006: Uchpinda interview with landowner
Cinematographer: Sunil Kumar
Duration: 00:26:32; Aspect Ratio: 1.778:1; Hue: 39.665; Saturation: 0.093; Lightness: 0.409; Volume: 0.151; Cuts per Minute: 9.117; Words per Minute: 104.916
Summary: जीतेंद्र कुमार सिंह देव ग्राम 'उचपेंडा' के रहने वाले हैं। यह पंचायत बंधापाली के उपसरपंच हैं। और इसी के साथ यह स्थानीय राजनीति में काफी दखल रखते हैं, इतना ही नहीं यह स्थानीय स्तर पर 'नवभारत' और 'नई दुनिया' की पत्रकारिता भी करते हैं। जीतेंद्र कंपनी के आने से काफी नाराज हैं। नाराजगी की मुख्य वजह जमीन का सही मुवावजा न मिलना एक प्रमुख कारण है। दूसरा प्रमुख कारण है कि सीएसआर के तहत आर.के.एम. पॉवर प्लांट को बांधापाली पंचायत, जिसमें कि 5 गाँव आते हैं, कई तरह के निर्माण कार्य करवाने थे, जैसे गली का कंकरीटीकरण, सड़क बनवाने का काम, गाँव में शौचालय बनवाने का काम, पानी की सुविधा के लिए जैसे कई काम। जीतेंद्र के इस निर्माणकार्यों में विशेष दिलचस्पी लेने के बावजूद कंपनी ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। तीसरा प्रमुख कारण है कि कंपनी बढ़े हुए रेट के हिसाब से जमीन की खरीदी नहीं कर रही है। जीतेंद्र की कुछ जमीन, लगभग 8-10 एकड़, पलांट के बीच में फंसी है जिसको कि अभी तक उन्होंने कंपनी को नहीं बेचा है लेकिन कंपनी उसे अपनी निजी जमीन की तरह ही इस्तेमाल कर रही है। फिलहाल जीतेंद्र अपनी हैसियत के कारण जमीन पर कब्जा बरकरार रखे हुए हैं और कंपनी के द्वारा दाम बढ़ाए जाने का इंतज़ार कर रहे हैं।
Uchpinda
Jitendra's House
आपका नाम?
मेरा नाम जीतेंद्र कुमार सिंह देव है. मैं ग्राम उचापेंडा का सरपंच हूँ.
यह पंचायत भी है?
हाँ पंचायत भी है.
आपके बगल में आर.के.एम. पॉवर प्लांट आ रहा है. तो मैं इसके आने का छोटा सा इतिहास जानना चाहूंगा. इसके की प्रक्रिया कैसे शुरू हुई? व इसके आने में आपकी व गाँव वालों की क्या भूमिका रही है?
देखिये छत्तीसगढ़ में तो बहुत सारे पॉवर प्लांट आ रहे हैं. इस गाँव में बहुत गरीब लोग रहते हैं. जिस जगह पर पॉवर प्लांट खोला गया है उसमें बहुत से गाँव के गरीब लोग काम करते थे. वहां पर वह सिल-लोढ़ा बनाने का काम करते थे और बेचने के लिए दूर-दूर तक जाते थे. इसी से वे अपना जीवन–यापन करते थे. सरकार ने फैक्ट्री लगाने के लिए जमीन दे दिया और गाँव के गरीब लोग कुछ नहीं कर सके. दवाव बनाने के लिए आन्दोलन किए लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला.
अब उनके पास जगह-जमीन नहीं है क्या करेंगे वे? सरकार के आदमी आये और उन्होंने लोगों को डराया धमकाया. कई बार जनता ने अपने हक़ की मांग की लेकिन सरकार ने दबाव डालकर फैट्री खुलवा दी. सरकारी नियम के अनुसार जो भी लोगों का हक़ बनता है उसे दिया जाना चाहिए था लेकिन नहीं मिला. अब जैसे हम लोग गाय-भैंस रखे हैं तो उसके लिए चारागाह की जमीन चाहिए. अब कहीं भी चारागाह के लिए जमीन नहीं बची है फैक्ट्री ने सभी पर कब्जा कर लिया है.
फैक्ट्री किस जमीन पर बनीं है?
यह सरकारी जमीन पर बनीं है. जिसमें कि हम लोगों का जीवन-यापन होता था.
जैसे?
