045: Sakrali interview with farmer
Director: Sunil Kumar; Cinematographer: Sunil Kumar
Duration: 00:18:14; Aspect Ratio: 1.778:1; Hue: 356.500; Saturation: 0.167; Lightness: 0.273; Volume: 0.227; Cuts per Minute: 0.055; Words per Minute: 107.663
Summary: साराडीह के बैराज से कई गांव प्रभावित होने वाले हैं। जिनमें एक गांव ‘सकराली’ भी है। भोगीलाल गांव सकराली के किसान हैं। जिनकी जमीन भी डूब में आ रही है। इस गांव के 700-800 परिवारों की जमीन महानदी के बीच स्थित टापू में है और यह सभी प्रभावित होने वाले हैं। साराडीह बैराज के खिलाफ चलने वाले आन्दोलन में सकराली गांव प्रमुख भूमिका निभा रहा है। महानदी के बीच स्थित यह टापू लगभग 15 किमी लम्बा और चौड़ाई औसतन एक या डेढ़ किमी है। इस टापू में कई गांव के किसान खेती करते हैं। साराडीह, उपनी, नवापारा, बसंतपुर, सिरियगढ़, मांजरकूथ और सकराली गांव के लोगों की जीविका का मुख्य हिस्सा इसी टापू से आता है। क्योंकि यह टापू महानदी द्वारा बहाकर लई गई मिट्टी से बना है इसलिए यह बहुत ही उपजाऊ है। जिसमें धान, उड़द, मूंग, झुनगा, बैगन, लाल भाजी, पालक, पताल, रमकलिया, जोन्हरा, करेला जैसे कई तरह फसलें पैदा होती हैं। सिंचाई की कोई समस्या नहीं है मात्र एक दिन के बोर पर 15, 20, 25 फुट पर आसानी से पानी मिल जाता है। यह जमीन दूसरी जगह की तुलना में तीन गुना उपजाऊ और तीन गुना अधिक पैदावार देती है। यदि यह डूब जाएगा तो इन गांवों के जीने का आधार ही खत्म हो जाएगा। सरकार कह रही है कि यह जमीन नहीं डूबेगा। लेकिन किसानों का कहना है कि उस टापू के चारों तरफ 8-10 फुट पानी साल भर भरा रहेगा तो हम किसान लोग वहां अपने हल, बैल ट्रैक्टर अन्य जानवर, आदि के साथ कैसे जाएंगे? गांव वालों की मुख्य मांग है कि उन्हें मुवावजा देने के बजाय टापू पर जाने की सुविधा कर दी जाय तो यह उनके लिए ज्यादा बेहतर होगा। इसके लिए वह ब्लॉक ऑफिस से लेकर रायपुर मुख्यमंत्री रमन सिंह से मिल चुके हैं लेकिन अभी तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है।

Sakrali

मेरा नाम भोगीलाल श्रीवास है, मैं ग्राम सकराली, तहसील डभरा, जिला जांजगीर चम्पा का रहने वाला हूँ.

हम लोग यह जानना चाहते हैं कि यह जो बैराज बन रहा है उससे किसानों का क्या फ़ायदा या नुकसान है? सरकार कह रही है की इससे किसानों की तरक्की होगी. तो क्या यह सही है? और किसान क्या सोच रहे हैं? और यह भी मालूम चला है कि आपकी जमीन भी जा रही है तो......?

हमारे यहाँ से नजदीक साराडीह बैराज बन रहा है. उससे हमारा गाँव प्रभावित हो रहा है. यह बैराज हमारे गाँव से ठीक 1.5 किमी नीचे बन रहा है. वहां से ठीक एक किमी नीचे आने पर महानदी की दो धारा है. एक धारा बोरई में आकर मिल गयी है और दूसरी धारा लगातार अपने ही रास्ते में चल रही है. इस दोनों धारा के बीच में यह टापू 10-12 किमी से घिरा हुआ है. यह महानदी के बीच में है. दोनों तरफ से एक-एक किलोमीटर पार कर के टापू पर पहुंचते हैं.

इसी के बीच में हम लोग साग सब्जी उगाते हैं. पहले तो हम लोग अषाढ़ में धान की फसल लगाते हैं और उसके बाद जब अषाढ़ में नदी सूखी रहती है. उसके बाद में बरसात आता है तो डोंगा (नाव) लेकर के हम लोग फसल की साफ़-सफाई के लिए जाते हैं. उसके बाद बरसात ख़त्म होने के बाद, वहां हम लोग धान को ढोकर लाते हैं. फिर उसमें झुनगा, उड़द, मूंग, भांटा, पताल, साग-भाजी आदि लगाते हैं. दो फसल हो गया. उसके बाद में तीसरे फसल के में चेक भाजी रमकलिया, करेला जोन्हरा, यह सब लगाते हैं. इस प्रकार वहां हम लोग तीन फसल पैदा करते हैं.

