030: DB power plant interviews of workers
Cinematographer: Sunil Kumar
Duration: 00:13:09; Aspect Ratio: 1.778:1; Hue: 61.931; Saturation: 0.047; Lightness: 0.407; Volume: 0.210; Cuts per Minute: 0.152; Words per Minute: 104.236
Summary: इस फुटेज में डी बी पॉवर प्लांट में अलग-अलग स्तरों पर काम करने वालों के इंटरव्यू हैं। वकीलुद्दीन इलाहाबाद के रहने वाले हैं। वह प्लांट में ट्रेलर चलाते हैं। उनका मानना है कि कंपनी ने गांववालों को नौकरी का लालच देकर उनकी जमीन को ठग लिया है। कंपनी ने लोगों की जमीन लेकर भी कुछ काम नहीं दिया है। और यदि जिसको भी मुवावजा दिया है वह भी पर्याप्त नहीं है। अगर यह सब उनके इलाके में होता तो वे लोग ऐसा नहीं होने देते।
बाड़ादरहा गाँव के रामपुर टोला की कुछ आदिवासी महिलाएं हैं जो प्लांट में मजदूरी करने जाती हैं। वह बाताती हैं कि बाड़ादरहा से कुल छः महिला काम पर जाती हैं। बाकी कई महिलाएं दूसरे गाँवों से आती हैं।
कमल मिश्रा, जो मध्य प्रदेश के सतना जिला के रहने वाले हैं, कंपनी में इलेक्ट्रीशियन का काम करते हैं। उनका मानना है कि जिनके पास पैसा होता है वो काम नहीं करते हैं। अभी गाँव वालों को मुवावजे में लाखों रूपए मिले हैं और उन्होंने उससे दो पहिया ,चार पहिया गाड़ियां खरीदी हैं तोवह काम नहीं करना चाहते हैं। उन्हें काम करने में शर्म आती है। लेकिन यही कल को जब पैसा खत्म हो जाएगा तो यह हमारी तरह दूसरे शहरों में जाकर कुछ भी काम करेंगे। जमीन देने के मामले में कमल का मानना है कि पहले तो जमीन नहीं देनी चाहिए क्योंकि वह परमानेंट रोजगार का जरिया है।

TV_power plants
DB power plant Badadhara

आपका नाम?
वकीलुद्दीन.
आप कहाँ से हैं?
इलाहाबाद.

आप यहाँ पर क्या काम करते है?
ड्राईवरी करते हैं.
क्या चलाते है?
ट्रेलर.

आपको क्या लगता है कि इस कंपनी ने गाँव वालों के साथ क्या किया?
नौकरी का लालच देकर गाँव वालों के साथ धोखा-धड़ी किया है.

किसी की 10 एकड़ जमीन लेकर 3 नौकरी दे दी, किसी की 1 एकड़ जमीन लेकर बोला की एक नौकरी देंगे. ऐसा करके लोगों को बेवकूफ बनाया है.

यहाँ इस गाँव में हमारा एक खलासी है उस बेचारे की जमीन लेकर नौकरी नहीं दी, बोला कि ‘आपके पास जमीन कम थी इसलिए नौकरी नहीं मिलेगी’. अब वो बेचारा चक्कर काट रहा है.

ऐसे गरीब बेचारे सीधे हैं, बिलकुल सिंपल से. इनके पास कोई छल कपट नहीं है. और यह जो सारी औरतें काम कर रही हैं,

वो लक्ष्मी नाम की एक लड़की आ रही है, उसका तो जमीन भी ले लिया और पैसा भी नहीं दिया.

बेचारे फ़ोकट के खट रहे हैं. यह तो हालात हैं. यही सारी बातें यहाँ पर चल रही है.

आपको क्या लगता है जमीन का जो मुवावजा दिया गया है वो पर्याप्त है?

नहीं, नहीं. पर्याप्त बिलकुल भी नहीं है. हालात के हिसाब से कोई पर्याप्त नहीं है.

अब देखिये यह जो लड़का आ रहा है, उसकी जमीन ले ली गयी है उसे नौकरी नहीं दी गयी है. अब मेरे साथ में ही है. वह बेचारा परेशान है.

अगर यह सब आपके इलाके में होता तो आप क्या करते?
हमारे इलाके में होता तो हम धरना प्रदर्शन करते. तमाम तरह से सरकार से इन्साग माँगते कि हमें इन्साफ सिया जाए.

लेकिन यहाँ तो यह बेचारे इन्साफ माँगने जाए तो पुलिस लाठी-डंडा चार्ज करा देती है. पुलिस की राकट दिखाकर कंपनी लोगों का इस्तेमाल कर रही है.