जैसे सिल-लोढ़ा बनाकर गरीब आदमी अपना जीवन चलाता था. और हमारे गाय-बैल हैं जो उसी में चराने जाते थे. वह हमारे गाँव की चारागाह की जमीन थी. जैसे मुक्तिधाम नहीं पर है यहाँ पर.
जहां पर फैक्ट्री बनीं है वहां पर उचपेंडा गाँव के कितने लोग सिल-लोढ़ा बेचकर गुजर-बसर करते थे?
100 प्रतिशत में से 75 प्रतिशत लोग मान लीजिए. यह सब गरीब वर्ग के मजदूर लोग हैं जो वहीं पर काम करते थे.
तो अब वे क्या करेंगे?
फैक्ट्री बनने के बाद वे लोग बेघर हो जाएंगे. जम्मू, कश्मीर या किसी रिश्तेदार के यहाँ जाकर जीवन-यापन करेंगे.
आपकी कितनी जमीन गयी है?
मैं अपनी जमीन अभी रोक कर रखा हूँ लेकिन कुछ जमीन पर प्लांट वाले जबरदस्ती कब्जा कर लिए हैं. यह मामला कोर्ट में भी चल रहा है.
इसको लेकर आपने कुछ आन्दोलन वगैरह भी किया था?
हम तो जनता के हित के लिए कई बार आन्दोलन किए हैं और करना भी चाहते हैं. अगर फैक्ट्री आ रही है तो वह हमारी जायज मांगों को पूरा करे. जितना भी फैक्ट्री देखे हैं उससे अलग ही आर.के.एम. का रवैया है. यहाँ पर भ्रष्ट कर्मचारी लोग रहते हैं और अपनी मनमानी करते हैं.
आपकी कितनी जमीन गयी है?
जो बाहर बाहर जमीन थी उसी को दिया हूँ. अभी 8-10 एकड़ जमीन बची है.
पहले किस रेट से कंपनी ने जमीन ली थी और अभी क्या रेट दे रही है?
पहले 1 लाख 10 हजार रुपया प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन खरीदी गयी थी और अभी सरकार ने 6, 8, 10 लाख रुपया प्रति एकड़ का रेट तय किया है. अब कंपनी को उसी हिसाब से जमीन की खरीद करनी चाहिए थी. लेकिन कंपनी 10 लाख के हिसाब से नहीं ले रही है. कंपनी ने जितनी भी किसानों की जमीन 1 लाख 10 हजार के हिसाब से खरीदी की है उसे 10 लाख के हिसाब से और पैसा किसानों को देना चाहिए था. लेकिन वह ऐसा नहीं की है.
अभी आपके गाँव से लगा हुआ आर.के.एम. पॉवर प्लांट है, 2-3 किमी पर अथेना पॉवर प्लांट है. और बाड़ादरहा गाँव में डी.बी. पॉवर प्लांट है तो भविष्य में पर्यावरण और पानी की स्थिति को लेकर क्या सोचते है?
अभी ही बहुत तकलीफ है तो भविष्य की दशा का कह नहीं सकते. आने वाले दिनों में और दुर्गति ही होगा. अभी तो कुछ ही दिन पहले डभरा तहसील में लोगों ने घेराव किया था. यह लोग बैराज बनने से से प्रभावित हैं, जिसे कि तीन-चार कम्पनियां मिलकर बना रही हैं.
इनका नियम ठीक नहीं है. इनको तो निजी जमीन को छूना भी नहीं चाहिए लेकिन उन्होंने उसे कब्जा कर के रखा है. हम जैसे आदमी लड़ते रहते हैं. इसीलिए यहाँ हर 10-15 दिन में यहाँ आन्दोलन होता रहता है. दो-दो महीने तक कंपनी बंद रहती है.
उन्होंने मेरी निजी जमीन में ट्यूबवेल लगा दिया है, कोल साईट का नींव खोद दिया है, कंपनी का ऑफिस बना दिए हैं. हालांकि अभी तक लड़-झगड़ कर जमीन को अपने कब्जे में रखा हूँ. हमारी मर्जी होगी तो बेचेंगे. वे लोग हमारे पास खरीदने के लिए आते हैं. जब कंपनी हमारे हिसाब से पैसा देगी तो जमीन बेचेंगे और नहीं मन होगा तो नहीं बेचेंगे. और जब कंपनी खरीद ले तभी उसे कब्जा करना चाहिए. हाईकोर्ट और सिविलकोर्ट में केस लगा दिया है. मेरे पास पूरे कागजात हैं.
