043: Saradih interview with medium farmer whose land will be flooded
Director: Sunil kumar; Cinematographer: Sunil Kumar
Duration: 00:20:10; Aspect Ratio: 1.778:1; Hue: 50.869; Saturation: 0.085; Lightness: 0.520; Volume: 0.197; Cuts per Minute: 1.240; Words per Minute: 118.710
Summary: कुमार राम बरेठ मध्यम किसान होने साथ ही सरकारी राशन की दुकान चलाते हैं। इनकी जमीन भी बैराज के डुबान में आ रही है। कुमार राम की 18 एकड़ 60 डेसीमल जमीन महानदी के बीच में है जिसे वह टापू कहते हैं। एक और भी बड़ा टापू है जिसमें कि कई गांवों की जमीन है। कुमार राम इस टापू में कई तरह की सब्जियों के साथ धान वगैरह भी उगाते हैं। टापू की मिट्टी को वह विटामिन वाली मिट्टी कहते हैं। इसीलिए वह कई फसल ले लेते हैं। इस तरह के कई किसानों की जमीन जा रही है। जिसमें छोटे और मध्यम किसानों की संख्या अधिक है। खास तौर पर छोटे किसानों की स्थिति बुरी होने वाली है। उसकी तो लगभग जमीन डूबने वाली है जिससे उनका यहां जीना मुश्किल हो जाएगा। इस स्थिति में वह जम्मू, काश्मीर के ईंट-भट्ठों पर काम करने को मजबूर होगा। जबकि पहले से ही छत्तीसगढ़ के अधिकांश मजदूर पलायन में जम्मू, काश्मीर के ईंट-भट्ठों पर् काम करने जाते रहे हैं। अब इस बैराज से इनकी संख्या में और इजाफा ही होने वाला है। बैराज कंस्ट्रक्शन में काम करने बाहर से मजदूर आए हैं, लोकल में कुछ ही लोगों को काम मिला है। नदी से बाहर जो जमीन है जिसमें कि कम्पनी के ऑफिस खड़े होंगे उसके लिए कम्पनी निजी तौर पर जमीन की खरीदी 1 लाख 20 हजार प्रति एकड़ कर रही है। लेकिन किसानों की जो जमीन डुबान में आ रही है उसके मुवावजे की कोई बात अभी नहीं हो रही है।

Saradih

कितने घर होंगे साराडीह में?

ऐसे तो अनुमान नहीं लगाया है. लेकिन अनुमानित मोटा-मोटी मैं आपको बता रहा हूं, कम से कम 1200-1500 के लगभग घर होंगे।

घर?

हां, घर होंगे। और यह जो महानदी के तट पर साराडीह गांव है, यहां पर एक साल-दो साल के बाद बाढ़ आ जाती है। जिसमें काफी लोग प्रभावित होते हैं। उसमें शासन तो कुछ राशि प्रदान करता है, ऐसी बात नहीं है। अभी हमारे गांव में बैराज बन रहा है तो सरकार के द्वारा कुछ भी अनुदान वगैरह नहीं मिल रहा है जबकि जमीन बहुत जा रहा है। कम्पनी जो प्राईवेट जमीन खोद रही है, उसमें भी एक डेसीमल जमीन का करीब 1200 रुपया (1 लाख 20 हजार रुपए प्रति एकड़) की दर से मुवावजा दे रही है।

कुछ किसान दिए हैं और कुछ नहीं दिए हैं। कुल कितने किसान या जमीन प्रभावित होगी उतना तो मालूम नहीं है, वह तो शासन को मालूम होगा। फिलहाल मेरा एक टापू आ रहा है। मेरा नाम कुमार राम बरेठ है, मैं यहीं का निवासी हूं और मेरे बाप का नाम रेवा लाल है। मेरी 18 एकड़ 60 डेसीमल जमीन कछार में है, जो नदी के बीच में है और जो स्टाप डेम के ठीक सामने पड़ रही है। फिर आगे और भी कछार है जिसमें कि अन्य गांव के किसानों की जमीन पड़ेगी। पांच-सात गांव के लोग इसमें बोते-खाते हैं, उसी में परवरिश करते हैं, उसी में गुजारा करते हैं। वहां वह कछार में झुग्गी-झोपड़ी बनाकर के खेती करते हैं। साग-सब्जियां उगाते हैं, उसमें अंडी, बैगन, भिंडी, हरा मिर्च, बहुत तरह की सब्जी पैदा होता है। उसी में लोग गुजारा करते हैं। शासन जो सर्वे करा रहा है, उसी को ठीक तरह से मालूम होगा।

