023: Badadhara interview land loser
Director: Sunil Kumar; Cinematographer: Sunil Kumar
Duration: 00:15:33; Aspect Ratio: 1.778:1; Hue: 136.349; Saturation: 0.097; Lightness: 0.321; Volume: 0.198; Cuts per Minute: 0.129; Words per Minute: 117.335
Summary: प्रकाश नारायण पटेल बाड़ादरहा गांव के युवा किसान हैं जिनकी जमीन डी.बी. पॉवर प्लांट में चली गई है। इस गांव के लोगों की भी जमीन भूअर्जन का डर दिखा कर ले ली गई है। और नौकरी के नाम पर वही हाजिरी सिस्टम यहां भी चल रह है। यहां के जमीन देने वाले किसानों, जो कम्पनी में हजिरी देने जाते हैं, ने अपना एक यूनियन भी बना रखा है। जिसका नाम डी.बी. पॉवर कर्मचारी मजदूर संघ है, जो भारतीय मजदूर संघ से सम्बद्ध है। इसके अध्यक्ष प्रकाश नारायण पटेल हैं। यहां भी डी.बी. पॉवर ने बड़े पैमाने पर किसानों के साथ धोखाधड़ी की है। रामपुर टोला, जो गांव बाड़ादरहा का ही एक हिस्सा है, के आदिवासियों की जमीन हड़प ली है और मुवावजे की रकम भी नहीं दी है। कम्पनी उसे सरकारी जमीन बताती है जबकि अदिवासी उस जमीन पर कई दशकों से खेती करते आ रहे हैं। पेड़ों की कटाई तो डी.बी. ने अंधाधुन्ध की है। उसने यह नहीं देखा कि कौन से पेड़ों को काटा जाना चाहिए और कौन से नहीं। काटा, ट्रैक्टर में भरा और जिसका पेड़ था उसके घर जा कर गिरा दिया। प्रकाश कहते हैं कि भूअर्जन की कार्यवाही का किसानों को पता ही नहीं चल पाता है। धारा 4 से लेकर धारा 8 तक किसी को पता ही नहीं लगने दिया जाता है, किसानों को तब पता चलता है जब धारा 9 लग जाती है जिसमें कि किसान के विरोध के अधिकार से वंचित हो जाता है। प्रकाश यह भी समझते हैं कि यह जो हाजिरी सिस्टम है यह सिर्फ लोगों को शांत रखने के लिए है। जैसे ही कम्पनी के कंट्रक्शन का काम पूरा होगा वैसे ही कम्पनी यह हजिरी सिस्टम खत्म कर देगी। हम तो चाहते हैं कि कम्पनी हमें काम दे लेकिन वह सिर्फ हमें साइन करवाने के बुलाती है और साइन करने के बाद हमें वापस भेजी देती है। प्रकाश अभी ही प्रदूषण से बेहद परेशान हैं और जब कम्पनी धुंवा उगलना शुरू करेगी तब क्या होगा? प्रकाश कहते हैं कि अभी जब पहला युनित चालू होगा तो 900 टन कोयला प्रतिदिन जलेगा और दूसरे युनिट के बाद 1200 टन कोयला प्रति दिन, तो ऐसे में हम गांव वालों को यहां से भागना ही पडेगा। छत्तीसगढ़ में दैनिक भाष्कर न्यूज पेपर काफी मात्रा में पढ़ा जाता है, जिसमें रमन सिंह के विकास के खूब चर्चे होते हैं, पेड़ लगाओ पर्यावरण बचाओ का नारा भी जोरशोर से पेपर में बुलन्द किया जाता है और इसी के साथ न्यूजपेपर जनता की आवाज को उठाने की बात भी कहता है। लेकिन जमीनी हकीकत इससे उलट है।
प्रकाश नारायण पटेल ,पिता –दुर्गा नारायण पटेल ,वो टीचर हैं और मैं बाड़ादारा का रहने वाला हूँ ।
Badadhara
आपके संगठन का नाम ?