इन डाक्यूमेंट के बारे में बतायेगे? क्या-क्या है?
यह पुनर्वास नीति का है, छत्तीसगढ़ की उद्योग नीति का है. यहाँ के मुख्यमंत्री रमन सिंह की अध्यक्षता में एक बैठक हुई थी. जिसमें जमीन की तीन कटेगरी बनाई गयी थी. उसमें 6, 8, 10 लाख रुपया प्रति एकड़ के हिसाब से (तीन प्रकार) मुवावजा देने की बात तय की गयी थी. यह कंपनी ने नहीं किया. जिस किसान की जमीन कंपनी में जा रही है उसे कंपनी में एग्रीमेंट के साथ नौकरी मिलनी चाहिए. लेकिन कंपनी ने ऐसा कुछ नहीं किया है बल्कि मजदूरों का पास कार्ड तक नहीं बना है, एग्रीमेंट के साथ नौकरी की बात ही छोड़ दीजिए.
दूसरा है कि पुरानी बिक्री पर मिलेगा पुराना मुवावजा. जैसे पुरानी बिक्री 1 लाख 10 हजार, 1 लाख 50 हजार या 2 लाख में हुई है तो कंपनी को इन सभी को 10 लाख के हिसाब से देना चाहिए. यह सरकार की ही निति है कि पुरानी बिक्री पर मिलेगा पुराना मुवावजा. पुरानी नीति में संशोधन 19 मार्च के बाद खरीदी की गयी जमीन पर लागू होगा. तो इसको हम पेपर कटिंग कर के रखे हैं. आज तक कंपनी ने इसको लागू नहीं किया है और मुझे लगता है कि न ही कभी वह लागू करेगी.
इसके लिए आन्दोलन होता रहता है. कब क्या हो जाएगा इसका कोई पता नहीं.
इसके बाद कंपनी से बोला गया था कि एक समिति बनाइये, जो सी.एस.आर. की समिति कहलाती है. इसके अंतर्गत पांच प्रभावित गाँवों के विकास के लिए खर्च करना होता है. पानी, बिजली, रोड की व्यवस्था, महिलाओं को जागरूक बनाने के लिए छोटा-मोटा काम देना यह सब है लेकिन अभी तक कुछ नहीं किया गया है. हमने समिति बनाई थी लेकिन न ही उसकी कोई बैठक हुई और न ही कोई कार्यवाही. बैठक से सम्बंधित पेपर हमने कंपनी को दिया है जिसमें यह कहा गया है कि आज तक कुछ नहीं हुआ है.
कई बार हम महिलाओं को साथ लेकर कंपनी गए. हमने कहा कि ग्राम बांधापाली, उचपेंडा, ढेकरापाली में शौचालय तथा पीने के पानी के लिए टंकी की व्यवस्था की जाए. यह सारी सुविधाएं सी.एस.आर. के तहत उनको देना होता है. पेपर में सब महिला के दस्तखत हैं कि हमारी पंचायत में कितने महिला समूह हैं? सब लोग गए भी थे, एच.आर. ऑफिस में जाने पर हमें रसीद भी दे दिया लेकिन आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई. इसकी फोटो कापी हम कलेक्टर को भी दिए हैं. एम.एल.ए. साहब को भी दिए हैं.
ग्राम पंचायत बांधापाली में लैट्रिन बाथरूम की व्यवस्था की जाए. हमारी सभी जमीन छिन चुकी है तो टायलेट के लिए यहाँ की महिला कहाँ जाएँगी? फैक्ट्री धीरे-धीरे बढ़ेगी तो लैट्रिन-बाथरूम, बैलों लिए चारागाह आदि की व्यवस्था तो होनी चाहिए. लेकिन कुछ भी नहीं किया जा रहा है. दूसरा है कि ग्राम पंचायत बांधापाली में पानी की टंकी, हर घर में नल की व्यवस्था की जाए. यह तो सी.एस.आर. की तरफ से उनको देना ही चाहिए लेकिन आज तक कुछ भी नहीं किया है.
ग्राम पंचायत बांधापाली में अलग-अलग समाज के मुक्तिधाम की व्यवस्था की जाए. मुक्तिधाम तो ऐसी चीज है कि इसको तो बनाना ही चाहिए.
मुक्तिधाम का मतलब?
बुजुर्गों के मरने के बाद जो जला देते हैं.
श्मशान घाट.