लगभग कितने किसानों की जमीन जा रही है?
5-7 गांव की जमीन जा रही है। कितनी जनसंख्या है वह तो मुझे नहीं मालूम है।

आपकी कितनी जमीन जा रही है?
मेरी जमीन 18 एकड़ 60 डेसीमल जा रही है।

वो टापू में है?
हां, वो स्टॉप डैम के सामने।

तो इन गांव वालों की जमीन भी टापू में है?
हां, कुछ लोगों की जमीन टापू में है और कुछ लोगों की जमीन नहीं है। और इसमें साराडीह, सकराली, उपनी, मांजरकूथ, जसपुर, बसंतपुर जैसे गांवों की जमीन इस कछार में है।

तो ज्यादातर किसानों की कितनी जमीन जा रही है?
किसी का 20, किसी का 30, किसी का 40, किसी का 10, किसी का पांच, एक या आधा, 50, 25 ऐसे-ऐसे है।

छोटे-छोटे किसान हैं उसमें?
छोटे भी हैं, बड़े भी हैं और उसमें फसल तो कई प्रकार की फसल होती है। वह क्या है कि वहां की मिट्टी विटामिन वाली है। वह एक नम्बर की मिट्टी है। उसमें कोई भी फसल उग सकती है।

क्या-क्या फसल होता है?
गेहूं, चावल....

गेहूं भी होता है?
गेहूं भी होता है, फली भी होता है। अरहर, उर्द, चना, मटर, सभी होता है। बैगन होता है, भिंडी, लाल सब्जी, हरी भाजी। उसमें हम तीन फसल उगाते हैं।

तीन फसल?
दो फसल होता है आप जानते हैं न। लेकिन उसमें तीन फसल होता है। बहुत उपजाऊ जमीन है वो। वहां कुंवें खोदे हुए हैं और उसी से पानी निकाल कर सिंचाई करते है।

तीन फसल में आप क्या-क्या उगाते हैं?

पहली फसल अषाढ़ में जुताई के बाद फली वगैरह लगाएंगे और उसमें धान भी हो जाएगा। फिर उसके बाद उसको उखाड़ कर उसमें लाल भाजी वगैरह, फिर बीच-बीच में रेड़ होता है, वो बड़ा-बड़ा पेड़ होता है, जिसको हम लोग अंडी कहते हैं, यह सब तो अलग से यानी अतिरिक्त खेती है. फिर लाल भाजी उखाड़ कर भिंडी, चुटचुटिया, गंवार सेमी हम लोग कहते हैं उसको, यह सब होता है।

तो धान एक ही बार होता है?
धान और गेहूं एक ही बार होता है।

सभी खेतों में तीन फसल लेते हैं या टापू के खेत में ही तीन फसल लेते हैं?
टापू के खेतों में तो खास तीन बार की फसल लेते हैं। और इधर वाला यानी बगैर टापू वाली जमीन दो फसली है।

इधर वाली जमीन में क्या-क्या फसल लेते हैं?
धान दो बार लेते हैं और कुछ लोग सूखा फसल भी बोते हैं। फली, चना, गेहूं।

पानी (सिंचाई) का क्या इंतजाम है? जैसे टापू में तो बहुत आसान है।

अब टापू में चल नहीं पाएंगे। हम लोग छोटी-छोटी नाव रखे हैं। जब अषाढ़ आता है तो उसी नाव से कछार में जाते हैं और जो बैल, भैंस है उसको तैरा करके नदी पार करते हैं। काम के दौरान वहीं दाल, चावल लेकर जाते हैं, वहीं रहते हैं और वहीं काम करते हैं और शाम को वापस लौट आते हैं।

और खेत में पानी कहां से आता है, कुंवा से?
हां, जैसे गर्मी के मौसम में तो कुंवे से निकालते हैं और बरसात में तो पानी की जरूरत ही नहीं है।

कुंवा कितना गहरा होता है?

