038: Saradih village scene
Cinematographer: Sunil Kumar
Duration: 00:06:06; Aspect Ratio: 1.778:1; Hue: 49.728; Saturation: 0.082; Lightness: 0.419; Volume: 0.093; Cuts per Minute: 0.491; Words per Minute: 5.895
Summary: साराडीह गाँव महानदी के ठीक किनारे पर बसा है। यहाँ पर लोगों की अलग-अलग गतिविधियों के कुछ फुटेज हैं। पहला- गाँव के फ्रंट का दृश्य है एक तरह से इसे गाँव की चौपाल कहा जा सकता है, जो दो-तीन बड़े-बड़े पीपल की छाँव के नीचे है। दूसरा- गाँव के मुहाने का एक दृश्य है और तीसरा- इसी चौपाल में महिला अपने बच्चों के साथ पुआल के ढेर को व्यवस्थित करने में व्यस्त है। चौथा फुटेज एक बच्ची का है जो बगल में बन रहे बैराज की भयावहता से अंजान नदी को पार कर रही है।
First, a major methodological question: We do not want. In any way. To reproduce what is given to us.
A gesture of abstraction from a potential "documentary" project on Sikkim.
A phrase that appears to us, suspended over this pan through the rural village:
"WE WANT LAND NOT MONEY" -- a quotation from a graffiti seen in Dzongu, in the context of the site of land contestation already in progress there.
How could one even "monetize" (with a fore-image of displacement or potential dispossession) what we see here? How would this disturb the way-of-life contained in the image?
Saradih
आप वहां बैराज भी जाना चाहेंगे तो वहां भी ले जाउंगा...
हां हां।
जहां भी जाना चाहेंगे, सब मैं दिखा दूंगा।
और हमें एक एकड़ वाले छोटे किसानों से भी बात करना है।
ठीक है मैं बात करवा दूंगा।
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