हाँ. तो आज तक कहीं पर नहीं बनाया गया है. और जब कम्पनी चालू हुआ था तो इकरारनामे में इस बात का जिक्र किया गया था, साफ़ लिखा गया था कि यह इकरारनामा आज दिनांक पांच, 2010 को ग्रामवासियों ने पढ़ कर समझकर एवं बिना किसी जोर जबरदस्ती के हस्ताक्षर कर सत्यापित किया. कुछ दलाल लोग ऐसे थे जिन्होंने कंपनी के पक्ष में स्टाम्प बनाए थे, उसमें हस्ताक्षर कर के सरकार को दिखाए और फैक्ट्री चालू कर दिया,
यह हमारे क्षेत्र के MLA माननीय युद्धवीर सिंह देव को दिया गया माँगपत्र है। एक बार काफी बड़ा आन्दोलन हुआ जो हफ्ते भर तक चला. आखिर में दोनों तरफ से जनता और प्रशासन के बीच मुठभेड़ हुआ तब कुछ नेता, कलेक्टर, सरकार के अन्य आदमी SDM, तहसीलदार लोग आए। तब इन सब के सामने बात रखी गई कि RKM पावर प्लांट की स्थापना हेतु ग्राम पंचायत बंधपाली, घिउरा, केकराभाठ के समस्त ग्रामवासी अपनी शर्तें निम्न बिन्दुओं में प्रस्तुत कर रहे हैं, उन्हें दिया जाये अन्यथा कंपनी हटाई जाये।
उसमें पहला प्वाइंट हम लोगों का था- प्रभावित गाँव के भूमिहीन प्रत्येक परिवार को दस लाख रुपए मुवावजा तथा प्रभावित गाँव के प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को एग्रीमेंट के साथ नौकरी दिया जाये। जिसका वेतनमान 5000 से ऊपर हो.
दूसरा पॉइंट था– उपरोक्त पंचायत की खेती वाली कुल जमीन को प्रति एकड़ की दर से पंद्रह लाख रुपए दिया जाए। पूर्व में खरीदी गई जमीन का मुआवजा 10 लाख प्रति एकड़ की दर से दिया जाये। पूर्व में प्रभावित ग्रामों के व्यक्तियों पर दर्ज सभी आपराधिक रेकॉर्ड खारिज किए जाएँ। मवेशियों के लिए चरागाह एवं मुक्तिधाम की व्यवस्था की जाये। कंपनी द्वारा लाभांश की राशि का एक-एक करोड़ रुपए तीनों ग्राम पंचायतों को प्रतिवर्ष दिया जाये।
बंधापाली, केकरा भाठ, घिउरा के नागरिकों के मूलभूत सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए सर्व सुविधा प्राप्त कराया जाये। ग्राम पंचायत बंधापाली, केकरभाठ एवं ग्रामपंचायत घिउरा ये सभी प्रभावित हिस्से में आते हैं।
छत्तीसगढ़ में CSR के तहत से साल में एक बार ग्राम स्वराज अभियान चलाया जाता है। तो हम सुनवाई के लिए ग्राम स्वराज में भी दिए थे। यह दिए थे कि CSR के तहत निर्माण कार्यों की स्वीकृति के बाबत, इसमें आज तक कुछ भी नहीं हुआ, रसीद है, और शासकीय भूमि पर अतिक्रमण हटाने के सम्बन्ध में. अभी भी हमारी कुछ सामुदायिक जमीन ऐसी है जिसको पंचायत से हमलोग अभी तक NOC नहीं दिए हैं और उसको वो कब्जा कर भी ली है, यह लगभग 15-20 एकड़ होगा इसमें पंचायत के कुछ कार्य के लिए बहुत तकलीफ उठाना पड़ता है ।
इस आंदोलन के बाद एक बैठक हुआ था। जिसमे गाँव वाले और कंपनी वाले भी थे, जिसकी अध्यक्षता युद्धवीर सिंह जुडेव ने की थी।
1. कंपनी द्वारा खरीदी गई भूमि की कीमत 5 लाख प्रति एकड़ की दर से मांग की गई। इस सबंध मे कंपनी प्रबंधक E.D. Poska का कहना है कि वे अपने उच्चाधिकारियों को मांग के संबंध मे जानकारी देकर अवगत करावेंगे, तथा उच्चाधिकारियों के निर्णयों से ग्रामवासियों को दो माह के अंदर अवगत कराएंगे।