आप किस तरह का काम करती हैं?

यह लोग सप्लाई में का करती है.
वही लोग बताएंगे, सप्लाई में?
हाँ.
क्या सप्लाई? किस तरह की सप्लाई में?

ढलाई के लिए जो माल आता है न, उसी में.
लगभग कितनी महिलाएं होंगी?

बहुत महिला है.
सब रामपुर से हैं?
नहीं, दूसरे गाँव से भी हैं.

कौन-कौन से गाँव से?
रामपुर के इतना ही लोग हैं.
टुन्ड्री, सोढका, बहुत दूर से आते हैं.
रामपुर से आप 6 लोग है?
हाँ, अभी एक और आदमी आएँगे.
सात. तो ड्यूटी का समय क्या है?

समय हो गया है, जाएंगे.
यह लोग आठ बजे जाते हैं. रोड का काम करते हैं.

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आपका नाम?
मेरा नाम कमल मिश्रा है. मैं जिला सतना, मध्य प्रदेश का रहने वाला हूँ, गाँव मीरगउती, ब्लाक रामनगर.

मैं यहाँ पॉवर प्लांट में कंपनी की तरफ से इलेक्ट्रीशियन हूँ. मैं जिस गाँव में बैठा हुआ हूँ, इसका नाम टुन्ड्री है.

यह छत्तीसगढ़ में आता है. यह बिलासपुर से चलकर रायगढ़, और रायगढ़ से करीब 70 किमी के आस-पास की दूरी है.

रोजमर्रा की जिन्दगी को चलाने और पेट पालने के लिए यहाँ जो लोग आ रहे हैं, इस पॉवर प्लांट की वजह से आ रहे हैं.

मैं यहाँ आया तो देखा कि मंहगाई बढ़ती है जा रही है, यहाँ के लोग कुछ न कुछ धंधा कर लिए है. बाहर से जो पैसे वाले लोग आये थे उन्होंने सबसे पहले यहाँ पर धंधा किया,

और हम लोग जैसे जो लोग बाहर से आ रहे हैं वो अपनी कमाई का पैसा यहीं पर खर्च कर रहे हैं और आधा लेकर जा रहे हैं. यहाँ जिनके पास दो-चार एकड़ जमीन थी उसे डी.बी. पॉवर प्लांट को दे दिया.

कल जिनके घर में साईकिल या मोटर साईकिल नहीं थी, आज उनके घर में चारपहिया है. और आज की तारीख में किसी के पास भी 10, 12, 15 लाख रूपए से कम का बैंक बैलेंस नहीं है.

सभी का इसी तरह होगा. आज वो लोग काम नहीं करना चाहते है. कल पैसे ख़त्म होने के बाद यह महसूस करेंगे की अब क्या करें? तब हमारी तरह ही यह भी बाहर काम करने जाएंगे. पॉवर प्लांट ने अपना ‘पॉवर’ जिस तरह से बनाना था बना लिया, लेकिन गाँव वालों ने नहीं सोचा कि कल इनका ‘पॉवर’ क्या होगा?

यह काम क्यों नहीं करना चाह रहे हैं?

इनके पास अपने बैंक बैलेंस होने के कारण काम नहीं करना चाहते है.
क्यों? पैसे से क्या फर्क पड़ता है?
फर्क यह पड़ रहा है कि इन्हें काम करने में शर्म महसूस हो रही है. क्योंकि इनके पास इतना पैसा हो चुका है की सामने वाले को दिखाएं कैसे?

आज वो बाईक पर चलते हैं, स्कार्पियो पर चलते हैं, बोलेरो टॉप मॉडल पर चलते हैं तो वह काम क्यों करेंगे, जिनके पास इतना बैंक बैलेंस पडा हुआ है.

इसका मतलब है कि जिनके पास पैसा होता है वो काम नहीं करते हैं?

स्वाभाविक है. लेकिन आज की तारीख में जो माइंडेड होगा वह इस पैसे का प्रयोग करेगा.

इतनी सारी गाड़ियां, एक ही घर में दो-दो, चार-चार टू व्हीलर, फोर व्हीलर, इतना बड़ा परिवर्तन कितने समय में आया?
ओनली वन ईयर.

एक साल में?
हाँ, एक साल में. डी.बी.पॉवर का यहाँ आना, इन लोगों से इस पर चर्चाएँ होना, यह लोग इतना प्रफुल्लित हो गए की इन लोगों ने आगे-पीछे कुछ भी नहीं देखा.

अगर किसी व्यक्ति के पास वक एकड़ है तो वह सोचता है कि ‘मेरे को 15 लाख रूपए मिल रहे हैं’ और वह पूरी दे देता है. 15 लाख रहेगा तब तक रहीसी से खाएंगे.

