001: Talk with Sarpanchpati, Sarpanch and others in Ghiwara
Cinematographer: Sunil Kumar
Duration: 00:16:54; Aspect Ratio: 1.778:1; Hue: 47.117; Saturation: 0.161; Lightness: 0.414; Volume: 0.162; Cuts per Minute: 0.532; Words per Minute: 92.868
Summary: आर.के.एम. पॉवर प्लांट से प्रभावित घिंवरा गांव के सरपंचपति, सरपंच, और अन्य ग्रामीणों से बातचीत। बातचीत को संक्षेप में यहां दे रहा हूं। कम्पनी के आने के बारे में गांव वालों को तब पता चला जब कम्पनी के दलाल यहां पर जमीन खरीदने आए। उसके बाद जनसुनवाई हुई, जिसका कि व्यापक विरोध हुआ। बल्कि जनसुनवाई में मारपीट भी हुई। लेकिन इसके बावजूद भी जनसुनवाई को सरकारी अधिकारियों ने ओके कर दिया। और कम्पनी ने अपना सामान गिराना शुरू कर दिया। तब कई गांव के लोगों ने मिलकर धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया। कम्पनी और सरकारी अधिकारियों ने मिलकर इन आन्दोलनकारियों पर झूठे केस लादने शुरू कर दिए। लगभग एक साल तक चले धरने-प्रदर्शन के बाद अंततः कलेक्टर की मौजूदगी में कम्पनी और गांव वालों के बीच समझौता हुआ। जिसमें कम्पनी ने कहा कि वह गांव के विकास के साथ ही हर घर के एक व्यक्ति को एग्रीमेंट के साथ नौकरी देगी। आज आर.के.एम. पॉवर प्लांट को आए हुए लगभग पांच साल हो गए हैं लेकिन अभी तक न तो गांव में किसी तरह का कोई विकास कार्य हुआ है और न ही किसी को स्थाई नौकरी मिली है। यदि कुछ लोग काम कर भी रहे हैं तो वह सभी ठेके पर काम कर रहे हैं।

Ghiwara

आपका नाम?
दिलसाय।

आप किस पंचायत के सरपंच हैं?
मैं सरपंचपति हूँ.

आप सरपंचपति हैं?
जी।

अच्छा सरपंच कोई और है आपकी पत्नी है?
हाँ हमारी पत्नी हैं?

उनका नाम क्या है ?
अस्मिन बाई।

अच्छा गाँव के बारे में बताइए, कितनी जमीन है और कैसे जा रही है, क्या स्थिति हो रही है गाँव वालों की?
जमीन तो बहुत गया है..

करीब, करीब 25-30 एकड़ तो होगा ही.

ज्यादा ही होगा।

मैं एक अंदाजा बोल रहा हूँ, वह फिक्स नहीं है।

जैसे कि मेरा ही 2 एकड़ 74 डेसिमल गया है। लेकिन यह बांधापाली में आता है।

यहाँ करीब–करीब 30-40 एकड़ के लगभग बिक्री हुआ होगा।
40 तो होगा ही ....

जब आप लोगों ने जमीन दिया था तो सरकार के साथ कुछ बातचीत हुई थी?

फैक्ट्री के दलाल लोग आए थे।
1 लाख 10 हजार में दलाल लोग खरीदी किए हैं। किसी का 1 लाख 10 हजार में तो किसी का 1 लाख 20 हजार में।

एकड़?
हाँ।

तो गाँव वालों ने जमीन आसानी से दे दी?
हाँ दे दिया।

उनका देने का मन था? कई जगह पर विरोध रहता है कि नहीं देंगे?