आज तक कुछ नहीं किया है।
2. प्रभावित ग्रामवासियों को रोजगार देने के लिए एक रोजगार मेला 18 दिसंबर, 2012 को आयोजित करें तथा उपरोक्त तिथि को प्रभावित गांवों को यथा अनुसार रोजगार उपलब्ध करावें। कंपनी प्रबंधन ने इस बात पर सहमति व्यक्त की. रोजगार प्राप्त करने वाले का बीमा भी कराएंगे।
कंपनी ने रोजगार मेला तो लगाया गया, एक डब्बा रख दिया गया जिसमें सभी लोगों से लिफ़ाफ़ा डालने को कहा गया, लेकिन उसका कुछ सही नतीजा नहीं निकला क्योंकि जनता अनपढ़ थी।
3. CSR के तहत कंपनी द्वारा अँग्रेजी माध्यम शाला खोलेंगे, एक अच्छा अस्पताल खोलेंगे तथा स्वास्थ्य सुविधा के लिए दो एम्बुलेंस की तत्काल व्यवस्था हेतु कंपनी प्रबंधन ने अपनी सहमति जताई।
लेकिन आज तक वो कुछ भी नहीं किया, न तो यहाँ अँग्रेजी माध्यम शाला है और न ही एक अच्छा अस्पताल है, स्वास्थ्य सुविधा के लिए एम्बुलेंस तो है लेकिन डीजल तो हम लोगों को डालना पड़ता है। अभी नियम सुधरा होगा तो नहीं बता सकते पहले स्थिति ऐसी ही थी।
4. कंपनी में कार्यरत मजदूरों को छह दिन के लिए काम पर रखा जाता है, इसको प्रबंधन द्वारा 7 दिनों का वेतन दिया जाना चाहिए।
लेकिन कम्पनी द्वारा राष्ट्रीय अवकाश का पेमेंट नहीं किया जाता है.
5. कंपनी एक फायर ब्रिगेड तीन माह के अंदर दे। जिस पर कंपनी की तरफ से सहमति दी गई। फायर बिग्रेड इसलिए रहना चाहिए क्योंकि कहीं पर आग लग जाये तो बुझाने के लिए कुछ तो होना चाहिए। यहाँ पर धान की खेती होती है। और यह सब CSR के तहत कंपनी को रखना चाहिए, लेकिन यहाँ पर कंपनी द्वारा कुछ भी नहीं किया गया।
6. कंपनी के द्वारा CSR के तहत किए जाने वाले कार्य समिति की बैठकानुसार पात्रता के अनुसार तय किया जावे। लेकिन न तो यहाँ पर समिति ही बनाया गया न CSR की कभी बैठक होती है और न ही कुछ काम होता है।
आमतौर पर फैक्ट्री के आने के पहले एक बैठक होती है वो यहाँ पर हुई थी ?
हाँ.
जन सुनवाई के लिए कह रहे हैं ना? जनसुनवाई हुई थी उसमें सभी पब्लिक ने विरोध किया लेकिन उन्होंने पास करा दिया। यही कंपनी नहीं हम कई कंपनी देखें एथेना है, डी.बी. पॉवर प्लांट है, सब की जनसुनवाई हम जानते हैं। पब्लिक फैक्ट्री का विरोध करती है, बहुत आंदोलन करती है, लेकिन जनसुनवाई पास हो जाती है, और फिर फैक्ट्री लग जाता है ।
जनसुनवाई में सरकारी अधिकारियों की तरफ से कौन आया था?
उसमें कलेक्टर साहब आए थे, अक्सर जन सुनवाई में एडिशनल कलेक्टर आते हैं वही आए थे, फिर विरोध होता है, खिंचा-तनाव, बैनर पूरा फाड़ दिये थे, लेकिन अंत मे हर फैक्ट्री पास हो कर खुल जाती है।
यह मेरी जमीन है जो RKM पावर प्लांट मे फंसी है। खसरा न. 320/1 जमीन को कंपनी ने कब्जा कर रखा है।
यह कितना एकड़ है?
4 एकड़ 5 डेसीमल. इसको कंपनी ने कब्जा कर के रखा हुआ है जो नहीं करना चाहिए. भगवान जाने मैं तो पहली बार ऐसी कंपनी को देखा रहा हूँ जो प्राइवेट जमीन को डिस्टर्ब कर के रखा है. इन्होंने मेरी जमीन को नक़्शे में कहीं और दिखा था, जब मैंने सन 31-32 का नक्शा निकलवाया तब इस बार का पता चला. सीमांकन के लिए कलक्टर ऑफिस गया तो यही जमीन प्लांट में निकला.
