012: Uchpinda interview with stonebreaker
Cinematographer: Sunil Kumar
Duration: 00:03:17; Aspect Ratio: 1.778:1; Hue: 33.778; Saturation: 0.110; Lightness: 0.463; Volume: 0.117; Cuts per Minute: 0.910; Words per Minute: 59.726
Summary: "दोनों गाँव (उचपेंडा और बंधापाली) के लोग प्लांट वाली जमीन पर जीते-खाते थे, अब यह सब पॉवर प्लांट खा लिया है।" यह कहना है उचपेंडा के एक पत्थर तोड़ने वाले मजदूर हरिशंकर का। यही जमीन हरिशंकर जैसे उचपेंडा गांव के अन्य लोगों के जीवन-यापन का एक जरिया थी, जिसे सरकार ने आंख बंद करके आर.के.एम. पॉवर प्लांट के हवाले कर दी। अब गाँव के लोग पूरे देश में मजदूरी करने को स्वतंत्र हैं।

Bandhapali
Bandhapali

आपका नाम क्या है?
हरिशंकर.

कहाँ के रहने वाले हैं?
उचपेंडा.

कौन सी जाती लगाते हैं?
रउतिया.

यह आदिवासी में आते हैं?
नहीं पिछड़ी में.

अभी आपके बगल में पॉवर प्लांट आ गया है, इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है?

यह सब रोजी-माटी पॉवर प्लांट खा लिया है. इसी जमीन पर पत्थर तोड़ रहे थे, सिल-लोढ़ा बनाकर जी खा रहे थे, यह भी चला गया. कहाँ से पाएंगे पत्थर? जमीन भी भी जो 2-4 डेसीमल थी वह भी सस्ते में खरीद लिया. अब कुछ भी नहीं है.

उचपिंडा में कितने परिवार थे, जो वहां पत्थर तोड़ते थे?

उचपेंडा की तो पूरी बस्ती ही है पत्थर तोड़ने वाली, और यह बंधापाली भी है. वहां गए थे, कि नहीं गए थे? हम सभी लोग पत्थर तोड़ते थे. दोनों गाँव इसी में जीते थे, जहां पॉवर प्लांट है.

अब तो वहा पॉवर प्लांट है, अब क्या करेंगे?

क्या करेंगे!

पॉवर प्लांट में कुछ काम नहीं मिला?

नहीं मिला, नौकरी पर भी नहीं रखा.

जब फैक्ट्री चालू हो रही थी, तो कहा था की पत्थर को निकाल कर अलग कर देंगे, ताकि कुछ लोग इसे तोड़ सकें. लेकिन कुछ नहीं सब बराबर कर दिया.

पूरा बाउंड्री घेर दिया तो अब पत्थर थोड़ी मिलेगा? यह तो अभी खुले में है तो मिल जा रहा है.

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