वहां पांच-सात वाले एक परिवार के लिए 50 डेसीमल जमीन काफी होती है. इसमें हमारा गुजर-बसर चल जाता है. क्योंकि वहां हमेशा फसल लगा रहता है. वहां हम लोगों के प्रत्येक आदमी आदमी की सिंचित जमीन है. वहां एक दिन में हम लोग बोर लगा लेते हैं. यानी छ:-सात घंटे में बोर लगा लेते हैं और वहीं से सिंचाई का काम करते हैं.

तो हमारी वहां की जमीन में पानी का बिलकुल भी आभाव नहीं है. वह बहुत संपन्न है. जिसे हम लोग तीन फसल आसानी से प्राप्त करते हैं. और 50 डेसीमल जमीन पर हमारा पर परिवार गुजर-बसर करता है, ऐसी स्थिति है. हमारे गाँव सकराली की लगभग 900-1000 एकड़ जमीन प्रभावित हो रही है. जिसमें 100-150 एकड़ नदी के इस तरफ का है यानी गाँव से लगा हुआ है और बाकी महानदी और बोरई नदी के बीच का हिस्सा है.

हमारे गाँव की जो जमीन जा रही है वह तीन फसली है और इसी तरह आठ-दस किमी लंबा और 1.5 किमी चौड़ा जो टापू है, वह सब प्रभावित हो रहा है. यह सभी तीन फसली जमीन है. यह सकराली से शुरू होती है फिर ‘उपनी’, ‘मांजरकूथ’, ‘सिरियागढ़’, ‘नावपारा’, ‘बसंतपुर’ है. यह सब नदी के बीच में है. जब पानी बाँध में भर जाएगा तो हम लोग नहीं के पार नहीं जा सकेंगे. दोनों तरफ एक किमी नदी को कैसे पार करेंगे? और पानी तो हमेशा भरा रहेगा जबकि सूखे के समय हम लोग हल, बैल, ट्रैक्टर वगैरह ले जाते थे. अब यह सब कैसे ले का सकेंगे?

यदि वह जमीन बच भी जाएगा तो वहां हम लोग खेती नहीं कर पाएंगे और हमारी पूरी किसानी प्रभावित हो रही है. यदि बच जाए तो अच्छा है और यदि सरकार आने-जाने की सुविधा कर देता है तो हमें मुवावजा लेने की जरूरत नहीं है. हम तो धन्यवाद देंगे सरकार को. यदि नहीं डूबता है और मुवावजा भी नहीं मिलता है तो ऐसी हालत में हम लोग कहाँ जाएंगे? सब बेघर हो जाएंगे. वही एकमात्र हम लोगों का आधार है.

इसलिए हम चाहते हैं कि सरकार प्रत्येक प्रभावित परिवार के एक आदमी को मुवावजा दिया जाए और कंपनी में रोजगार भी दिया जाए और उद्योग नीति के आधार पर मुवावजा दिया जाए. दूसरा जो जमीन डूब में आने से बच रही है उसकी सिंचाई के लिए पानी के व्यवस्था की जाए और कटाव को रोकने के लिए तटबंध बनाए जांय. ऐसी अपेक्षा हम सरकार से करते हैं.

इसके सम्बन्ध में हम लोग डेढ़ साल से प्रयासरत है. लेकिन हमारी मांगों पर अभी तक कोई ध्यान नहीं दिया गया है, कोई सुझाव हमें नहीं मिला है. और बाँध लगातार बनाता जा रहा है. हम शासन से करबद्ध प्रार्थना करते हैं कि सरकार हमारी मांगों को पूरा करे.

यहाँ सकराली गाँव में और आप-पास के गाँवों के कितने परिवार प्रभावित होंगें?

जैसे हमारे यहाँ 800-900 परिवार हैं, उसमें लगभग 100 परिवार ही प्रभावित नहीं होंगे बाकी सभी प्रभावित हैं. उसी के आधार पर हम लोगों का जीवन-यापन चल रहा है. इस तरफ हम लोगों की खेती बहुत ही कम है. हम लोगों का बस कछार की जमीन से ही गुजारा चलता है. ऊपर के गाँवों जैसे बसंतपुर, सिरियागढ़, नावापारा, खुरघट्टी, मांजरकूथ आदि का मुझे नहीं मालूम. लेकिन उनकी भी जमीन है. हमारे यहाँ लगभग 800-900 एकड़ जमीन प्रभावित हो रही है.