कंपनी ने इसमें कोलसाईट की नींव खड़ी किया है. मेरी जमीन में ट्यूबवेल लगाया है और पाइपलाइन का ऑफिस बना दिए हैं तथा बिजली का बोर्ड भी गाड़ दिए हैं. यह सब नहीं होना चाहिए था.
पॉवर प्लांट के लिए पानी कहाँ से आ रहा है?
पानी साराडीह से आ रहा है जो महानदी के किनारे है.
तो यह पाइपलाइन के जारी आएगा या नाहर के जरिये?
पाईपलाइन के जरिये आएगा.
उसके लिए भी जमीन अधिग्रहीत की गयी होगी?
उनको खेत का उचित मुवावजा देना चाहिए था. इनको पब्लिक के साथ मीटिंग करके पाईपलाइन लगाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. कोई मुवावजा नहीं दे रहे हैं और जबरन जमीन की खुदाई कर रहे है. इसी कारण से पाईपलाइन रुका हुआ है और मुझे लगता है कि रुक ही जाएगा.
कितनी खेती वाली जमीन इस प्लांट या पाईपलाइन लगाने में गयी हैं?
ज्यादा सरकारी जमीन ही गयी है. और बहुत सारी ऐसी जमीन भी है जो खेती योग्य है. ऐसे तो बता नहीं सकता लेकिन पचास प्रतिशत के लगभग रेलवे लाइन, कोलसाईट में आ रही है.
एक मुख्य चीज यह है कि यहाँ पर सतनामी समाज के लोग ज्यादा हैं, जो गुरुघासीदास बाबा को मानते हैं. बिलासपुर के गुरु घासीदास यूनीवर्सिटी के बारे में आपने सुना ही होगा जो इन्हीं के नाम पर है. और इन्हीं के नाम पर एक बहुत बड़ा मंदिर भी है. यहाँ के सी.एम. रमन सिंह, आजकल गिरोधपुरी में क़ुतुबमीनार जैसा मंदिर भी बनवा रहे हैं.
तो यहाँ बगल के गाँव एक लड़का है, 20-25 दिन पहाडी पर बैठ कर वह गुरू घासीदास की तपस्या कर रहा था. तब से वहां पूजा-पाठ चलने लगा. कंपनी ने उस जमीन का भी अधिग्रहण कर लिया है. हम कहते हैं कि मंदिर यदि कंपनी के अन्दर आ रहा है तो बढ़िया मंदिर बनवा दीजिए वहां, पब्लिक के लिए बढ़िया रहेगा. अब पूजा-पाठ को रोक नहीं सकते हैं न. कई बार आन्दोलन हुआ लेकिन अभी भी कंपनी ने कब्जा कर के रखा है.
इससे सतनामी समाज के लोग काफी नाराज हैं और काफी तनाव की स्थिति है, कब क्या हो जाएगा कुछ कहा नहीं जा सकता.
यह बाउंड्री है, यह लोहे के छड़, ट्यूबवेल या जो भी सामान दिख रहा है यह सब कंपनी रखी है.
प्राईवेट जमीन में तो कंपनी को यह सब रखना नहीं चाहिए, उसे अपनी खरीदी की गयी जमीन में रखना चाहिए.
यहाँ पर इन्होंने बाउंड्री खड़ी कर दी थी जिसे मुझे तुड़वाना पड़ा. अब यह इस तरह कुछ करते रहेंगे और हम भी बोलेंगे तो ऐसे में तो आक्रोश बना रहेगा न. कभी भी कुछ हो सकता है.
यहाँ पर बिजली का बोर्ड लगा दिए हैं. यह पाईप दिख रही हैं न, जमीन में वायरिंग किये हुए है.
इस तरह यह पूरा तालाब तक है. यह बाउंड्री भी मेरी जमीन में है. इसको मुझे तुड़वाना है. यह सब इनका छड़ है जो मेरी हमीं में पड़ा हुआ है, अभी मैं इनको उठाने नहीं दे रहा हूँ. अभी यह सब मेरे कब्जे में है. भई जो मेरे जमीन के अन्दर है वो मेरा है.
यह भी छड़ है.
Pad.ma requires JavaScript.