10, 12, 15 फिट। यह अलग-अलग जगहों के अनुसार होता है, कहीं ज्यादा तो कहीं कम।

गांव में छोटे किसान कितने होंगे, जिनके पास जमीन बहुत कम है?
छोटे किसान बहुत हैं, बड़े किसान कम हैं।

तो छोटे किसानों का काम खेती से चल जाता है या बाहर भी जाना पड़ता है?

खेतों से तो नहीं हो पाता है, कमाने के लिए वह बाहर भी जाता है। और यह जो कम्पनी आ रहा है, वह यहां के लोगों को काम पर नहीं रख रहा है। क्या है कि यहां के लोग तो कम पढ़े-लिखे हैं। मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हूं, पहले के जमाने के हिसाब से चौथी-पांचवीं पढ़ा हूं, तो उसी में महिला समूह के जरिए सरकार के द्वारा ‘उचित मूल्य की राशन की दुकान’ चलाता हूं। तो ऐसे बहुत पढ़े-लिखे नहीं हैं, तो क्या करेंगे, बाहर जाते हैं। यहां (कम्पनी) तो पढ़ाई-लिखाई की जरूरत है जो मशीन का काम जानता हो। मशीन थोड़े चला पाएंगे अनपढ़-गंवार लोग, वह तो खेती-बाड़ी करते हैं और कुछ लोग ईंट-भट्ठे पर काम करने के लिए दिल्ली, पंजाब चले जाते हैं।

बैराज में जो जमीन जा रही है, उसमें कुछ किसानों की जमीन जा रही है या सभी किसानों की जमीन जा रही है?
सभी का ही जा रहा है। अब दो-चार लोगों का बच जाएगा तो क्या है।

इस गांव की लगभग कुल कितनी एकड़ जमीन जा रही है?
अब कुल तो मुझे नहीं मालूम है।

फिर भी एक अन्दाजा लगभग?
लगभग 400-500 एकड़ के आ-आस-पास होना चाहिए.

तो अभी क्या हो रहा है? सरकार जमीन खरीद रही है या कम्पनी वाले खरीद रहे हैं?

अभी कम्पनी वाले उधर की कुछ जमीन को खरीदे हैं. जिसमें सूखा फसल होता है और बरसात में साग-सब्जियां होती हैं और कुछ जमीन को लीज पर ले लिया है, जो पाईप लाईन के लिए है।

तो पाईप कैसे डालेंगे? अन्दर से?
अन्दर से खुदाई करके। ऊपर किसान लोग खेती करेंगे।

तो कुछ जमीन जा रहा है पाईप लाईन के लिए और कुछ बैराज के लिए?

हां। बैराज की जमीन के लिए तो सरकार से अभी तक कोई बात नहीं हुई है। शासन तो कुछ बता ही नहीं रहा है। कुछ नेता लोग हड़ताल, धरना प्रदर्शन भी किए थे। फिर एस.डी.एम. साहब आए थे, बोले अभी स्पष्टीकरण नहीं हुआ है, आश्वासन देकर गए हैं कि चिंता करने की बात नहीं है. शासन सभी को मुवावजा देगा, सभी की परवरिश हो जाएगी।

यह बैराज का काम कब से चल रहा है?

यह एक साल हो गया है और यह दूसरा साल चल रहा है। और वो रहा बैराज, बाहर से लोग आए हैं, आन्ध्रा से। झुग्गी-झोपड़ी डाल कर रह रहे हैं। वहां पर चलते तो और ठीक रहता।
चलेंगे।

यानी अभी तक जो जमीन गई है वो पाईप लाईन वाली जमीन है।
हां।

तो उसमें भी छोटे-बड़े किसान सभी हैं?
हां।

और कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपनी जमीन नहीं दे दिए हैं?
हां, कुछ लोग नहीं भी दिए हैं। बोले कि हम नहीं देंगे।

क्यों नहीं देना चाहते हैं?
हां वह देना नहीं चाहते हैं। बोलते हैं कि जब हमारी जमीन को ले रहे हो तो पूरा खरीद कर के लो। और ऐसे हमारी जमीन बर्बाद हो जाएगी। ऐसा बोल रहे हैं।

तो ज्यादातर यह बड़े किसान हैं या छोटे किसान किसान जो जमीन नहीं दे रहे हैं?