वहां पर कितने दिन से खेती-बाड़ी हो रही है?

वहां तो हमारे दादा, परदादा भी कमाते-खाते थे. हम लोग भी कमाते-खाते हैं. वह निजी नम्बरी जमीन है. बचपन से हमलोग वहीं पर आश्रित हैं.

मतलब काफी दिनों से.....!
बहुत दिनों से, किसी को नहीं मालूम है कि कब से कमाते-खाते हैं. लेकिन सब कमाते-खाते आ रहे हैं. जैसे इस जमीन से हमारा काम चलता है वैसे ही उस जमीन से काम चलता है.

यहाँ प्राय: हर आदमी दो एकड़, एक एकड़, ढाई एकड़ के छोटे-छोटे किसान हैं और कुछ नहीं. हम लोगों का वही एकमात्र आधार है. यदि उस जमीन का मुवावजा नहीं देता है लेकिन वहां जाने का रास्ता दे दे, पुल बना दे ताकि हम लोग वहां खेती वगैरह कर सकें तो यह हमारे लिए अच्छा होगा. क्योंकि वह तीन फसली जमीन है यदि पैसा मिलता है तो उससे हमारा सब दिन का रोजी-रोटी नहीं चलेगा, कुछ दिन बाद तो पैसा खत्म हो जाएगा. इसीलिए हम शाशन से यही अनुरोध कर रहे हैं कि शाशन या तो रास्ता दे या फिर उद्योग नीति के आधार पर प्रत्येक प्रभावित परिवार को नौकरी भी दी जाए.

सरकार से रास्ता बनाने या नौकरी देने या मुवावजा के बारे में कुछ भी आश्वासन मिला है?

अभी तक कोई आश्वासन नहीं मिला है. एक बार हम लोग, 200-250 आदमी, जांजगीर (जिला हेडक्वाटर) गए थे. वहां कलेक्टर महोदय से प्रार्थना किए. उसके बाद यहाँ डभरा (ब्लाक) में एसडीम के यहाँ 24 घंटे का धरना भी दिए थे. उसके बाद हम लोग अभी-अभी मुख्यमंत्री के पास गए थे, वहां लगभग 70 आदमीं के लगभग पहुंचे थे और वहां भी मुख्यमंत्री को अवगत कराए कि हमारी समस्या इस प्रकार है, आप हमारी तरफ भी कुछ ध्यान दीजिए, लेकिन अभी तक कोई खबर या आश्वासन नहीं मिला है. वह लोग मनमानी कार्य कर रहे हैं.

जिस हिसाब से उन्होंने गाँव के किनारे निशान लगाया है उसके आधार पर पूरा कछार डुबान में आ रहा है. मुख्यमंत्री महोदय कह रहे थे कि कछार नहीं डूब रहा है, और बाँध से जाकर आप लोग वहां नीचे उतर जाएंगे और खेती करेंगे, ऐसा बोल रहे थे. लेकिन मुख्यमंत्री को अभी तक यह पता नहीं है कि कहाँ पर बाँध बन रहा है. कछार के एक किमी नीचे में बाँध बन रहा है. कछार चारों तरफ से एक किमी, डेढ़ किमी पानी से घिरा हुआ है. कोई आदमी जाएगा तो एक किमी पानी पार कर के ही जाएगा. तो ऐसी स्थिति है.

सरकार बोल रही है कि बाँध बनाने से कुंवे के पानी का लेबल बढ़ जाएगा!

वह बोल रहे हैं लेकिन हम लोग वहां नहीं जा पाएंगे. उनके चिन्हांकित के आधार पर वह भी डूब जाएगा. लेकिन यदि सरकार दया करके उसको नहीं डुबोता है, जलस्तर कम रखता है, तो भी हम लोग वहां नहीं पहुँच पाएंगे. क्योंकि एक-डेढ़ किमी नाव से जाना होगा, और बैल, भैंस, गाड़ी वगैरह को लेकर हम कैसे जाएंगे? आखिर हम वहां खेती करते हैं तो हर प्रकार के साधन तो ले जाना होगा न. इसके लिए यदि सरकार पुल बनवाता है तो हम लोग उसके सदा के लिए आभारी रहेंगे.

ग्राम पंचायत या सभा में सहमति ली गयी थी?

कंपनी वाले आए और बैराज बनाना शुर कर दिया. किसी को भी यहाँ पता नहीं है और अभी भी हम लोग तीन-चार बार जाकर बोले हैं, उसके बावजूद के लोग हम लोगों को आकर के नहीं बता रहे हैं कि आप लोगों की जमीन जाएगी या नहीं. लगभग सो साल से वहां सर्वे हो रहा है और हम लोग देख रहे हैं. हमें मालूम था कि यह लोग कुछ कर रहे हैं. इसका मतलब कुछ बाँध-वांध बनेगा या क्या होगा. उसके बाद अचानक यह लोग बाँध के लिए सामान ले कर आए तब हमें यह पता चला कि यहाँ बाँध बनेगा. उसके पहले हमें कोई सूचना नहीं थी.