अब जब कल वह 15 लाख ख़त्म हो जाएंगे, तो? जमीन तो ख़त्म हो गयी, 15 लाख भी ख़त्म हो गए, अब वो क्या करेंगे?

तब यह इस प्लांट में काम करने के लिए आएँगे. पहले तो प्लांट काम नहीं देगा, क्योंकि शुरू से करते तो देता, और इनसे कुछ आयेगा नहीं इसलिए भी नहीं देगा. दूसरी बात उनको या काम करने में ‘फीलिंग’ महसूस होगी.

‘फीलिंग’ का क्या मतलब?
‘फीलिंग’ इसलिए महसूस होगी की जिनके पास 15 लाख रूपए है....
छोटा महसूस करेंगे?
हां, अपने आपको छोटा महसूस करेंगे.

की मैं इनके सामने क्यों काम कर रहा हूँ.
तब फिर?
कल को यह जब 15 लाख रूपए ख़त्म होंगे तो इनको यह महसूस होगा कि ‘मैं काम करूंगा तो लोग कहेंगे कि, कल तक तो यह स्कार्पियो और टॉप मॉडल में चलता था और आज पीला हेलमेट लगाकर के प्लांट में काम कर रहा है, तो लोग क्या सोचेंगे? इसलिए यह बाहर जाना पसंद करेंगे.

तो बाहर कहाँ जाएंगे?
कहीं भी. जिस तरह आज हम बाहर आएं है काम करने के लिए, उसी तरह यह भी बाहर जाएंगे?

एक साल में इन्होंने यह परिवर्तन देखा. आपको क्या लगता है कि दूसरा परिवर्तन आने में कितना समय लगेगा?
मिनिमम 10 साल मान लीजिए. क्योंकि 10, 20, 30, लाख रूपए एक साल में तो ख़त्म नहीं कर सकते,

इतना सेन्स भी नहीं है कि उस पैसे का कहीं और प्रयोग में ला सकें, सिर्फ उड़ा ही सकते है, तो जब कहीं से आमदनी नहीं होगी और सिर्फ माइनस ही होता चला जाएगा तो माइनस में क्या होगा? “भाग न पहुंचे लब्धे शून्य”.

यह कमरा कितने में है?

कम से कम 1500 रूपए का होगा.
और एक कमरे में कितने लोग रहते है?
एक कमरे में 6 से 7 लोग रहते है.
सब बाँट कर किराया देते है?

हाँ, फिफ्टी फिफ्टी. जो भी आएगा वह बराबर बाँट लेंगे.
कंपनी ने मजदूरों को रखने के लिए कुछ....?

कुछ भी नहीं बनाया है, अभी तो कंपनी का कुछ है नहीं, जो भी है सब ठेके पर दे दिया है. जो भी कंपनी के ठेकेदार आए हैं उन्होंने रूम लेकर कुछ वर्करों कोण दे दिया है, लेकिन दूसरे वर्करों के लिए कुछ नहीं है.

तो ज्यादातर वर्कर कहाँ से आए हैं?

बिहार, इलाहाबाद, एम.पी., उड़ीसा कर्नाटक, झारखंड, चेन्नई हर जगह से.
यहां से नहीं है?
यहाँ तो मुझे 100 प्रतिशत में से 2 प्रतिशत ही लग रहा है.

और वह भी हाई बेस में काम कर रहा है.
यहाँ यह है कि जिनकी जमीन गयी है उन्हें हाजिरी देना होता है.

न ऐसा कुछ भी नहीं है. कंपनी के दो नियम नहीं होते, एक ही नियम होता है. आप हमको जमीन दो हम आपको बाद में नौकरी देंगे,

अगर इस तरह से एग्रीमेंट में साइन किया होगा तो ठीक है अगर इस तरह से नहीं किया है सिर्फ इतने लाख रूपए में जमीन दे रहा हूँ इस पर साइन किया है, तो इसके बाद नौकरी देने की कंपनी की कोई जवाबदारी नहीं होगी.

किसी दूसरी जगह में प्लांट से प्रभावित लोगों के लिए आप क्या सन्देश देना चाहेंगे?

मैं तो यही चाहूंगा कि आपका किसी भी तरीके से आधी जमीन बचाने की कोशिश करें.

यदि प्लांट आपकी ही जमीन पर पड़ रहा है और मजबूरी वश देना ही पड़े,

क्योंकि सरकार का नियम होता है कि मंहगाई के अनुसार आपकी जमीन का मुवावजा, आपको दे दिया जाए,

तो भी अपने लिए कुछ न कुछ जरूर बचाया जाए.
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