भारतीय मजदूर संघ से संबद्ध हमारा एक संगठन है
और संगठन का नाम है – डी बी पावर कर्मचारी मजदूर संघ ,बड़ादरा ।
कितने सदस्य हैं इसमें ?
400 के लगभग हैं ।
यह सभी लैंड वर्कर्स हैं, जिनकी जमीन कंपनी मे गई हैं या जिनको किसानों से समर्थन या सहमति मिला है ,ये लोग हैं।
इसके बारे में बताएँगे की लगभग कुल कितनी प्राइवेट जमीन किसानो की ली गई है ।
प्राइवेट जमीन गाँव बड़ादरा मे लगभग साढ़े पाँच सौ लिया गया है ।
तो क्या सभी लोगों को इसके बदले मे नौकरी डी गयी है ?
दो एकड़ पर एक आदमी को नौकरी दिया जाएगा ,ऐसा था ,एग्रीमंट हुआ था,गाँव वालों और कंपनी के बीच ।
तो कितने लोग इस गाँव से नौकरी कर रहे हैं ?
इस गाँव से लगभग 150 लोग नौकरी कर रहे हैं ।
अच्छा कुल 150 लोग रोज हाजिरी देने जाते हैं ?
कुल हाजिरी देने वाले अभी 500 लोग हो गए हैं
जो बाहरी रेल्वे लाग के लिए या रेल्वे खंभा के लिए जो दूसरे गाँव की जमीन ले रहे हैं ,उनको भी हमारे साथ ही डाल रहे हैं।
इस प्रकार कुल 510 लोग पंच मार रहे हैं ।
कंपनी जमीन कैसे ले रही है ,क्या कोई जबर्दस्ती कर रही है वो ?
हाँ कंपनी जबर्दस्ती भी कर रही है ,भू अर्जन लगा रही है
और जबर्दस्ती भी कर रही है और जबर्दस्ती कंपनी द्वारा लोगों को प्रतारित भी किया गया है ।
कैसे ?
प्रताड़णा यानि की मानसिक प्रताड़णा समझिए ,जैसे किसी के घर जाते रहो ,
जमीन दो अपना जमीन दो ,बढ़िया रेट मिलेगा ।
एक तरह से दिन में 4-5 बार जा रहे थे । तो आदमी मानसिक रूप से विचलित हो जाता है की क्या करूँ ?
ये दे दिया वो दे दिया ,झूठ बोलता है की आपके सहयोगी लोग दे दिये ,आप भी दे दीजिये ।
बाद में भू अर्जन लग जाएगा ,अपनी जमीन दे दो । इस तरह से बात करते थे की भू अर्जन लग जाएगा तो हम जो रेट दे रहे हैं उससे भी कम रेट सरकार देगी ।
तो भू अर्जन की सीधी –सीधी धमकी देकर जमीन ली गई ?
हाँ मानकर चलिये की ऐसा ही हुआ है ।
अच्छा इनमें लोगों को मालूम नहीं चल पता था की उनकी जमीन ली जा रही है ?
हाँ, लोगों को बोलते थे कि आपकी जमीन भू-अर्जन में जा रही है। आप दे दो लेकिन इसकी कोई सूचना नहीं मिलती थी। धारा 9 लगने के बाद हमको सूचना मिलती थी कि आपकी यह जमीन धारा 9 में आ गई है।
धारा 12 लग चुका है धारा चार और 6 जो पहले होता है उसके बारे में किसानों को पता तक नहीं चल पाता है।
क्यों नहीं पता चल पाता है?
क्योंकि क्षेत्रीय समाचार-पत्र में धारा संबन्धित सूचनाएँ कंपनियों द्वारा जानबूझकर प्रकाशित नहीं कारवाई जाती।
राष्ट्रीय समाचार-पत्रों के शहरी संस्करण में सूचना प्रकाशित कारवाई जाती है ताकि आम जनता को इसका पता न चले।
धारा 4 के मुताबिक अधिग्रहण संबंधी सूचना न्यूज़पेपर में प्रकाशित करवाना आवश्यक होता है। फिर उसके बाद धारा 5?