उसमें भी दोनों हैं। अब गरीब लोग भी हैं जिनको कि पैसे की जरूरत पड़ रही है, तो वो दे भी रहा है। अब एक एकड़ का प्लॉट है और उसमें दो डेसीमल पर पाईप पड़ रही है तो उसके लिए तीन-चार हजार मिल जाएगा तो क्या हो जाएगा? खरीदना है तो पूरा खरीदो।

जो लीज है वह एक साल के लिए है या बस एक ही बार तीन-चार हजार देंगे?

अब क्या पता, कैसे लेना-देना कर रहा है। वह मुझे नहीं मालूम। फिलहाल नुकसान का अलग से दे रहा है, फसल लगी रहे हो या न लगी रही हो। 200 रुपया एक डेसीमल पर दे रहा है, वो अलग है। 1200 प्रति डेसीमल दे रहा है वो अलग है। 1200-1500 ऐसे करके दे रहा है।

लेकिन बैराज से जो डुबान एरिया होगा उसकी कोई बात नहीं हो रही है?
उसकी कोई बात अभी तक नहीं हो रही है।

किसकी जमीन जाएगी किसी को पता नहीं?
नहीं।

और उसका क्या रेट लगाएंगे उसकी भी कोई बातचीत नहीं हो रही है अभी?
नहीं हो रहा है। अभी जो नेता यहां धरना-प्रदर्शन किया था, वह बोल रहा था, हमें 25 लाख प्रति एकड़ चाहिए।

एक तो यह है कि कुछ लोग मुवावजे के लिए तैयार हैं कि मुवावजा मिल जाए और हम जमीन दे देंगे। और कुछ ऐसे भी लोग हैं जो कि ऐसा नहीं चाहते। क्योंकि उस जमीन में वो हमेशा फसल उगाते रहेंगे जबकि मुवावजा तो कभी भी खत्म हो जाएगा।

हां ऐसे लोग तो हैं। जिनके पास ज्यादा जमीन रहेगी वह दे देंगे। अब जैसे मान लिया जाय मैं गरीब हूं, मेरे पास एक एकड़ जमीन है उसी में मेरा परिवार चलता है तो ऐसा आदमी तो नहीं देगा। बिल्कुल नहीं देगा। उसका तो गया काम से। उदाहरण के लिए उसको 25 लाख, 50 लाख एकड़ मिल जाएगा, वह पैसा तो चार दिन में खत्म हो जाएगा, पैसा तो नहीं रहने वाला है। और यह धरती मां के बराबर है, जैसे बच्चा मां के थन को चूसता है, उसी तरह जो छोटे गरीब किसान लोग हैं वैसे ही जमीन पर फसल लेते है, परवरिश करते हैं। तो वह मां के समान है।

तो ऐसे लोगों की संख्या कितनी है गांव में?

बहुत लोग हैं। ढूंढ़ने से पता चलेगा। बहुत लोग हैं।

जब शुरू में कम्पनी वाले लोग यहां पर आए तो पंच, सरपंच लोग वहां पर गए और उन लोगों को बोले। और यह लोग NOC (No Objection Certificate) दे दिए। एन. ओ. सी. दे दिया है तभी तो काम चालू हुआ है। ऐसे काम चालू थोड़े होता है। इस पाईप लाईन को भी एन. ओ. सी. दे दिया है।

कौन दिया है?
यह गांव का सरपंच, जो प्रधान है गांव का।

अपने मन से?
अब पंचायत लोग दिए हैं और किसी पब्लिक को तो नहीं पूछा है।

मतलब ग्राम सभा की तरह का कुछ नहीं हुआ?

अब ग्राम सभा की तरह का कुछ नहीं हुआ था। लेकिन वे लोग अपने आप ही बना लेते हैं किसी पब्लिक को पूछते नहीं है। क्या है कि ग्राम सभा का दिनांक डाल देते हैं, हो जाता है। आजकल जाली का ही तो जमाना है। सब जाली में ही तो चल रहा है। और पद, अधिकारी लोग कलम को कैसे भी चलाएं, इधर से या उधर से।

आप भी तो गांव के एक पदाधिकारी ही हैं, आखिर आप गांव की सरकारी राशन की दुकान चलाते हैं।

मैं बोल नहीं सकता हूं मेरा विभाग अलग है। इसे मैं सात साल से चला रहा हूं। गरीबी की परिस्थिति क्या है वह मुझे मालूम है। इसीलिए मैं बेईमानी भी आज तक नहीं किया हूं। 75 दुकानें इस चन्द्रपुर क्षेत्र में आती हैं। 75 दुकान में से दो-चार लोग ही डीडी वगैरह काटने के लिए मोटर साईकिल से डभरा जाते थे। और उतने समय से आज तक मैं साईकिल से चल रहा हूं और मैं अकेला दुकानदार हूं, बाकी सब मोटरसाईकिल से आते हैं।

