046: Sakrali group talking about Saradih barrage
Director: Sunil Kumar; Cinematographer: Sunil Kumar
Duration: 00:15:02; Aspect Ratio: 1.778:1; Hue: 14.777; Saturation: 0.064; Lightness: 0.113; Volume: 0.246; Cuts per Minute: 1.197; Words per Minute: 79.637
Summary: सकराली के किसान इस बात से काफी गुस्से में हैं कि सरकार किसानों के विकास के नारे खूब रटती है लेकिन वास्तविकता में वह उद्योगों का विकास कर रही है। इसी साराडीह बैराज से पानी उद्योगों को दिया जाएगा लेकिन किसानों को सिंचाई के लिए इस बैराज से एक बूंद पानी नहीं मिलने वाला है। तो यह किसका विकास है? किसानों का या उद्योगपतियों का? यदि सरकार यही पानी किसानों के लिए उपलब्ध करवा देती तो जो जमीन एक फसली है वह तीन फसली होती। तब हम मानते कि यह किसानों का विकास है, लेकिन ऐसा तो हुआ नहीं। साराडीह के बैराज से प्रभावित कई गांव के किसानों का आन्दोलन आज भी जारी है।

Sakrali

अगर सरकार हम लोगों को वहां आने-जाने की सुविधा कर देता है तो हम लोग मुवावजा नहीं लेंगे. मुवावजा लेने में हम लोगों को फ़ायदा नहीं है.

मेरा पांच एकड़ डूब रहा है, बस उतना ही जमीन है. आज से मेरा जमीन ख़त्म.

तो पांच एकड़ वहीं कछार में है?

नहीं नहीं, नदी के इस किनारे पर. सब उतना ही है मेरी पुरखों की जमीन, और वो खत्म है.

सौ-डेढ़ सौ एकड़ इधर की जन्मीं है बाकी जो उधर की है.

आज से हम स्वर्गवासी हो गए.

अगर मुवावजा दे दे तो?

मुवावजा में क्या है? पैसा तो हम आपको बीस लाख दे सकते हैं, लेकिन जमीन नहीं रहेगा तो कहाँ से खरीदेंगे जमीन, बताईए तो?

कहने का मतलब है, वर्त्तमान जानकारी के अनुसार हमको जो मुवावजा मिल रहा है, हेक्टेयर बोले तीन लाख में मिलेगा. जमीन मान लो डूब गई, तो जमीन के बदले हमको जमीन दे. मतलब हमको खेती करना है, न हम कर्मचारी है न व्यापारी. हमारी पांच एकड़ जमीन जा रही है तो हमको उस जमीन के बदले पांच एकड़ जमीन मिल जाता है. अगर उतना मुवावजा मिले जिससे हम पांच एकड़ जमीन खरीद सकें, तब वहां के बदले हम यहाँ जीवन-यापन कर सकेंगे.

बस इतना ही कहने का मतलब है.

वहां जैसे पचास डेसीमल है तो यहाँ जैसे डेढ़ एकड़ मिलता है फिर भी कम है, क्योंकि वहां की जमीन तीन फसली है.

और मेरा जमीन भी तीन फसली है.

यहाँ एक एकड़ दे देगा, या तीन एकड़ दे देगा तो भी यह पूरा नहीं होगा.

मान लीजिए वहां के एक एकड़ के बदले में यहाँ तीन एकड़ मिल जाता है तो एक ही फसल होने वाली जमीन पर क्या हो सकता है? और वहां के एक एकड़ जमीन के मुवावजे की रकम से यहाँ पच्चीस डेसीमल या तीस डेसीमल जमीन भी नहीं मिल रहा है तो उस मुवावजे का क्या मतलब है?

मतलब आप बोल रहे हैं कि यदि मुवावजा भी मिले और वो जमीन चला जाए तो भी यह जगह आपको छोड़नी पड़ेगी! क्योंकि काम के लिए कुछ बाकी नहीं रहेगा?
हाँ.

या हम उस शर्त पर या नीति पर छोड़ेंगे, कि जब मुवावजे की रकम ठीक-ठाक हो. अब जैसे कंपनी बन रही है तो वह जमीन के लिए 8 लाख, 10 लाख प्रति एकड़ दे रही है तो उतना तो एक फसल के बराबर होगा और जबकि हमारी जमीन तो तीन फसली है तो यहाँ तो 24 लाख प्रति एकड़ होना चाहिए था.

सरकार बोल रही है कि तरक्की हो रहा है, हम यही देखने यहाँ पर आए हैं कि क्या....?

किसानों की तरक्की हो रही है या फैक्ट्री की तरक्की हो रही है या संसद की तरक्की हो रही है. भई आप फैक्ट्री की तरक्की तब मानेंगे जब दो की जगह आठ फैक्ट्री लग जाती है तो उसको फैक्ट्री की तरक्की मानेंगे. और किसानों की तरक्की तब मानेंगे, जैसे यहाँ बैराज बन रहा है पानी का जमाव हो रहा है, उस पानी से किसानों को, जहां दो फसल नहीं हो रही है, सरकार अपने द्वारा किसानों को मोटर की सुविधा दे, जिससे किसान लोग डबल फसल ले सके, तब तो किसान की तरक्की मानेंगे.

तो सरकार ने सिंचाई के लिए कोई व्यवस्था नहीं की है?

नहीं, कुछ नहीं बनाया है. वहां से प्रपत्र जारी किया है किसानों को बाँध से एक बूँद पानी नहीं दिया जाएगा. यानी पूरी तरह से यह बाँध कंपनी के लिए बन रहा है. यहाँ के पानी का उपयोग कंपनी करेगी किसान नहीं करेगा.