कोई ग्राम सभा, कोई मीटिंग.....?
ऐसा कुछ भी किसी गाँव में नहीं हुआ.

बहुत सारी राजनीतिक पार्टियां हैं, वह इसको मुद्दा नहीं बना रहीं है? कि किसानों की जमीन जा रही है ऐसा नहीं होना चाहिए?

एक बार हमारे यहाँ राम कुमार यादव, जिला सदस्य हैं, तो वह यहाँ आए थे. हम लोगों ने उनसे दु:ख-सुख की बात बोली, कि यह बाँध बन रहा है और हम लोग गरीब आदमी हैं हम तो बात भी नहीं कर सकते किसी अधिकारी से. और इस सम्बन्ध में कौन अधिकारी है हमें यह भी नहीं मालूम है, तो आप हमारी मदद करें. तो उनके साथ मिलकर हम लोग यह आवाज उठाए. गाँव में जब मीटिंग हुआ तब उन्होंने बोला कि मैं तो जिला सदस्य हूँ कोई पार्टी वाला आपकी मदद करता तो अच्छा होता. तो हम लोग गाँव से बोले कि आपका संबंध भाजपा से है कांग्रेस से है, जो पार्टी से हैं उनको अवगत कराएं ताकि वह हमारी कुछ सहायता करने ले लिए आ जाए. तो आज तक कोई नहीं आए हमारे यहाँ. और हम किसी के पास गए भी नहीं.

सरकार कहती है कि फैक्ट्री आने से गाँव की तरक्की होगी, खेती किसानी छोड़कर लोग नौकरी करेंगे, उनको तनख्वाह मिलेगा. यहाँ बैराज बन रहा है तो यहाँ से किसी को काम मिला है यहाँ पर?

अभी तक न ही किसी को काम मिला है और न ही ऐसा कुछ कहा गया है. हम लोग प्रभावित हैं इस तरह कंपनी की तरफ से कोई आवाज ही नहीं आया है. और यदि कोई कहता भी है कि नौकरी मिलेगी तो हमारे यहाँ से प्रत्येक आदमी को नौकरी तो देगा नहीं. नौकरी 5 प्रतिशत को दे सकता है लेकिन 95 प्रतिशत, जो इस खेती पर निर्भर हैं, उनको नौकरी देगा? जबकि अभी सूचना भी नहीं है. हम यह महसूस करते हैं कि सरकार हम लोगों की कोई मदद ही नहीं करना चाहती है.

आरटीआई द्वारा निकले गए डाक्यूमेंट में एक भी गाँव और जमीन नहीं डूब रही है, ऐसा लिखा हुआ है.

यही मुख्यमंत्री भी बोल रहे थे. लेकिन जिस तरीके से चिन्हांकित किया गया है, उसके आधार पर हम लोग कैसे अपने कछार तक पहुँच पाएंगे? जैसे किसी मकान के चारों तरफ सड़क बना देंगे या कुछ कर देंगे या कंपनी लगा देंगे और मेरा मकान बीच में है. अब सरकार कहेगी कि आपका मकान तो सुरक्षित हैं. लेकिन चारों तरफ कंपनी, रोड, बिजली के तार या अन्य तमाम तरह की चीजें फैला देने से क्या मैं उस घर में सुरक्षित रह सकता हूँ.

उसी प्रकार से हमारी जो जमीन प्रभावित हो रही है वो नदी के बीच में है, जो चारों तरफ नदी से घिरा हुआ है. मैं पहले ही बता चुका हूँ कि 1 किमी नदी की चौड़ाई को पार कर के ही खेत तक पहुंचा जा सकता है. मान लिया जाए कि वहां दस फिट ही पानी रहता है, वैसे सुनने में आया है कि वहां 22-23 फिट पानी रहेगा, यदि दस फिट पानी रह जाता है तो हम लोग अपने खेत पर नहीं पहुँच सकते हैं.

इस तरह से यदि नहीं भी डूब रहा है तो वहां लोग खेती कैसे कर सकते हैं? किसी का घर प्रभावित नहीं हो रहा है, घर को सुरक्षित रखा गया है लेकिन चारों तरफ सड़क है या कोई और चीज बना दिया जाता है तो हम लोग कैसे पार करेंगे? क्या घर में ही रहेगा आदमी? तो ऐसी स्थिति है हम लोगों की.
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