा है, फ्लाई ऐश है।
दूसरी नदियां जैसे महानदी या अरपा या और भी नदियों में यह दिक्कत नहीं होती है, मशीन लगाते हैं और रेत उठा लेते हैं। हर साल नई रेत बह कर आती है। लेकिन यहां बिल्कुल ऐसा नहीं है। राख पहले आ जाती है और रेत तो बाद में आती है, और फिर वह सब मिल जाता है।
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अंदाजन प्रतिदिन कितने टन राख इस नदी में छोड रहे हैं?
लगभग यह दस हजार टन के आस-पास होगा।
प्रतितिन?
प्रतिदिन, रात 8 से 9 के बीच..
अगर आपको रेत निकालनी हो तो कितनी लेयर हटानी पडती है?
क्या है कि नदी बहुत बडी है तो यह जो राख है वह नदी के किनारे वाले हिस्से में जाकर इकट्ठा हो जाती है। अभी फ़िलहाल इकट्ठा हो रही है। हम लोग अभी रेत किसी और जगह निकाल रहे है और इसीलिए हम लोगों ने इस पानी को दूसरी जगह डाइवर्ट कर दिया है कि रेत में राखड न मिल पाए। लेकिन पानी को डाइवर्ट करने से पहले जो राख बालू में मिल चुकी है उसे एक या डेढ मीटर तक राख को हटाना पडता है फ़िर जाकर रेत मिलता है।
अच्छा इससे क्या रेत के मूल्य पर कोई फ़र्क पडता है क्योंकि राख मिल गई है?
हां। रेत के मूल्य पर फ़र्क आता है। ऐश बहुत ही बारीक होता है वह पानी के साथ मिलकर बालू में मिल जाता है। जिसकी वजह से सीमेंट ज्यादा मिलाना पड़ता है। इसकी वजह से रेत के उत्पादन का खर्च बढ़ जाता है। पहले हमें एक मीटर तक साफ़ करना पडता है फ़िर उस गड्ढे से बालू निकालना पडता है। यदि राख नहीं होती तो हमें सीधे एक बार में ही रेत मिल जाती और रेत में सीमेंट कम लगती। इसके साथ ही नदी औए पर्यावरण भी अच्छा रहता।
यहां सी.एस.ई.बी. और एन.टी पी.सी. सारे के सारे लोग यही कर रहे हैं। यह अपने ऐश डैक (राखड बांध) में भी यही करते हैं। ऐश डैक से निकालकर अहिरन नदी में मिला देते हैं और सी.एस.ई.बी. वाले ढेंगूर नाला के द्वारा इसमें मिला देते है।
इस नदी का नाम क्या है?
हसदेव।
हसदेव नदी में मुख्यत: किस पावर प्लांट का .... ?
एन.टी.पी.सी. और सी.एस.ई.बी. का।
एन.टी.पी.सी. और सी.एस.ई.बी.।
हां।
सी.एस.ई.बी. यानी?
छत्तीसगढ़ इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड।
छत्तीसगढ़ इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड।
जी।
यह जो सामने पॉवर प्लांट दिख रहा है, यह चिमनी वाली जो दिख रही है, वह सी.एस.ई.बी. का है..
और एन.टी.पी.सी. का पीछे है। यह आपके विजुअल्स में नहीं आएगा।
यह सी.एस.ई.बी. का है?
हां, यह सी.एस.ई.बी. का है।
और यह?
वह भी सी.एस.ई.बी. का है।
यह जो हम राख की इतनी मोटी परत देख रहे हैं इसके बारे में आप कुछ बतायेंगे कि यह किस तरह से ग्राउंड वाटर को प्रभावित करता होगा?
ग्राउंड वॉटर को इस तरह से प्रभावित करता है, बारिश का पानी बहुत ही प्राकृतिक और साफ़ होता है और वह पानी जो फ़िल्टर होकर नदी में या जमीन में जमा होना था, वह फिल्टर इस राख की वजह रूक जाता है। यह ब्लॉकेज कर देता है।
देखिए वह ब्लॉकेज इस तरह से करता है कि वहां का पानी वहीं रूक गया है बाकी पानी बह रह रहा है।
और किस तरह से यह नुकसान करता होगा?
यह तो न पीने के लिए और न रहने के लिए, किसी भी प्रकार के काम में नहीं आता है। यह पूरा पानी केमिकलयुक्त है। फ़्लाई ऐश के साथ प्लांट का इसमें और भी रॉ वॉटर है जो इसमें आते हैं।
प्लांट के साथ कोयल वाशिंग, आयल वाशिंग यानि कि पूरे प्लांट की गंदगी इसी में आती है और इससे लोगों के पास पीने का पानी नदी में बचता ही नहीं है। यहां से लेकर बीसों-पचीसों किलोमीटर दूर तक लोग इस पानी का उपयोग नहीं कर पाते हैं, पीने के लिए तो बिल्कुल भी नहीं इस्तेमाल कर पाते, नहाना उनकी मजबूरी है इसलिए वह नहाते हैं।
राख और प्रदूषण को रोकने के बारे में आप क्या कहना चाहेगें?
हमने छत्तीसगढ प्रदूषण बोर्ड को एक बार ही नहीं, कई-कई बार लिखित शिकायत की है और हमने उनको यह लगातार कहा कि छत्तीसगढ सरकार के साथ इनका एग्रीमेंट होता है उस एग्रीमेंट में यह लिखा होता है कि पानी लेने के बाद वाटर ट्रीटमेंट करके ही नदी में बहाएंगे और वह ट्रीटमेंट इतना साफ़ होना चाहिए कि लोग उस पानी को ग्लास से उठाकर पी सकें।
लेकिन इनकी स्थिति यह है कि इनके पास राख रखने की जगह नहीं बची है। यदि हवा में उडाएं तो समस्या, राखड़ बांध भरा हुआ है तो समस्या, तो इनको सबसे सुविधाजनक यही लगता है कि बहते हुए नदी के पानी के साथ इस राख को भी बहा दिया जाय। इससे यह बहकर निकल जाएगी और समुद्र में चली जाएगी। लेकिन इससे नुकसान यह होता है कि आगे जो और डैम बने हैं, उस डैम की क्षमता कम हो जाती है क्योंकि यह पानी उस डैम में जाकर स्टोर हो जाता है और वहां जाकर यह बैठती जाती है।
यह नुकसान है।
आपका नाम?
मनीष राठौर।
दीपक मशीन को लेकर आओ इनको यह राखड़ खोदकर दिखाना है और उधर नदी को भी खोदकर दिखाना है।
लोग यहां घूमने आते थे?
हां। यहां पिकनिक मनाते थे। देखिये अभी वहां स्कूल के कुछ बच्चे हैं।
पर यहां अब कुछ है ही नहीं तो क्या करेंगे?
देखिए वह जो पानी है न, वह इस जगह तक था।
वह झील यहां तक थी। यहां से राख भरते, भरते, भरते, भरते धीरे-धीरे उधर बढ़ता जा रहा है।
यह ऊपर वाला पूरा जंगल है जो पेड़ लगाया गया है?
हां, यह सर्वेश्वर मंदिर है। पिकनिक स्थल था। ऊपर मंदिर है और नीचे लोग पिकनिक मनाते थे।
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