धारा 5 के अंतर्गत प्रशासन जांच करती है कि धारा 4 पर जनता की तरफ से कोई ऑबजेक्शन तो नहीं है। जांच के बाद जो धारा 6 उसका भी हमें पता नहीं चल पाता।
धारा 6 में होता क्या है?
धारा 6 के अनुसार सूचना सरपंच के पास भेजी जानी चाहिए।
अधिकारी जानबूझकर इसे सरपंच को नहीं भेजते, खुद जारी कर देते हैं।
फिर उसके बाद?
फिर उसके बाद धारा 9। धारा 9 में किसानों को कोटवार (चौकीदार) के माध्यम से रसीद की एक प्रति दी जाती है।
उसके बाद धारा 12 में जमीन का रेट उसमें आने वाले पेड़-पौधों का रेट तय कर दिया जाता है,
इसी नियम से अभी 10 लाख रुपया प्रति एकड़ के हिसाब से लोगों को दिया जा रहा है।
पहले क्या रेट चल रहा था?
2007 में जब कंपनी यहाँ आई तब ढाई लाख प्रति एकड़ रेट था।
और कहा गया था कि कंपनी चालू होने से पहले यदि जमीन का रेट बढ़ जाता है तो वह आपको बढ़ा हुआ रेट देगी।
लेकिन कंपनी ने मात्र 50 हजार रुपया प्रति एकड़ के हिसाब से दिया और कुछ नहीं दिया।
शुरू में खाली ढाई लाख प्रति एकड़ के हिसाब से लिया।
यदि किसान अपनी जमीन नहीं देना चाहता है तो उसके पास क्या विकल्प है?
यदि किसान जमीन नहीं देना चाहता है तो कंपनी के द्वारा कहा जाता है कि हमने यह जमीन सरकार से खरीद ली है।
अब सरकार बीच में आकर कहती है कि जमीन्न पर भू-अर्जन लगा है
यदि आप अपना पैसा नहीं पाए हैं तो जाओ चेक उठा लो।
यह जमीन तो कंपनी का हो गया है। इस तरह से सरकार हमारी जमीन कंपनी को सौंप रही है।
हमारे गाँव में बहुत सारे पेड़-पौधे थे। दुख की बात यह है कि इनमें से 900 पेड़ को काट दिया गया है।
इस गाँव के रामपुर टोले में और पश्चिम की तरफ जीतने भी पेड़ हैं, उनकी कटाई अब चालू हो रही है।
कटाई अंधाधुंध तरीके से की जा रही है। यह भी नहीं देखा जा रहा है कि यह अच्छा पेड़ है या कि इमारती पेड़ है,
कुछ भी नहीं देखा जा रहा है, बस उनको काटो, ट्रैक्टर किराए पर लाओ और किसान के यहाँ पहुंचा दो।
किसके घर?
जिन किसानों के पेड़ हैं उनके घर।
उनसे पूछते भी नहीं है?
नहीं।
कंपनी के गाँव में आने के बाद किसानों को अचानक सारा पैसा मिला और मैं देख रहा हूँ कि बहुत सारी मोटरसाइकिलें है?
हाँ, गाँव में पैसा आया क्रान्ति आ गई।
क्रान्ति गाड़ी खरीदने और घर बनाने के रूप में आई। पहले हम झोपड़ी में रहते थे अब घर बनाएँगे,
पहले साइकिल से जाते थे अब गाड़ी लेकर जाएंगे।
तो जमीन का पैसा तो किसान लोग गाड़ी लेने और घर बनाने में ही लगा दिये।
आगे अब क्या खाएँगे?