मतलब सरकार बोल रही है कि यह नदी किसानों की नहीं है!

हाँ, किसानों की नहीं है. जो भी पानी रहेगा, वह फैक्ट्री वाले उपयोग करेंगे, फैक्ट्री की तरक्की होगा. मुख्यमंत्री से मिलने हम लोग रायपुर गए थे, उनसे अनुनय, विनय, प्रार्थना किए, लेकिन उसने एक नहीं सुनी. मुवावजे के बारे में हम लोग बताए तो हम लोगों को अन्धकार में रख दिया है कि उसमें किसी का जमीन डुबान में नहीं आ रहा है.

यह मिरौनी का बैराज है और यह महानदी है, यह गाँव मरघटी है. मरघटी से यह महानदी. यह बोरई नदी है, तो इस नदी में इसकी दो धार हो गयी है. महानदी की एक धारा इधर से जाती है और एक दूसरी तरफ जाती है, और यह बीच, इसी को हम कछार बोलते हैं. यही तीन फसली जमीन है. बीच में ‘मांजरकूथ’ है, ‘खुरघट्टी’ है, ‘सिरियागढ़’ है, ‘बसंतपुर’ है, ‘नवापारा’, ‘उपनी’, ‘सकराली’ है. सकराली के यहाँ पर जैसे जैसे महानदी मिल गयी है, मिलकर के फिर इसके नीचे एक किमी पर यह बैराज बन रहा है यह साराडीह बैराज है. यह साराडी बैराज है और यह मिरौनी बैराज.

तो गाँव नदी के इस पार है?
हाँ, गाँव इधर है लेकिन जमीन बीच में है और इधर महानदी के किनारे वाली जमीन भी प्रभावित हो रही है. तो यह एक किमी की चौड़ी धारा है और यह भी एक किमी का है. और यह बीच वाला हिस्सा 1 किमी, 2 किमी, 1.5 किमी, 3 किमी चौड़ा है. और इसी में हम लोग तीन फसली साग-सब्जी लगाते हैं.

और लम्बाई कितना होगा?
इसकी लम्बाई लगभग 15 किमी के आस-पास होगी.

अगर बैराज बनने से यह हिस्सा डुबान में आ जाए तो.....?

यह केवल नदी का ही एरिया है. यह महानदी है और यह बोरई नदी है. दोनों के समानांतर है मतलब सपाट है. यहाँ अगर 10 फिट, 50 फिट ऊंचा बैराज बना दोगे तो यहाँ से पूरा जलमग्न हो जाएगा. इसमें पूरा जल भर जाएगा. इसमें 10 फिट, 8 फिट, 6 फिट या 21 फिट पानी रहेगा.

यह महानदी के इस किनारे की तट की ऊँचाई लगभग 17-18 फिट है, तो इस 10 फिट के आधार पर यहाँ 9 फिट भी पानी रख देते हैं तो केवल बीच का हिस्सा ही जलमग्न नहीं होगा लेकिन वो पानी इसके चारों तरफ फ़ैल जाएगा. क्योंकि यह इतना ऊंचा है.

यह बैराज आपका यहाँ बन रहा है.
और उधर मिरौनी?

यह मिरौनी बैराज है.

और दोनों तरफ गाँव बसे हुए हैं.
हां इधर भी है और उधर भी है. सर एक चीज है, जैसे बरसात होता है न तो बाढ़ आता है तो यह कछार पूरा डूब जाता है.

यह महानदी के 1.5 किमी धारा और यह महानदी और बोरई दोनों की धारा है. इधर से गया है और शक्ति से आया है. जब यहाँ पर ज्यादा पानी होता है, तो इधर आ जाता है और बरसात में बाढ़ आता है तो यह पूरा डूब जाता है अब जैसे यहाँ पर बाँध हो गया है तो यहाँ पर हमेशा पानी रहेगा.

मतलब पूरा जलमग्न रहेगा.

और कछार में कितने गाँव की जमीन है?

इसमें लिखो न. साराडीह, उपनी, नयापारा, बसंतपुर, सिरियागढ़, मांजरकूथ. मांजरकूथ यहीं पर है, यहीं बीच में.

तो इस गाँव के लोग कैसे आते-जाते है?
नाव से, गर्मीं के समय में तो सूखा रहता है.

दो गाँव हैं यहाँ पर?
हाँ.

वह कौन सी पंचायत में आता है?
यह मांजरकूथ है शायद सिरियागढ़ में आता होगा. यह यहीं से है. यह सकराली से 15 किमी दूर है तो आना-जाना इतना तो नहीं होता है. लेकिन बाढ़ के समय उस रास्ते को देखें है.

और यह डूब जाएगा तो इतने गाँव के किसान प्रभावित होंगे. तो क्या आप लोग जब प्रदर्शन कर रहे थे तो यह लोग आए थे?

हाँ, बिलकुल आए थे. डेढ़ साल से चल रहा अहै सबसे लंबा प्रदर्शन हुआ है. एक-दो बार हजार आदमी दिन-रात रहकर डभरा में एसडीम का घेराव किया. एसडीम ने आश्वासन दिया था कि ‘हम दिन के अन्दर डूब में जाने वाली सभी जमीनों का ब्योरा दे देंगे, और हर गाँव में लिस्ट चिपकाएंगे’, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है.
Pad.ma requires JavaScript.