कुछ लोग दिए तो कुछ लोग नहीं दिए हैं।

अभी और क्या स्थिति है?
विरोध तो करते थे।

स्थिति यह है कि कम्पनी ने कहा था कि गाँव में काम दूंगा, तालाब खुदवाऊंगा, सीसी रोड बनवाऊंगा, टंकी बनवाउंगा और बहुत प्रकार के काम देने को कहा था, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं किया।

अभी तक कुछ भी नहीं किया है?
नहीं।

मुआवजा सबको मिल गया है?
हां, 1 लाख 10 हजार के हिसाब से, बाद में कहा था कि डेढ़ लाख और दूंगा, उसको भी दे दिया। डेढ़ और एक बीस, यानी 2 लाख 70 हजार प्रति एकड़।

अभी सभी को नहीं मिला है?
सभी को मिल गया।

लोगों की खेती वाली ही जमीन गई है?
सभी ही तो खेती वाली जमीन है।

सब खेती वाली?
सब खेती वाली।

तो अब एक लाख में काम चल जाएगा?
1 लाख 20 हजार में दे दिया तो अब क्या करेंगे।

खेत में तो आप हमेशा से धान उगाते रहे हैं और अब खेत नहीं है...?

इस साल खेत के बीच में गड्ढा कर दिया है, खेती नहीं करने दिया है।

अच्छा।
नजदीक नहीं है कुछ दूर दूर पर है।

कंपनी ने खेत लेते वक़्त कहा था कि जब तक कंपनी आ नहीं जाती, सभी गांव वाले तब तक खेती कर सकते हैं।

उसके बाद कंपनी ने कहा कि वह वह जमीन को अपने पास ही रखेगी और किसी को भी नहीं देगी। जो भी उसमें खेती करेगा उस पर मुकदमा चलेगा।

interview man and woman
तो अब मुआवजे से सबका काम चल जाएगा ?
कहाँ चलेगा?

तो खेत क्यूँ दे दिया?
जबरदस्ती मार-पीट कर के ले लिए।

पिछले कार्यकाल में जो सरपंच और कोटवार थे, वही लोग पहले दे दिए। तब बाकी लोग भी देने लगे। कुछ कमजोरी भी रही होगी। पूरी कोटवारी जमीन की बिक्री हो गई है, और दुनिया भर का लफड़ा हुआ है। फिर हम लोग धरना-प्रदर्शन रखे थे, जिसमें सभी महिलाएं ही थीं। दो महीने तक हम लोग धरना-प्रदर्शन रखे थे।

किसलिए?
कंपनी को हटाने के लिए।

तो फिर क्या हुआ?
धरना-प्रदर्शन के बाद कंपनी ने कहा कि जो कुछ भी मांग है वह हम सब देंगे। यह सुनकर हम लोग संतुष्ट हो गए। बाद में डेढ़ लाख और मुआवजा मिला।

आप सरपंच हैं?

हाँ, कंपनी ने नौकरी पर रखने को बोला था, लेकिन वह 120 रू. के हिसाब से दिहाड़ी पर काम करवा रही है। हफ्ता में पेमेंट होता है। कम्पनी ने कहा था कि एग्रीमेंट के साथ नौकरी देंगे साथ में जो जमीन कम्पनी ने अधिग्रहीत कर ली है उस पर तब तक गांव के खेती कर सकते हैं जब तक कम्पनी अपना काम शुरू नहीं कर देती। लेकिन कुछ नही दिया।

कलेक्टर के सामने कहा था कि तालाब खुदा कर देंगे, चरागाह देंगे। लेकिन न तो चारागाह दिया और न ही तालाब, ऊपर से 20 एकड़ 19 डेसिमल हमारी जमीन थी जिसमें तालाब था, उसको भी बराबर कर दिया। उसमें गाय-भैस पानी पीते थे। उधर आदमी भी रहते थे, छह-सात घर अभी भी है। वह इन्दिरा आवास में मिला हुआ घर है। उन लोगों का खाना-पीना हराम हो गया है।

16 घर हैं 16 घर।
16 घर
जबकि वह घर इन्दिरा आवास के तहत मिला हुआ था फिर भी तहसीलदार ने इन लोगों पर जंगल में घर बनाने के लिए मुकदमा करवा दिया।

इन लोगों पर मुकदमा है।
अभी भी चल रहा है।

अभी चल रहा है, मैं जब गई थी तो उन्होंने कहा कि मुकदमा खत्म कर देंगे लेकिन नहीं किया।