तो बेईमानी मैं नहीं करना चाहता हूं। जो बेईमानी करता है मैं उससे दूर ही रहता हूं। मेरी थोड़ी दिन की जिन्दगी है, जी रहा हूं तो बढ़िया है। और यदि कल मर जाऊं तो? मालिक ने मुझे जिस काम के लिए भेजा है, यदि वह काम मैं नहीं कर पाऊंगा तो मालिक क्या बोलेगा? यह समझ कर मैं दो नम्बर में नहीं रहता हूं, एक नम्बर में रहता हूं। भूख का दु:ख क्या है, मुझे मालूम है। खाने की वजह से मेरे मां-बाप आज मेरे को पढ़ा नहीं पाए। थोड़ा सा ही पढ़ा-लिखा हूं, अनपढ़ के बराबर हूं, मान लिया जाए कि मैं अनपढ़ ही हूं.

और भगवान ने मुझे गांव चलाने के लिए इतना बड़ा किया है। गांव के दुखियारों को चला रहा हूं। कल मैं स्वयं भूख से मरता था, पढ़ नहीं पाया था। इतने से चावल और इतने से पानी खा कर के मैं जिया हूं। वह स्थिति मैं देख लिया हूं, तो मैं आज गलत काम करूंगा। जो गलत कर रह है वो करे, भई आपको अच्छा लग रहा है तो करो। हां आपको बड़ा खाना अच्छा लग रहा है तो बड़ा खाओ, पकौड़ी खाना अच्छा लग रहा है तो पकौड़ी खाओ, जो इस दुनिया में जैसे रहना खाना चाहते हैं वैसे खाओ।

उसी प्रकार जो जैसे चलना चाहे वैसे चले। मेरी मर्जी तो नहीं है, मैं इसी सच्चाई में रहूंगा। बस जी रहा हूं तो आदमी हूं, मर जाऊंगा तो सच्चाई नहीं कर पाऊंगा। इसीलिए यह सोचकर मैं ऐसे करता हूं। आज साईकिल में जाता हूं। कल की ही तारीख में मैं डीडी कटा कर आया हूं। परसों यहाँ मेरा चावल आएगा, नरसों मैं वितरण करूंगा। यहां चौदह जनवरी को मेला लगेगा, मकरसंक्रांति मेला। यहां मन्दिर है मेरे गांव का। यहीं पर मेला लगेगा।

तो मैं बेईमानी नहीं करना चाहता। हां फलाना चीज मेरे को नहीं मिला है, मुझको राशन नहीं मिला है, मुझको गेहूं नहीं मिला है, मुझको शक्कर नहीं मिला है, मुझको मिट्टी का तेल नहीं मिला है, मुझे कोई भी बोलता है मैं तुरंत उसको प्रदान करता हूं।

यहां के बच्चे पढ़ने के लिए कहां जाते हैं?
यहीं गांव में पढ़ते हैं। यह आंगंवाड़ी पास में छोटे बच्चे के लिए, और एक आंगनबाड़ी वहां है।

स्कूल वगैरह?
स्कूल यहां पास में है।

तो यह नया-नया बना है? आप बोल रहे थे कि आप पढ़ने के लिए नहीं जा पाए?

मेरा उम्र कितना होगा, मालूम है? अड़तालिसवां चल रहा है। देखने में लड़के की तरह दिख रहा हूं। सन 80 में जब बाढ़ आया था उस समय मैं छः साल का था। और मैं मां के साथ भागते-भागते 'जवाली' तक गया था। वह बाढ़ था। अभी जो पिछले साल आया था वो तो छोटा था, लेकिन वह काफी बड़ा था, भयंकर था, तूफान के बराबर वह बाढ़ आया था जो ऐसे चलते जाओ पानी पीछे-पीछे दौड़ाते जाता था।

हर साल बाढ़ में डूबता है?
हर साल नहीं डूबता है। दो साल, तीन साल में, समय देखकर बरिश जैसे हुआ। अगर हमेशा आता तो हम लोग मर ही जाते।
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