अभी कंपनी किसानों को 5 हजार रुपया दे रही है उसी से काम चल रहा है।
यह 5 हजार भी जाएगा तो गाँव वाले भी भागने को मजबूर हो जाएंगे।
आपको क्या लगता है, कंपनी 5 हजार रुपया देती रहेगी?
नहीं देगी। जब तक किसानों के पास जमीन है तभी तक पैसा मिलेगा।
जब जमीन भू-अर्जन के द्वारा कंपनी को दे दी जाएगी तो पैसा बंद हो जाएगा।
कंपनी मुवावजा दे कर जमीन तो ले चुकी है?
हाँ।
तो अब उसकी क्या जरूरत है कि वह लोगों को नौकरी पर रखे?
नहीं, अभी लगभग 150 एकड़ जमीन किसानों के पास बची है जिस पर कि भू-अर्जन लग चुका है लेकिन किसानों ने अभी तक पैसे नहीं उठाए हैं।
जिन किसानों का 150 एकड़ है उनको छोड़कर बाकी सबको निकालने की तैयारी है।
हम योग्य है तब भी कंपनी हमको काम नहीं देती है।
आपके संगठन की मुख्य मांग क्या होगी?
हमारे संगठन के मुख्य मांग है कि हमें कंपनी में स्थाई नौकरी दे जाये, हमारा भी पीएफ वगैरह कटे। जिससे कि हम कह सकें कि यह हमारी कंपनी है।
जिन किसानों की जमीन 2.5 लाख में खरीदी गई है उन्हें आज की रेट से जमीन का पूरा मूल्य दिया जाए।
जैसे आस-पास की कंपनियों ने दिया वैसे ही हमें दिया जाए। यही मेरे मुख्य मांग है।
अभी आपके आस-पास तीन पावर प्लांट आ रहे हैं और आपके गाँव की सारी जमीन लेकर के डीबी पावर प्लांट बनाया जा रहा है तो प्रदूषण को लेकर क्या कहेंगे?
डीबी पावर प्लांट ने हमारे गाँव के लगभग 1000 पेड़ों, जो पुराने बड़े-बड़े पेड़ थे (लगभग 3 फुट के व्यास के) को काट चुका है।
और कंपनी कह रही है कि प्रॉडक्शन चालू होने पर प्रति दिन 900 टन कोयले की खपत होगी।
900 टन कोयला जलेगा तो इतना राख़ उड़ेगा कि गाँव का वातावरण रहने लायक नहीं रह जाएगा। वैसे अभी से ही धूल और कीचण से पूरे गाँव के लोग त्रस्त है,
जबकि कंपनी अभी शुरू नहीं हुई है। गाँव रहने लायक नहीं रह गया है।
बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश और अन्य प्रदेशों से लोग आकार रुक रहे हैं।
उनके रहन-सहन और यहाँ के मूलनिवासियों के रहन-सहन में काफी अंतर है।
वह लोग मनमाने ढंग से रहते हैं। अपने ढंग से चलते-फिरते हैं।
गाँव वालों को इससे काफी तकलीफ हो रही है। एक तो गाँव में रहते हैं और पैसे के लालच में गाँव वाले अपने घर उनको किराए पर भी दिये हैं।
और कंपनियों ने भी अपने कर्मचारियों के लिए कालोनियाँ बनवाई हैं।
यह लोग बचा हुआ खाना पालीथिन में भर फेक देते हैं जिसे खाकर पिछले दिनों कई (6-7) जानवर मर चुके हैं।
जब इसकी शिकायत की जाती है तो कहते हैं कि इसे ठीक कर देंगे लेकिन होता कुछ नहीं है।
कंपनी और गाँव के बीच में, जो एक किमी का रास्ता है, ट्रकों की आवाजाही से काफी दूल जमान हो गया है।