हम लोगों को बहुत परेशानी हुई थी। रात में मारने के लिए गुंडा भेजते थे।

चार महीना जेल में रहे थे।
इस बेचारे को बिना किसी वजह के फंसा दिया था।
मुझे 307 में फंसा दिया था।

क्यूँ?
इस कंपनी के कारण। कहीं दूसरी जगह मारपीट हुई थी और हम लोग कंपनी के विरोध में थे तो कम्पनी ने हम चारों का नाम भी उसी में दे दिया।

बिना किसी गलती के चार आदमी को जेल जाना पड़ा।

हम लोगों का बिना मतलब के 40 -40 हजार रुपया खर्च हुआ। पोखरा जेल में चार महीना, पाँच दिन रहे थे।

तो यह कंपनी के गुंडे थे?
हाँ।
हम गांव के अधिकतर लोग कारख़ाना खुलने के विरोध में थे। इसीलिए हम लोगों को जेल में डाल दिया । उसके बाद कहा कि 307 खत्म कर देंगे, काम करो। काम भी करवाए और जेल में भी डाल दिया।

इस तरह से तो कंपनी ने दुःख दिया है।
अभी भी बहुत तकलीफ में है।

सारे गाँव वालों को ठेके पर ही काम मिला हुआ है?

दो चार लोगों को छोड़ कर सब ठेके पर हैं।

धोबनीपाली के लोगों से काम करवा रहा है हम लोगों से नहीं।

इस गाँव के लोगों को तो ठेकेदारी भी नहीं मिलती।

बैठ जाओ, कुर्सी ले लो।

आप पूछिए न।

पहले तो आप खेती करते थे कुछ मालूम नहीं था।
हां।

तो पहली बार फैक्ट्री के आने के बारे में कैसे मालूम हुआ?
हम लोगों को एक साल के बाद मालूम चला।

कितना साल हुआ आपको मालूम चले?
डेढ़ साल बाद।

दो साल पहले जब कम्पनी के दलाल लोग आए और इन्होंने पहले 1 लाख 10 हजार में, 1 लाख 20 हजार में ख़रीददारी की। उसके बाद कंपनी लगना शुरू हुआ। उसके एक साल बाद जनसुनवाई हुआ।

जन सुनवाई में क्या?

जनसुनवाई में सबको लालच दिया कि इतना पैसा देंगे, हर घर को एक नौकरी देंगे। यदि किसी का 5-10 डेसिमल भी जाएगा तो उसको भी नौकरी देंगे। इस लालच से कुछ लोग सहमत थे तो कुछ लोग असहमत।

two man talking

तो फिर उसके बाद क्या हुआ?

तो उसके बाद जबरदस्ती समान गिरना शुरू किया।

यहाँ पर गुंडे भी लाए थे। कम्पनी ने हम लोगों को धमकाया था, कहा था कि मरवाएंगे, पिटवाएंगे।

ढेर सारे सुरक्षा कर्मी लाया था और हम लोगों को मारने के लिए हर घर में घुसे थे।

क्यों?
यही कि फैक्ट्री हम लोग नहीं लगने दे रहे हैं।

हर घर में घुसा था।

एक बार कंपनी वाला कह देता था तो वे पकड़ के थाने भी ले जाते थे।

लोगों ने डर के मारे छोड़ दिया। रात-रात भर सब महिला लोग जाकर बहुत हड़ताल किए, धरना दिया। इसमें सभी गाँव के लोग ‘धोबनीपाली’, ‘केकराभाठ’, ‘उचपेंडा’, ‘बंधापाली’ और हमारा ‘घिउरा’ सभी लोग थे।

साल भर तो ऐसे ही चलता रहा, जनसुनवाई के बाद काम शुरू हुआ।

तहसीलदार, पुलिस, दारोगा सभी आए थे। आकर बोले इसको नौकरी दो, वैसे करो, ऐसा करो, वैसा करो, समझा कर चले गए।

जनसुनवाई में क्या-क्या हुआ, क्या-क्या बातें हुईं?

कुछ नहीं हुआ, बस मारपीट हुआ।
खाली मारपीट हुआ।

समझौता नहीं हुआ।

समझौता किस-किस के बीच होना था?