यदि आप सफ़ेद शर्ट पहनकर निकल जाते हैं तो दुबारा वह पहनने लायक नहीं रह जाता है, पीला पड़ जाता है।
पहले पेड़-पौधे थे तो मौसम थोड़ा ठंढा रहता था, अब तो वीरान लगता है। अब यहाँ गर्मी भी बढ़ गई है।
रामपुर जो हमारे गाँव का ही एक टोला है वहाँ पेड़-पौधों को काटकर डैम बना दिया गया है।
कंपनी अपने पहले चरण के उत्पादन में 900 टन कोयला जलाएगी और दूसरे चरण में 1200 टन कोयला जलाएगी।
इससे इतनी राख़ उड़ेगी कि तीन वर्ष बाद गाँव मुश्किल से टिक पाएगा।
नए पेड़-पौधों का भी यहाँ उगना संभव नहीं हैं।
धूल और राख़ पत्तों पर जाम जाएंगे जिससे प्रकाश संश्लेषण नहीं हो पाएगा।
यदि इतना कोयला यहाँ जलेगा तो मान कर चलिए कि हम गाँव के लोग, जो तीन साल के मेहमान है,
दूसरे गाँव में रहेंगे या बाहर किराए पर रहेंगे। ऐसी स्थिति आ गई है इस कंपनी के चलते।
आपका परिचय
मेरा नाम गुन्डेश्वर पटेल है. मैं जवाली गाँव का हूँ. और मैं बाडादरा में डी.बी. पॉवर में काम करता हूँ.
यहाँ की जमीन देने के आधार पर मैं लगा हूँ. जवाली यहाँ से 25 किमी दूर है.
वहीं से आना-जाना करता हूँ. यहाँ की पूरी जमीन पॉवर प्लांट में चली गयी है. यहाँ किसानों की जमीन का काफी हिस्सा चला गया है.
खेती अब यहाँ के लोग नहीं करते हैं. लेबर की समस्या यहाँ है. लेबर नहीं मिलता. लेबर अगर लेंगे तो 200 रूपए से कम में नहीं आएगा.
और आएगा भी तो 8 घंटा या 6 घंटा काम करेगा. उसके बाद चला जाएगा.
इस हिसाब से यहाँ अब खेती नहीं करते. जमीन बेचने के बाद पैसा मिलाने से अब काम करने की जरूरत नहीं समझते है.
सब के पास बाइक वगैरह है. अभी पैसे में चल रहे हैं, बाद में इनको पता चलेगा. जब पैसा ख़त्म हो जाएगा,
तब उनको महसूस होगा की जमीन हमारी रहनी चाहिए थी. जमीन हमारी पैतृक संपत्ति है.
अगर जमीन रहेगा तो कभी भी काम आ सकता है. जमीन तो बेच चुके हैं, जब पैसा खत्म हो जाएगा
तब उस स्थिति में पता चलेगा. अभी तो ठीक है मौज-मस्ती कर रहे है.
खेती रहता है तो धान उपजा लेते है, साल भर का काम चल जाता है.
और आज खेती नहीं रहेगा तो नहीं जी पाएंगे. प्लांट चालू होगा, यहाँ कोयला, धुंवा होगा तो जो भी खेत बचे हैं उसमें भी धान नहीं होगा. कुछ भी नहीं बचेगा,
सब्जी की फसल या और कुछ लगाएंगे उसमें धूल-धूल होगा. पोरी फसल प्रभावित होगी.
जब यह जानते थे तो फिर लोगों ने जमीन क्यों दे दी?
हाँ जानते तो थे, लेकिन उनकी मजबूरी थी. शासन ने यहाँ पर भू-अर्जन लगा दिया था.
जबरदस्ती शासन ने ले लिया?
यहाँ पर पहले से ही भू-अर्जन लगा दिया था.
भू-अर्जन क्या होता है?
भू-अर्जन में शासन जो रेट निर्धारित कर देगा वही मिलेगा, उससे ज्यादा नहीं मिलेगा, और सरकार ही खरीदेगा.
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