जनता और अधिकारी लोग के बीच। इधर-उधर के कागजात बनाकर कहा कि जनसुनवाई हो गई।

क्या जनसुनवाई में कुछ पढ़ा नहीं गया?
कुछ नहीं।
फॉरमेल्टी पूरा नहीं हुआ।

फिर उसके बाद क्या हुआ?

फिर फैक्ट्री का समान गिराने लगा, कागज पर गाँव के कुछ लोगों के दस्तखत ले लिया और कम्पनी शुरू हो गई।

और आप लोगों की जमीन?
ले तो लिया।

आप पूछते जाईए मैं बताते जाउंगा।

नौकरी का क्या हुआ?

अब हम लोगों को कोई नौकरी कोई देता नहीं है।

नौकरी क्या है कि हफ्ता में पेमेंट करता है, 800-900 बन रहा है, वो कोई नौकरी थोड़े ही है।

दिन के हिसाब से कितना हुआ?
150 रुपया प्रतिदिन।

छुट्टी के दिन का नहीं देता है। जो सरकारी छुट्टी होती है उसका भी नहीं देता, रविवार को भी नहीं।

यह फैक्ट्री की जमीन पूरी तरह खेती वाली है? उसमें गाँव तो नहीं था?
नहीं, नहीं भाठा था।
3 गांवों का मिलाकर 20 एकड़ गौचर था।

गौचर यानि सामुदायिक जमीन?
हाँ, उसमें जानवर चरते थे, पांचों गांवों के जानवर का उसमें पालन-पोषण हो रहा था।
दो-तीन गांवो के मवेशी चरते थे।

और तालाब कितना गया है?
हमारे गाँव के तीन तालाब गए हैं?

उसी फैक्ट्री में?
हाँ, उसी में।

खेती गई तो अब क्या करेंगे, मजदूरी?

मजदूरी, और कहाँ जाएंगे? दिल्ली, भोपाल जाएंगे।

क्या है कि उसने बहुत कुछ बोला था लेकिन किया कुछ नहीं।

गाँव में स्कूल, पानी, गली-गली में पक्की सड़क, नाली देंगे, लोगों को ठग-ठगकर, फुसलाकर ले लिया और कुछ भी नहीं दिया। नंदकुमार आया था, कुछ नहीं किया, पैसा लेकर भाग गया।

पैसा लेकर भाग गया, कोई भी नेता यहाँ आते हैं तो झोली भरकर चले जाते हैं।

झोली क्या चीज?

अरे .... पैसा।
जेब भरकर चले जाते हैं, कोई भी मंत्री आता है सब यही करते हैं। आप भी आए हैं, झोला भरकर चले जाएँगे, ठीक बोल रहा हूँ ना?

ऐसे कितने लोग आए और जेब भरकर चले गए।

यहाँ से आपने विधायक वगैरह को चुना होगा, उनके पास गए थे आप लोग?

बुला-बुलाकर थक गए, आ-आकर थक गया। आता है तो बोलता है, ऐसा कर दूंगा, वैसा कर दूंगा, पुलिस को भेज दूँगा। जहां पैसा पाया, धीरे से भागता है और घर जाकर बैठा रहता है।

विधायक से कुछ यहाँ काम नहीं चलता है।
सही बात है।

हमारे बुलाने पर विधायक बनने के बाद से एक दिन हमारे गांव आया है।

युद्धविर सिंह जानते है न आप उनको?
नहीं।

राजा दिलीप सिंह के खानदान के हैं, उन्हीं के लड़के हैं।

वह लोग राजा के जमाने से हैं। दिलीप सिंह जुदेव बिलासपुर से सांसद हैं। उन्हीं के लड़के चंद्रपुर से विधायक हैं।

प्रेस वाले हैं क्या सर?
नहीं, पढ़ने-लिखने वाले है।

वहां तक यह जमीन है।
अच्छा।

और इधर कौन-कौन सी जमीन लिया है?
वह जमीन है जहां ग्
Pad.ma requires JavaScript.